Opinion: सैनिकों और टुकड़ियों की कम लागत का रुख

अपने फिल्मी नाम के उलट अग्निपथ एक साधारण योजना है। यह इस तथ्य पर आधारित है कि कम समय के लिए सेना का हिस्सा बनने वाले युवाओं पर सरकार को कम पैसा खर्च करना पड़ता है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- November 06, 2023 | 8:25 AM IST

सैनिकों पर होने वाला व्यय बढ़ने की आलोचनाओं के बीच रक्षा मंत्रालय ने करीब डेढ़ वर्ष पहले अग्निपथ नामक नई भर्ती योजना की घोषणा की थी। ऐसा इसलिए किया गया ताकि भारतीय सेना की औसत आयु को चार-पांच वर्ष कम किया जा सके तथा उसे मौजूदा 32 वर्ष से कम करके 27 वर्ष पर लाया जा सके।

मौजूदा हालात में यह देखना उचित होगा कि इस योजना का प्रदर्शन कैसा है? क्या किसी सुधार की आवश्यकता है या फिर अग्निपथ को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता बढ़ाने की आवश्यकता है।

अपने फिल्मी नाम के उलट अग्निपथ एक साधारण योजना है। यह इस तथ्य पर आधारित है कि कम समय के लिए सेना का हिस्सा बनने वाले युवाओं पर सरकार को कम पैसा खर्च करना पड़ता है।

रक्षा मंत्रालय ने इसे परिवर्तनकारी उपाय बताया था जिसकी मदद से थल सेना, नौ सेना और वायु सेना में अग्निवीरों की भर्तियों का तरीका पूरी तरह बदल सकता था। इरादा यह था कि दीर्घकालिक सेवा के मौजूदा मॉडल को बदला जाए जहां 15 वर्ष की सेवा और आजीवन पेंशन की व्यवस्था है। इसकी जगह चार वर्ष की शॉर्ट सर्विस की बात कही गई।

कुल अग्निवीरों में से 25 फीसदी पूरे कार्यकाल के लिए रखे जाते हैं जबकि 75 फीसदी को बिना पेंशन के घर वापस भेज दिया जाता है। मंत्रालय सैन्य कर्मियों पर बहुत बड़ी राशि व्यय करता है। 2021-22 में वेतन, भत्तों और पेंशन पर कुल मिलाकर 2.7 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए। यह राशि 5 लाख करोड़ रुपये के रक्षा बजट का 55 फीसदी है।

अगले वित्त वर्ष यानी 2022-23 के दौरान वास्तविक कार्मिक व्यय एक प्रतिशत बढ़कर 3.28 लाख करोड़ रुपये हो रहा जो 5.84 लाख करोड़ रुपये के कुल रक्षा बजट के 56 फीसदी से अधिक था।

चालू वित्त वर्ष में कार्मिकों पर होने वाला व्यय 3.23 लाख करोड़ रुपये रहा जो 5.93 लाख करोड़ रुपये के कुल रक्षा व्यय का 55 फीसदी था।

अग्निपथ योजना का लक्ष्य है पेंशन का बोझ कम करना। 2015 में वन रैंक, वन पेंशन योजना लागू होने के बाद से पेंशन का बोझ बहुत बढ़ गया और अभी भी यह सालाना रक्षा बजट का बहुत बड़ा हिस्सा है। चालू वर्ष में 5.93 लाख करोड़ रुपये के रक्षा बजट में से 1.38 लाख करोड़ रुपये यानी 23 फीसदी राशि पेंशन में जाएगी।

भर्तियों के वार्षिक बैच की बात करें तो पहले चार वर्ष तक प्रत्येक वर्ष 46,000 भर्तियां की जाएंगी, पांचवें वर्ष 90,000 और छठे वर्ष से सालाना 1,25,000 भर्तियां की जाएंगी। इनमें से एक चौथाई सेवा में बने रहेंगे। यानी दसवें वर्ष से अग्निपथ योजना सालाना 31,250 जवान ऐसे जवान देगी जो लंबी अवधि तक सेवा देंगे और पेंशन के हकदार होंगे। जबकि 93,750 सैनिकों को चार वर्ष बाद घर वापस जाना होगा।

रक्षा मंत्रालय का मानना है कि सेना की उम्र कम होने से कई फायदे होंगे। उसका मानना है कि चार वर्ष बाद सेवानिवृत्त होने वाले 75 फीसदी जवान अनुशासित कर्मचारी होंगे जो सरकारी या फैक्टरी रोजगार के लिए उपयुक्त होंगे। सरकार ने इन अग्निवीरों के लिए रोजगार आरक्षित किए हैं।

केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल में 10 फीसदी नौकरियां इनके लिए आरक्षित हैं, तटरक्षक, रक्षा मंत्रालय के असैन्य पदों और 16 सरकारी रक्षा कंपनियों में भी इनके लिए नौकरियां आरक्षित हैं। 85 निजी कंपनियों ने भी सेवानिवृत्त अग्निवीरों को रोजगार देने का वादा किया है। चार साल के कार्यकाल के बाद उन्हें सेवा निधि पैकेज के तहत 11-12 लाख रुपये की कर मुक्त राशि का भुगतान किया जाएगा।

अग्निवीरों का वेतन 30,000 रुपये मासिक से आरंभ होगा और तीन साल में यह 40,000 रुपये प्रति माह होगा। इसके बावजूद यह सेना के सबसे कनिष्ठ नियमित सैनिक से भी कम वेतन वाले होंगे।

अग्निवीर योजना का सार ऐसा ही है मानो यह सैनिकों को अधिक पारंपरिक ‘शॉर्ट सर्विस कमीशन’ जैसा अनुभव दे। अभी तक शॉर्ट सर्विस की यह सेवा केवल सैन्य अधिकारियों के लिए है। इसके तहत वे पांच वर्ष के लिए सेवा में आ सकते हैं जिसे आगे एक बार पांच और एक बार चार वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है यानी वे अधिकतम 14 वर्षों के लिए सेवा में रह सकते हैं।

सेना के लिए यह कॉम्बैट कमांडर के स्तर से लेकर लेफ्टिनेंट कर्नल के स्तर तक के अधिकारी मुहैया कराती है। ये अधिकारी बलि के बकरे की तरह होते हैं और उस समय सेना से बाहर हो जाते हैं जब उच्च पदों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ती है। अग्निवीर योजना की तहत हर शॉर्ट सर्विस बैच के उन अधिकारियों को भी सेवा विस्तार दिया जाता है जो सेवा अवधि में विशिष्ट प्रदर्शन करते हैं।

अच्छी गुणवत्ता वाले सैनिक हासिल करने का एक और तरीका अतिरिक्त ‘स्काउट बटालियन’ तैयार करना। सीमावर्ती इलाकों के लोगों वाली टुकड़ी तैयार की जा सकती हैं जो अपने गांव-घर के आसपास तैनात रह सकते हैं। दुर्गम इलाके ओर खराब मौसम भी इन लोगों को नहीं रोक सकता है क्योंकि ये उन्हीं इलाकों में पले-बढ़े होते हैं।

कई लोग मानते हैं कि ये जेनेटिक रूप से भी उन इलाकों के लिए बने हुए हैं। भारत और पाकिस्तान में स्काउट बटालियन की बहुत अच्छी परंपरा है। मसलन भारत में लद्दाख स्काउट की पांच बटालियन जिन्हें हाल ही में नियमित इन्फैंट्री बटालियन का दर्जा दिया गया।

आजादी के बाद से लाहौर स्काउट्स ने इस क्षेत्र में काम किया और कर्नल चेवांग रिनचेन जैसे दिग्गज देश को दिए जिन्होंने 1947 में 17 वर्ष की आयु में पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार गिराया था। इसके लिए उन्हें महावीर चक्र मिला था। आगे चलकर उन्होंने इसे एक और बार हासिल किया और देश के सबसे चर्चित सैन्य नायकों में से एक बने।

1999 के करगिल युद्ध के दौरान एक अन्य लद्दाखी नायक कर्नल सोनम वांगचुक ने चोरबत ला में पाकिस्तानी घुसपैठियों को भगाकर नायक का दर्जा हासिल किया था। नियमित भारतीय टुकड़ियों में से अधिकांश मैदानी इलाकों से हैं और उन्हें हिमालय के हालात को अपनाने में वक्त लगता है।

लद्दाख स्काउट्स को ऐसी कोई परेशानी नहीं होती। हिमालय क्षेत्र से बड़ी तादाद में टुकड़ियां तैयार करना और स्थानीय लोगों को चुनने से न केवल इन दूरदराज इलाकों में लोगों को रोजगार मिलेगा बल्कि हम अपने गृह क्षेत्र के बचाव के लिए काफी प्रतिबद्ध लोग तैयार कर सकेंगे।

आखिर में, अधिक किफायती ढंग से जवानों को भर्ती करने और टुकड़ियां तैयार करने का काम प्रादेशिक सेना की मदद से भी किया जा सकता है जिसमें अंशकालिक इन्फैट्री और इंजीनियरों की टुकड़ियां शामिल हैं जिन्हें जरूरत पड़ने पर सेवा के लिए बुलाया जा सकता है।

प्रादेशिक सेना देश में पर्यावरण के लिए काम करती है। वह दुर्गम इलाकों का वनीकरण करती है। जलधाराओं को नए सिरे तैयार करती है, गंगा की सफाई की परियोजना भी उनके पास है। इन्हें विशेष कामों के लिए तैयार किया जाता है। मसलन भारतीय रेल की क्षतिग्रस्त सेवाओं की बहाली और तेल क्षेत्र के सरकारी उपक्रमों के लिए पाइपलाइन तैयार करना।

First Published : November 5, 2023 | 11:23 PM IST