ठीक सौ साल पहले वर्ष 1924 में देश में प्रथम रेल बजट प्रस्तुत किया गया था। वह ऐसा कालखंड था जब रेल बजट का आकार सामान्य बजट से भी अधिक था। तब से परिस्थितियां बहुत बदल चुकी हैं और भारत में अब अलग से रेल बजट प्रस्तुत करने का चलन समाप्त कर दिया गया है। वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में भारतीय रेल का काफी कम जिक्र किया गया है, जिस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। केवल बजट में उल्लेख नहीं होने का यह कतई अभिप्राय नहीं कि भारतीय रेल की अनदेखी हुई है।
वित्त वर्ष 2024-25 में रेलवे के लिए पूंजीगत व्यय 2.62 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है, जिनमें सकल बजट सहायता 2.52 लाख करोड़ रुपये है। शेष 10,000 करोड़ रुपये बजट से इतर अन्य स्रोतों से जुटाए जाएंगे। पिछले वित्त वर्ष की तुलना में इस वर्ष बजट में पूंजीगत आवंटन में मात्र 5 प्रतिशत बढ़ोतरी की गई है, पंरतु इसे वर्ष 2023-24 के संदर्भ में देखा जाना चाहिए जब पूंजीगत आवंटन उससे पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 51 प्रतिशत अधिक रहा था।
इस वर्ष के बजट में रेल संपर्क और औद्योगिक विकास को एक दूसरे से जोड़ने का प्रस्ताव दिया गया है। इस दिशा में आगे बढ़ते हुए बड़े औद्योगिक गलियारों जैसे विशाखापत्तनम-चेन्नई औद्योगिक गलियारा, हैदराबाद-बेंगलूरु गलियारा और अमृतसर-कोलकाता औद्योगिक गलियारा आदि में संपर्क बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया गया है। हालांकि, पूंजीगत आवंटन बढ़ाने के परिणाम मिले-जुले रहे हैं।
वर्ष 2023-24 के संशोधित अनुमान दर्शाते हैं कि नई रेल पटरियां बिछाने, आमान परिवर्तन, रेल पटरी का दोहरीकरण और रेल मार्गों के नवीकरण पर संचयी व्यय 95,560.57 करोड़ रुपये रहा था। चालू वित्त वर्ष में इन चार मदों में कुल आवंटन घटकर 86,286.42 करोड़ रुपये रह गया।
रेल डिब्बों और विद्युतीकरण योजनाओं पर आवंटन में मामूली कमी की गई है। हालांकि, पूंजीगत व्यय बढ़ाने के बाद भी परिचालन क्षमता में सुधार नहीं हुआ है। उदाहरण के लिए वर्ष 2019-20 में परिचालन अनुपात 95 प्रतिशत था, जिसका आशय था कि भारतीय रेल को प्रत्येक 100 रुपये कमाई में 95 रुपये खर्च करने पड़े थे। वर्ष 2023-24 में परिचालन अनुपात बिगड़कर 98.65 प्रतिशत हो गया।
पिछले 10 वर्षों में भारतीय रेल ने 31,180 किलोमीटर से अधिक रेल पटरियां बिछाई हैं। इसी अवधि के दौरान पटरियां बिछाने की गति भी तीन गुना से अधिक हो गई है। देश में जितने बड़ी लाइन हैं, उनमें लगभग 95 प्रतिशत हिस्से पर विद्युतीकरण कार्य पूरा हो चुका है। अकेले वर्ष 2023-24 में भारतीय रेल ने 7,188 किलोमीटर मार्गों का विद्युतीकरण किया था।
हालांकि, इन उपलब्धियों के बाद भी रेल मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार मालगाड़ियों की औसत रफ्तार 2023-24 में 23.6 किलोमीटर प्रति घंटा रही है। रफ्तार से जुड़ी पाबंदियों के कारण अर्द्ध-तेज रफ्तार वाली वंदे भारत रेलगाड़ियों की औसत रफ्तार भी 2020-21 में 84.48 किलोमीटर प्रति घंटा से कम होकर 2023-24 में 76.25 किलोमीटर प्रति घंटा रह गई है।
यह स्पष्ट नहीं है कि पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी का असर भारतीय रेल की बढ़ी परिचालन क्षमता के रूप में दिखना कब शुरू होगा। कम रफ्तार के साथ ऊंची लागत वाले माल की ढुलाई का सीधा मतलब है कि भारतीय रेल को परिवहन के अन्य वैकल्पिक माध्यमों जैसे सड़क मार्ग आदि के हाथों राजस्व गंवाना पड़ा रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में रेल दुर्घटनाएं बढ़ी हैं (यद्यपि पहले की तुलना में अब इनमें कमी आई हैं) परंतु यह आश्चर्य का विषय है कि राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष 10,000 करोड़ रुपये के स्तर पर थम गया है। कवच स्वचालित रेल सुरक्षा प्रणाली भी केवल 1,500 किलोमीटर रेल मार्गों पर सक्रिय है, जो देश में रेल तंत्र का केवल 2.14 प्रतिशत हिस्सा है।
भारतीय रेल को रेलगाड़ियों खासकर व्यस्त मार्गों पर सामान्य डिब्बों (गैर-वातानुकूलित) में भीड़ की समस्या दूर करने पर ध्यान देना होगा। किराये तर्कसंगत बनाकर और क्षमता बढ़ाकर इसका समाधान निकाला जा सकता है। यह स्पष्ट है कि तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के साथ गति बनाए रखने के लिए भारतीय रेल को बड़े बदलाव करने होंगे।