लेख

Opinion: म्युचुअल फंड का बढ़ता दबदबा, निवेशकों का भरोसा बनाए रखना जरूरी

दिसंबर में भारत में म्युचुअल फंड द्वारा प्रबंधित परिसंपत्ति का स्तर 50 लाख करोड़ रुपये का स्तर पार कर गया जो एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।

Published by
अजय त्यागी   
Last Updated- January 17, 2024 | 9:03 PM IST

निवेशकों का भरोसा बरकरार रखना अहम है क्योंकि केवल एक खराब प्रकरण के कारण यह पूरा सिलसिला बिगड़ सकता है। बता रहे हैं अजय त्यागी

दिसंबर में भारत में म्युचुअल फंड द्वारा प्रबंधित परिसंपत्ति का स्तर 50 लाख करोड़ रुपये का स्तर पार कर गया जो एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। इसमें दो राय नहीं कि समय के साथ म्युचुअल फंड भारतीय पूंजी बाजार में सबसे महत्त्वपूर्ण संस्थागत निवेशक के रूप में उभरे हैं।

बीते 10 वर्षों में म्युचुअल फंड उद्योग की प्रबंधन के अधीन परिसंपत्ति छह गुना बढ़ी है और 31 मार्च, 2014 के 8.25 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 31 दिसंबर, 2023 को यह 50.77 लाख करोड़ रुपये हो गई। इस अवधि में म्युचुअल फंड में निवेशकों की कुल संख्या पांच गुना बढ़ी और 88 लाख से बढ़कर 4.2 करोड़ हो गई।

कुल बैंक जमा की तुलना में फिलहाल म्युचुअल फंड द्वारा प्रबंधित परिसंपत्ति 25 फीसदी का स्तर पार कर चुकी है, यानी देश के वित्तीय क्षेत्र में इसका दबदबा बढ़ रहा है। अगर शेयर बाजार की वृद्धि के दायरे पर नजर डाली जाए तो म्युचुअल फंड और व्यक्तिगत निवेशक दोनों अहम भागीदार के रूप में उभरे हैं। सितंबर 2023 तक सूचीबद्ध कंपनियों की कुल बाजार पूंजी में उनकी हिस्सेदारी क्रमश: 8.7 और 9.7 प्रतिशत थी।

हालांकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक अभी भी अहम बाजार भागीदार बने हुए हैं और उनकी कुल हिस्सेदारी 18.4 फीसदी है लेकिन यह कम हुई है क्योंकि 10 वर्ष पहले यह 22 फीसदी थी। म्युचुअल फंड द्वारा प्रबंधित कुल परिसंपत्ति में से 43 फीसदी इक्विटी योजनाओं में है। इसमें से 90 फीसदी व्यक्ति निवेशकों के स्वामित्व वाली हैं।

म्युचुअल फंड उद्योग विश्वास बनाने और उसे बहाल रखने में सफल रहा है और कई निवेशक उनके साथ बाजार में प्रवेश को प्राथमिकता देते हैं। वास्तव में म्युचुअल फंड ने देश में घरेलू बचत के वित्तीयकरण में अहम भूमिका निभाई और बचतकर्ताओं को निवेशकों में बदला।

ई-केवाईसी की सुगमता तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म की वृद्धि ने म्युचुअल फंड की पहुंच अर्द्धशहरी तथा ग्रामीण इलाकों तक बढ़ाने में मदद की है। नियामकीय ढांचे ने बाजार के बदलते माहौल से तालमेल बनाए रखा है। इस क्षेत्र में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए जरूरी कदम उठाए गए हैं।

उदाहरण के लिए म्युचुअल फंड द्वारा लगाए जाने वाले कुल व्यय अनुपात का खुलासा करना, म्युचुअल फंड योजनाओं का वर्गीकरण, उनके प्रदर्शन का मानकीकरण और प्रकटीकरण की व्यवस्था में सुधार करना आदि सराहनीय कदम हैं।

म्युचुअल फंड में सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (सिप) की भूमिका लगातार बढ़ी है और इससे निवेश संस्कृति में बदलाव आया है। सिप अब एकदम घरेलू नाम हो गया है क्योंकि इनमें लोग हर महीने 500 रुपये तक का निवेश कर सकते हैं।

वित्त वर्ष 2024 में प्रति माह 31.5 लाख सिप खाते जुड़े जबकि वित्त वर्ष 2017 में यह केवल 6.3 लाख प्रति माह थी। दिसंबर 2023 में सिप में आने वाली कुल राशि 17,600 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर रही।

ध्यान देने वाली बात यह है कि देश में निवेश की संस्कृति को कोविड के बाद के समय में उल्लेखनीय उछाल मिली। नए डीमैट खातों और म्युचुअल फंड योजनाओं में नामांकन की तादाद बढ़ी है। 2020-22 के दौरान बैंक जमा पर कम ब्याज दर ने जोखिम से बचने वाले लोगों को भी पूंजी बाजार को खंगालने का अवसर दिया। जहां तक म्युचुअल फंड उद्योग की बात है इसके लिए ‘आपदा में अवसर’ से बेहतर अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। खुशकिस्मती से भारतीय पूंजी बाजार ने 2020 के बाद से अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया है और निवेशकों का भरोसा इस पर बरकरार है।

निवेश की बढ़ती संस्कृति भी बैंकों के लिए एक सतर्क करने वाली बात है कि वे लोगों के जमा को हल्के में न लें। इसके परिणामस्वरूप बैंक बाजार के संकेतों को लेकर अब जल्दी प्रतिक्रिया दे रहे हैं और समय-समय पर अपनी जमा दरों में बदलाव कर रहे हैं।

एक सराहनीय बात यह है कि म्युचुअल फंड उद्योग की वृद्धि ने कुल बाजार ढांचे और संस्कृति को सकारात्मक ढंग से बढ़ाया है। उनमें से कुछ का जिक्र नीचे किया गया है।

म्युचुअल फंड ने भारतीय कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार को गहराई प्रदान करने में अहम काम किया है। वे इकलौते ऐसे घरेलू संस्थागत निवेशक हैं जो अपेक्षाकृत कम दर वाली डेट प्रतिभूतियों में जाना चाहते हैं। इतना ही नहीं वे अब तक मरणासन्न रहे द्वितीयक बाजार की कारोबारी गतिविधियों में भी इकलौते आशान्वित करने वाले क्षेत्र हैं।

2018 और 2020 के ऋण बाजार संकट के लिए व्यापक तौर पर अविकसित कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार जिम्मेदार था और उसने डेट म्युचुअल फंड की विश्वसनीयता पर असर डाला। अच्छी बात यह है कि उससे सीखे गए सबक बरबाद नहीं हुए।

बाजार नियामक ने म्युचुअल फंड उद्योग के अन्य प्रतिभागियों के साथ मशविरा करके नियामकीय निगरानी को मजबूत बनाने का काम किया। इसके लिए जरूरी कदमों में: डेट प्रतिभूतियों के मूल्यांकन के लिए बेहतर प्रविधि का इस्तेमाल, कॉर्पोरेट बॉन्ड रीपो के लिए सीमित उद्देश्य वाले क्लियरिंग कॉर्पोरेशन की स्थापना और कॉर्पोरेट डेट प्रतिभूतियों के लिए बैकस्टॉप फैसिलिटी की स्थापना की गई।

बैकस्टॉप ऐसी वित्तीय व्यवस्था है जहां फंड का द्वितीयक स्रोत तैयार किया जाता है ताकि यदि प्राथमिक स्रोत जरूरत पूरी न कर सके तो उसका इस्तेमाल किया जाए। फिलहाल म्युचुअल फंड की कुल प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति में से 26 फीसदी डेट प्रतिभूतियों में है।

यह कहा जा सकता है कि म्युचुअल फंड द्वारा उठाई गई जिम्मेदारी उनके हित में थी लेकिन इसमें दो राय नहीं कि ये उपाय देश में बॉन्ड बाजार को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे।

देश के पूंजी बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक तरलता और गहराई मुहैया कराने में अहम भूमिका निभाते हैं। बहरहाल, इस निवेश का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा है जो अचानक बाहर भी जा सकता है जिससे भारतीय मुद्रा में कमजोरी आ सकती है। म्युचुअल फंड और व्यक्तिगत निवेशकों ने बीते कुछ वर्षों में भागीदारी बढ़ाई है और इससे एक हद तक बाजार को स्थिर बनाने में मदद की है।

म्युचुअल फंड ने निवेश करने वाली कंपनियों के साथ संबद्धता बढ़ाकर निवेशकों के प्रति अपनी जवाबदेही को बेहतर बनाया है।

यद्यपि बाजार नियामक ने एक दशक पहले ही म्युचुअल फंड से कहा था कि वे अपने वोटिंग अधिकारों की नीतियों को स्पष्ट करें। 2021 में कॉर्पोरेट प्रस्तावों पर मतदान को अनिवार्य बनाने के नुस्खे ने म्युचुअल फंड को अधिक सक्रिय शेयरधारक की भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया है। अन्य संस्थागत निवेशक उनसे सबक ले सकते हैं। आगे देखें तो देश में म्युचुअल फंड उद्योग में वृद्धि की असीमित संभावनाएं हैं।

म्युचुअल फंड की आवक में हालिया तेजी के बावजूद उनकी प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों और सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात की बात करें तो वह केवल 18 फीसदी है। चीन में यह अनुपात 21 फीसदी, यूनाइटेड किंगडम में 75 फीसदी और अमेरिका में 149 फीसदी है। इस उत्पाद को शीर्ष 30 शहरों से परे और अधिक आकर्षक बनाने की आवश्यकता है।

‘म्युचुअल फंड सही है’ अभियान सफल रहा है। इन फंडों तथा एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एएमएफआई) को कुल प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति का दो फीसदी निवेशक शिक्षा पर व्यय करना जारी रखना चाहिए। सबसे अहम पहलू है व्यवस्था में निवेशकों का भरोसा बरकरार रखना। यह म्युचुअल फंड उद्योग की बड़ी जिम्मेदारी है-उन्हें अनुशासन बरकरार रखना होगा और खुलासों पर स्पष्टवादी होना होगा। एक खराब प्रकरण पूरा माहौल बिगाड़ सकता है।

देश में म्युचुअल फंड की वृद्धि सफलता की दास्तान है और इसका श्रेय म्युचुअल फंड उद्योग, एएमएफआई और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड को जाना चाहिए। एएमएफआई ने 2030 तक म्युचुअल फंड की प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति के लिए 100 लाख करोड़ रुपये और 10 करोड़ निवेशकों का लक्ष्य तय किया है। उन सभी को शुभकामनाएं।

(लेखक ओआरएफ के वि​शिष्ट फेलो और सेबी के पूर्व चेयरमैन हैं)

First Published : January 17, 2024 | 9:03 PM IST