इस माह शुरू हुए उत्पादन सत्र में गन्ने, चीनी और गन्ने से बनने वाले एथनॉल का उत्पादन नई ऊंचाइयों पर पहुंचने की संभावना के बीच ऐसी कोई वजह नजर नहीं आती जिसके चलते गत मई में चीनी के निर्यात पर लगाई गई रोक को जारी रखा जाए। सच तो यह है कि इस प्रतिबंध को जल्दी हटाने और 2022-23 की चीनी निर्यात नीति की घोषणा करने से इस उद्योग को अपनी उत्पादन योजनाओं को मजबूत बनाने और संभावित आयातकों के साथ निर्यात सौदे करने में मदद मिलेगी।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें बीते कुछ महीनों में अस्थिर रही हैं और अगली मई में ब्राजील से ताजा खेप की आवक के बाद इन कीमतों में काफी नरमी आ सकती है। ब्राजील दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है।
ब्राजील और एक अन्य बड़े चीनी उत्पादक देश थाईलैंड में पिछले सत्र के खराब प्रदर्शन के बाद इस मौसम में उत्पादन में काफी सुधार होने की संभावना है। ऐसे में भारतीय विक्रेताओं के लिए निर्यात की अवधि नवंबर से अप्रैल तक ही रहेगी। इस कम अवधि को देखते हुए भी निर्यात पर से प्रतिबंध हटाना जरूरी है।
गत वर्ष (2021-22) भारतीय चीनी क्षेत्र के लिए विशिष्ट था जब उसने बिना सरकारी मदद के बेहतरीन प्रदर्शन किया था। उस वर्ष चीनी, गन्ने और एथनॉल के उत्पादन के साथ-साथ गन्ना खरीद, किसानों को भुगतान और चीनी निर्यात के पिछले सभी रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए थे।
इससे पहले यह उद्योग सरकार की मदद पर टिका था जो अक्सर राहत पैकेज के रूप में मिला करती थी। अंतरराष्ट्रीय कीमतों के अनुकूल होने तथा सरकार द्वारा गन्ने के रस और चीनी से सीधे एथनॉल उत्पादन की इजाजत देने से भी इस अहम कृषि आधारित उद्योग को मदद मिली थी।
हालांकि सरकार ने मई 2021 में चीनी निर्यात पर एक करोड़ टन की सीमा लगाई थी ताकि घरेलू चीनी कीमतों में बढ़ोतरी को रोका जा सके लेकिन वह 12 लाख टन अतिरिक्त चीनी को विदेश भेजने से नहीं रोक सकी क्योंकि निर्यात प्रतिबद्धताओं को निभाने के लिए ऐसा करना जरूरी था।
इसके बावजूद 2021-22 का चीनी सत्र 55 लाख टन के अच्छे खासे शेष भंडार के साथ समाप्त हुआ। चीनी के नए सत्र में हालात और अच्छे रह सकते हैं क्योंकि गन्ने की खेती का रकबा बढ़ा है और फसल के भी बेहतर होने की आशा है। कृषि मंत्रालय के प्रारंभिक अनुमान के मुताबिक गन्ने के उत्पादन में 3.3 करोड़ टन का इजाफा हो सकता है। माना जा रहा है कि इसकी बदौलत चीनी उत्पादन 30 लाख टन बढ़ेगा।
बहरहाल, चीनी उद्योग का मानना है कि ये अनुमान बहुत संकीर्ण ढंग से लगाए गए हैं और फसल उत्पादन कहीं अधिक हो सकता है। भारतीय चीनी मिल एसोसिएशन ने भी 2022-23 के लिए चीनी उत्पादन अनुमान में करीब 10 लाख टन का इजाफा करते हुए इसे 3.55 करोड़ टन से 3.65 करोड़ टन कर दिया है।
वहीं खपत के करीब 2.75 करोड़ टन रहने का अनुमान लगाया गया है। एथनॉल उत्पादन के लिए गन्ने के रस और चीनी का इस्तेमाल करने और चीनी सत्र के अंत में करीब 60 लाख टन चीनी का भंडार अगले वर्ष के लिए रखने के साथ निर्यात के लिए अधिशेष चीनी की विशिष्ट उपलब्धता करीब 90 लाख टन रहने की बात कही गई है।
जब तक सरकार इन हकीकतों को तत्काल नहीं पहचानती और अधिशेष भंडार के निर्यात की इजाजत नहीं देती, चीनी क्षेत्र एक बार फिर अनावश्यक रूप से सभी अंशधारकों के लिए मुश्किल क्षेत्र बन जाएगा। इससे बचा जाना चाहिए।