Russia Political Crisis: फरवरी 2022 में जब रूस की सेनाओं ने यूक्रेन पर पूरी क्षमता के साथ हमला किया, तब से यह समझ पाना काफी मुश्किल बना हुआ है कि दरअसल रूस में, उसकी सेना के साथ और सरकार के साथ क्या हो रहा है? पिछले पखवाड़े सैकड़ों हथियारबंद लोग वाहनों में सवार होकर मॉस्को की ओर बढ़ चले थे और इस दौरान उन्हें सुरक्षाकर्मियों के मामूली प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। हमें इस बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं है कि ऐसा कैसे और क्यों हुआ होगा?
इस मामले में अविवादित तथ्य अधिक नहीं हैं। हमें पता है कि वैगनर समूह, जो भाड़े के सैनिकों का एक समूह है जिसका इस्तेमाल रूस लंबे समय से अफ्रीका और पश्चिम एशिया में करता रहा है। अभी हाल में उसने इसका इस्तेमाल यूक्रेन की खूनी जंग में किया। पिछले दिनों इस समूह ने रोस्तोव क्षेत्र की क्षेत्रीय राजधानी पर कब्जा कर लिया। हमें पता है कि वैगनर समूह का एक हिस्सा वहां से 1,100 किलोमीटर दूर मॉस्को की ओर निकल पड़ा।
हमें पता है कि उन्होंने कुछ हेलीकॉप्टर और कम से कम एक महंगे निगरानी करने वाले विमान को मार गिराया और हमें यह भी पता है कि कम से कम 24 घंटे बाद वह वापस अपने शिविरों की ओर लौट गए। आखिर में हमें बताया गया कि वैगनर का नेतृत्व करने वालों को बेलारूस में शरण दी जाएगी। इसके अलावा उसके कुछ जवानों को रूसी सेना में नियमित रूप से शामिल किया जाएगा।
क्या यह गृह युद्ध की शुरुआत है? तख्ता पलट की कोशिश की गई? क्या यह भुगतान और दर्जे से जुड़ा कॉर्पोरेट विवाद था? एक सैन्य फेरबदल को इस तरह ढकने का प्रयास किया गया? या यह एक तरीका था जिसके जरिये रूसी लड़ाकों को बेलारूस भेजा जा सके और वहां से यूक्रेन की उत्तरी सीमा पर तैनात किया जा सके? क्या इससे राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन की देश पर पकड़ कमजोर हुई है या संभावित विपक्ष को कुचलने की उनकी प्रतिबद्धता मजबूत हुई है?
क्या रोस्तोव के नागरिकों की वैगनर लड़ाकों का स्वागत करने की तस्वीरें देश के राष्ट्रवादी झुकाव को उद्घाटित करती हैं या शायद पुतिन के साथ उनके असंतोष को दिखाती हैं? या फिर वे तस्वीरें भी प्रायोजित थीं? अगर वे तस्वीरें वास्तविक थीं तो उन्हें सरकारी नियंत्रण वाले टेलीविजन पर क्यों प्रसारित किया गया जबकि राष्ट्रपति पहले ही वैगनर लड़ाकों को गद्दार बताकर उनकी निंदा कर चुके थे।
बीते ढाई दशक में रूस में सच को छिपाने के लिए कई तरह के कथानकों का इस्तेमाल किया गया है। रूस ने इसे पश्चिम के खिलाफ एक युद्ध नीति के रूप में भी इस्तेमाल किया। लोगों को भटकाने की कोशिश की गई ताकि भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो। यह एक अलग तरह का प्रभावी नवाचार है जो 20वीं सदी के प्रोपगंडा की तुलना में अधिक किफायती भी है और प्रभावी भी।
परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि यह रूस के लिए काम आने के साथ-साथ उसके खिलाफ भी जाता है। ऐसे अवसरों पर राज्य को स्पष्ट संचार से लाभ मिलता है जिस पर जनता और बाकी विश्व को भी यकीन हो। परंतु रूस से निकलने वाले मिलेजुले कथानक पुतिन की स्थिति को कमजोर करते हैं।
वर्षों तक रूस आधिकारिक तौर पर इस बात से इनकार करता रहा कि वैगनर समूह उसकी विदेश नीति का हिस्सा है। ऐसा इसलिए किया गया ताकि भाड़े के ये सैनिक अफ्रीका तथा अन्य स्थानों पर मानवाधिकारों का हनन और अतियां करें तो रूस के नेतृत्व को इसके लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सके।
रूस की कमांड श्रृंखला की भी खुली पोल
परंतु पुतिन को आधिकारिक रूप से बताना पड़ा कि वैगनर को रूसी खजाने से कितना धन दिया गया। उन्हें ऐसा यह साबित करने के लिए करना पड़ा कि समूह को एहसान फरामोश दिखा सकें। वैगनर के मार्च को सैकड़ो किलोमीटर तक किसी प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा जिससे पता चलता है कि रूसी सशस्त्र बलों के भीतर इस बात को लेकर काफी भ्रम था कि उन पर हमला करना चाहिए या नहीं। दूसरे शब्दों में रूस की कमांड श्रृंखला की भी पोल खुल गई। वह या तो बंटी हुई है या फिर अक्षम है।
पुतिन ने शासन को लेकर जो नवाचार किए उनमें से कई ऐसे हैं जिन्हें उनके जैसा अधिनायकवादी झुकाव रखने वाले अन्य लोकतांत्रिक ढंग से चुने शासकों ने भी अपनपाया है। उनमें से तीन प्रमुख नवाचार इस प्रकार हैं। पहला, कथानकों पर पूर्ण नियंत्रण की जगह भ्रम और इनकार। दूसरा, एक अनकहा अनुबंध जिसके तहत उदार स्वतंत्रताओं की रक्षा के वादे की जगह आज्ञाकारिता लागू करके आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता मुहैया कराई जाती है। आखिर में, राष्ट्रीय नेता को सबसे शक्तिशाली दिखना चाहिए और विपक्ष को खत्म करने को कमी नहीं बल्कि वरदान माना जाना चाहिए।
इन तीनों बातों की स्थिति कैसी है? बहुत अच्छी नहीं। पुतिन ने कोशिश की लेकिन वह अब तक कथानक पर नियंत्रण कायम रखने में कुछ हद तक नाकाम रहे हैं। इसे पश्चिमी प्रोपगंडा या उदार वैश्विक मीडिया ने क्षति नहीं पहुंचाई बल्कि उनके अपने अति राष्ट्रवादी और आंतरिक सोशल मीडिया ने ऐसा किया।
उन्होंने रूसी नागरिकों से जिस स्थिरता का वादा किया था वह तो खुद ब खुद बिखरी हुई नजर आती है क्योंकि भाड़े के सैनिकों की एक सेना बिना किसी प्रतिरोध के पूरे देश में घूमती रहती है। इसकी वजह से यह अफवाह तक उड़ी कि राष्ट्रपति को अपने निजी विमान में बैठकर भागना पड़ा। इससे शक्ति का संकेत तो नहीं मिलता। इस बात से भी मदद नहीं मिलती कि अंतिम समझौता पुतिन ने नहीं बल्कि बेलारूस के राष्ट्रपति ने कराया। एक ऐसे देश में जहां विपक्षी नेताओं को या तो जेल में डाल दिया गया है या जो रहस्यमय ढंग से मारे जाते हैं वहां असली परीक्षा की घड़ी में मजबूती कहां चली गई?
रूस में पिछले पखवाड़े जो हुआ उसमें से काफी बातें ऐसी हैं जो हम नहीं जानते। परंतु फरवरी 2022 से रूस की कहानी से कम से कम दुनिया के भावी अधिनायकवादी शासकों को यह नजर आना चाहिए कि पुतिन के शासन संबंधी नवाचार उतने मजबूत नहीं हैं जितना उन्हें बताया जाता है।