भारत के ज्यादातर लोगों का मानना है कि कार्बन उत्सर्जन घटाने से देश का विकास बाधित होगा। उनका विश्वास है कि कोयले पर आधारित ऊर्जा का विकल्प सौर ऊर्जा नहीं हो सकती है। विद्युत चालित कारें अत्यधिक महंगी हैं। इसलिए लोग जानवरों के जीवाश्म से बने ईंधन की जगह पौधों के प्रोटीन पर आश्रित ईंधन की ओर रुख नहीं करेंगे। उनका मानना है कि ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले जीवाश्म आधारित ईंधन (भूरी) तकनीकों की जगह कम कार्बन उत्सर्जन करने वाली (हरित) तकनीकें ज्यादा नुकसान करेंगी। यदि भूरी तकनीकों की अपेक्षा हरित तकनीकों की लागत कम होगी तो भारत के विकास के लिए नेट जीरो उत्सर्जन अच्छा रहेगा। ऐसे में बेहतर यह रहेगा कि बाजार की दशा व दिशा इसे रास्ते पर आगे बढ़े। नेट जीरो मुनाफे, लोगों और ग्रह के लिए पूरी तरह फायदेमंद होगा।
अनुमान यह है कि हालिया नीतियों के कारण वैश्विक स्तर पर साल 2100 तक तापमान में 2-3 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होगी। तेजी से तापमान बढ़ने की स्थिति में भारत पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। ऐसे में अकाल, बाढ़, तटीय इलाकों के जलमग्न होने, हिमनदों के पिघलने और गर्म हवाओं के कारण हमारी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा और नए रोजगारों का सृजन ठहर सा जाएगा। मौसम की अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियां आधारभूत संरचना को नुकसान पहुंचाएगी और ऐसे में आपदा प्रबंधन के लिए कहीं अधिक निवेश की जरूरत होगी। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से तटीय शहरों को खतरा पैदा हो जाएगा। स्विस रे ने तापमान 1.5 डिग्री की जगह 2-3 डिग्री बढ़ने की तुलना करते हुए अनुमान जताया है कि ऐसे में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 10-20 प्रतिशत तक कम हो सकता है। इसके अलावा हमारे शहरों को जीवाश्म आधारित ईंधन से अत्यधिक नुकसान पहुंचाने वाले वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ता है। भारत में वायु प्रदूषण के कारण हर साल 10 लाख से 20 लाख लोगों की मौत होती है।
भारत के नेट जीरो की तुलना वैश्विक स्तर पर 2-3 डिग्री तापमान में बढ़ोतरी से तुलना की गई है। अभी तक नेट जीरो को अपनाने की अवस्था में जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव दिखाई नहीं देते हैं। अभी तक यह माना जाता रहा है कि जीवाश्म पर आधारित ईंधन के दाम कम ही रहेंगे। हालांकि भूराजनीतिक दशाओं और कम निवेश के कारण जीवाश्म आधारित ईंधन के दाम अत्यधिक बढ़ सकते हैं। इस साल तक भारत का कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले का आयात 250 अरब डॉलर के करीब हो जाएगा और आयात में इनकी हिस्सेदारी एक तिहाई से अधिक हो सकती है।
विश्व 2050 तक जीरो उत्सर्जन को अपना लेगा। अनुमान यह है कि तब भारत की अर्थव्यवस्था 7 अरब टन से अधिक कार्बन उत्सर्जन के स्तर को पार कर सकती है। हमारे नेट जीरो के रास्ते में हरित तकनीकों जैसे सौर और पवन ऊर्जा, इलेक्ट्रिक मोबिलटी, हरित हाइड्रोजन और पौधों के प्रोटीन के क्षेत्रों में अत्यधिक व तुरंत निवेश की जरूरत होगी। यह माना जाता रहा है कि भूरी तकनीकों की अपेक्षा हरित तकनीकों में अधिक निवेश की जरूरत है। इसलिए इसे बिल गेट्स ने ‘ग्रीन प्रीमियम’ (महंगी हरित) नाम दिया। हालांकि अभिनव प्रयोग करने वाले भारतीय कारोबारियों ने ‘ग्रीन प्रीमियम’ को ‘ग्रीन डिस्काउंट’ (छूट वाली हरित) में परिवर्तित कर दिया है।
कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्र की अपेक्षा सौर ऊर्जा से बनी विद्युत की लागत 20-30 प्रतिशत कम आ रही है और यह पूरे दिन मुहैया कराई जा रही है। भारत में बिकने वाले ऑटो रिक्शा में 90 प्रतिशत से अधिक इलेक्ट्रिक ईंधन से चालित हैं। सामान्य ऑटो रिक्शा की अपेक्षा इलेक्ट्रिक ऑटो रिक्शा सस्ते तो हैं ही, साथ ही इनकी परिचालन लागत भी कम है। डीजल और पेट्रोल से चलने वाली कारों की अपेक्षा इलेक्ट्रिक से चलने वाली कारें सस्ते दामों पर मुसाफिरों को एक जगह से दूसरी जगह लेकर जा रही हैं। इसी तरह भारत में इस्तेमाल होने वाले इलेक्ट्रिक व्हीकल (ईवी) मुसाफिरों को कम मूल्य पर गंतव्यों तक लेकर जा रहे हैं। दुनिया भर के तकनीकविदों के सहयोग से भारत के दिग्गज कारोबारी समूह यह प्रयास कर रहे हैं कि हरित हाइड्रोजन की कीमत एक डॉलर प्रति किलोग्रास से कम लाई जा सके। चीनी की मिल एथनॉल का उत्पादन कर रही हैं ताकि इसका पेट्रोल से सम्मिश्रण कर जीवाश्म ईंधन की लागत को कम लाया जा सके। सोयाबीन से तैयार सोया दूध की कीमत डेयरी के दूध से कम है।
भारत पेट्रोल, डीजल और कोयले पर उच्च आबकारी करों के जरिये कार्बन पर शुल्क लगा रहा है। औद्योगिक उत्सर्जन के लिए उत्सर्जन व्यापार योजना की घोषणा कर दी गई है। छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने, बिजली चालित वाहनों और उनके चार्जिंग स्टेशनों के नेटवर्क के लिए महत्त्वपूर्ण रियायतें दी जा रही हैं। ये रियायतें तय करेंगी कि हरित तकनीकें सस्ती दर पर मुहैया हों और भारत के स्टार्टअप सिस्टम को कहीं बेहतर समाधान मुहैया कराए जा सकें। इससे हम अधिक से अधिक हरित यूनिकॉर्न (एक अरब से अधिक मूल्य की कंपनियों) को बनने में मदद देंगे। इससे देश में नए हरित उद्योगों का उदय होगा और इससे तेजी से कार्बन उत्सर्जन घटेगा।
सरकार की नीतियों की मदद से सस्ती हरित तकनीक अपनाने से भारत की अर्थव्यवस्था में तकनीक के स्तर पर अत्यधिक परिवर्तन आएगा। बीते दशकों में डिजिटल तकनीकों ने एनालॉग तकनीक की जगह ले ली है। बाजार आधारित निवेश, तकनीकी विकास और व्यापक औद्योगिक गतिविधियों के कारण व्यापक रूप से आईटी, टेलीकॉम, वित्तीय और मीडिया उद्योग को बढ़ावा मिला है। अब हरित उद्योग फलेंगे-फूलेंगे।
कई व्यापक अध्ययनों के मुताबिक इस सदी के मध्य तक नेट शून्य उत्सर्जन का स्तर पाने के लिए भारत को हर साल 50 से 100 अरब डॉलर का निवेश करने की जरूरत होगी। प्राइवेट क्षेत्र की पूंजी से हरित उद्यमिता का तेजी से विकास होगा। हरित उद्योगों से मिलने वाले निवेश इस क्षेत्र में और निवेश को आकर्षित करेगा। इससे बाजार भारत को नेट जीरो के रास्ते पर ले जाएगा। नेट जीरो का रास्ता अपनाने पर जीडीपी की विकास दर कहीं ज्यादा होगी। ऐसे में ज्यादा नौकरियों का सृजन होगा, वायु प्रदूषण घटेगा, भुगतान का बेहतर संतुलन होगा और भारत की अर्थव्यवस्था अधिक मजबूत हो जाएगी। यदि हम 2-3 डिग्री तापमान में बढ़ोतरी से तुलना करेंगे तो नेट जीरो का विकास अधिक सकारात्मक रहेगा।
भारत हरित प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ऐसे स्तर पर पहुंचने के करीब है कि वह अन्य देशों को सेवाएं मुहैया कराकर धन अर्जित कर सकता है। निर्विवाद रूप से भूरी तकनीकों की अपेक्षा हरित तकनीकें अधिक सस्ती हैं। जी-7 देशों को हमारे नेट जीरो विकास के लिए पर्याप्त रूप से वित्तीय तंत्र से मदद अवश्य मुहैया करानी चाहिए। इससे हमारी कंपनियों और उद्यमियों को नए हरित कारोबार के लिए संसाधन उपलब्ध हो पाएंगे और वे वर्तमान कारोबार को परिवर्तित भी कर पाएंगे। मार्केट की शक्तियां और रिटर्न से प्राप्त पूंजी कार्बन उत्सर्जन को तेजी से कम करने में मदद करेगी। नेट जीरो से भारत में सकारात्मक आर्थिक विकास, रोजगार का सृजन और लोगों की सेहत बेहतर होगी।
(लेखक संसद की वित्तीय स्थायी समिति के चेयरमैन हैं। वह झारखंड के हजारीबाग से लोकसभा के सदस्य हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं)