मार्च में कोरोनावायरस महामारी की वजह से लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के बाद पहली बार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह एक लाख करोड़ रुपये के स्तर के पार गया। अक्टूबर में 1.05 लाख करोड़ रुपये का संग्रह हुआ जो सितंबर के 0.95 लाख करोड़ रुपये से अधिक है। यह राशि अक्टूबर 2019 के जीएसटी संग्रह से भी 10 फीसदी अधिक है। इस बीच विनिर्माण संबंधी मार्केट पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) जिसे औद्योगिक क्षेत्र में व्यापक तौर पर आशावाद का प्रतीक माना जा रहा है, वह अक्टूबर में 58.9 के स्तर तक चढ़ गया जो सन 2007 के बाद का उच्चतम स्तर है। मार्च में लॉकडाउन लगने के बाद से सूचकांक ऋणात्मक हो गया था। वाहनों की बिक्री और ईंधन खपत का मासिक आंकड़ा भी उत्साह बढ़ाने वाला है। इसे इस बात का संकेत माना जा सकता है कि लॉकडाउन के प्रतिबंध शिथिल होने के बाद आखिरकार लॉजिस्टिक्स की बाधा दूर हो रही है और अर्थव्यवस्था से नदारद हो चुकी मांग और उत्पादन दोनों बहाल हो रहे हैं।
स्वाभाविक सी बात है कि लॉकडाउन के दौरान अर्थव्यवस्था की जितनी बुरी स्थिति थी उसे देखते हुए विभिन्न गतिविधियों की बहाली से वैसी तेजी आना स्वाभाविक है जो हमें पीएमआई में देखने को मिली। हालांकि इसके अलावा भी ऐसी घटनाएं हैं जिनसे आशावाद उत्पन्न होता है। इस समाचार पत्र ने भी यह प्रकाशित किया कि अब तक सामने आए सूचीबद्ध कंपनियों के तिमाही नतीजों में सालाना आधार पर कर पश्चात लाभ में उल्लेखनीय इजाफा देखने को मिला है। यहां तक कि इस नमूने में पिछले साल के असंगत और एकबारगी नुकसान को भी हटा दिया गया है। परिचालन लाभ और कर पश्चात लाभ में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है। इससे यह संकेत मिल सकता है कि कॉर्पोरेट जगत को मांग और वृद्धि के पूरी तरह बहाल होने तक कुछ अतिरिक्त उपाय करने होंगे।
बहरहाल, इन आंकड़ों से जो भी आशावाद उत्पन्न हुआ है उसका संयमित परीक्षण इस आधार पर किया जाना चाहिए कि क्या ये वाकई में सुधार की बहाली दर्शाते हैं। देश में आंकड़ों पर नजर रखने से एक बात पता चलती है कि त्योहारी मौसम के आधार पर निर्णायक नतीजे निकालना मुश्किल है। जब तक त्योहार के बाद के महीनों के आंकड़े सामने नहीं आ जाते और इस सुधार में स्थायित्व नहीं नजर आता है तब तक इन हालिया निष्कर्षों के आधार पर कोई नीति तैयार करना घातक भी हो सकता है। वित्त मंत्रालय को खास तौर पर सावधान रहना होगा। अब वह उस स्थिति में पहुंच चुका है जहां अगले वर्ष के बजट की तैयारी शुरू हो जाती है। परंतु हालिया आंकड़ों को आधार मानकर कोई बजट अनुमान तैयार करना या नीति निर्माण करना समझदारी नहीं होगी। नीति निर्माताओं को यह जानने के लिए कुछ महीनों तक और प्रतीक्षा करनी चाहिए कि आखिर सुधार किस हद तक हुआ है?
इससे न केवल बजट का गणित प्रभावित होगा। पिछले कुछ वर्षों की नाकामी के बाद इस बार सरकार को इस पर काफी सख्ती से काम करना होगा। सरकार को बजट में व्यय और क्षेत्रवार प्रोत्साहन की योजनाओं पर भी सावधानी से काम करना होगा। उदाहरण के लिए यह मानना बहुत जल्दबाजी होगी कि मांग अपने दम पर सुधार की दिशा में अग्रसर है। इसके अलावा वायरस का संक्रमण दोबारा फैलने का खतरा तो है ही। वायरस का संक्रमण दोबारा फैलने पर आपूर्ति शृंखला बाधित होगी और मांग कमजोर पड़ेगी। इन आशावादी आंकड़ों के बावजूद आने वाले महीने का घटनाक्रम ही नहीं बल्कि अगला वित्त वर्ष भी गहरी अनिश्चितता का शिकार रहेगा और इस दौरान कई आकस्मिक कारकों पर ध्यान देना होगा। सरकार को नीति संबंधी निर्णय लेने से पहले कुछ समय प्रतीक्षा करनी चाहिए।
