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निगरानी पर सवाल

Last Updated- December 14, 2022 | 9:08 PM IST

एक और वित्तीय संस्थान की नाकामी के बाद उसे बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मंगलवार को लक्ष्मी विलास बैंक का सिंगापुर के डीबीएस बैंक की भारतीय अनुषंगी के साथ विलय करने का प्रस्ताव रखा। लक्ष्मी विलास बैंक में सरकार ने एक महीने के लिए कई पाबंदियां लगाई हैं और इस अवधि में जमाकर्ता एक दिन में अधिकतम 25,000 रुपये ही निकाल सकेंगे। योजना के मुताबिक लक्ष्मी विलास बैंक की समस्त चुकता शेयर पूंजी, आरक्षित निधि और अधिशेष को बट्टेखाते डाला जाएगा। बहरहाल जमाकर्ताओं और कर्मचारियों के हितों की रक्षा की जाएगी।
यह एक सरल प्रक्रिया नजर आ सकती है जहां जमाकर्ताओं और कर्मचारियों के हितों का संरक्षण होगा और एक संकटग्रस्त संस्था का विलय एक ऐसे मजबूत वित्तीय संस्थान में किया जाएगा। डीबीएस बैंक की बैलेंस शीट मजबूत है और उसके पास पर्याप्त नियामकीय पूंजी है। वह ऋण को बढ़ावा देने के लिए अतिरिक्त पूंजी लगाने को भी तैयार है। सरकार और नियामक दोनों ने सुसंगत तरीके से इस प्रक्रिया की शुरुआत करके अच्छा किया है। इससे नुकसान को कम करने में मदद मिली है। इसके अलावा इक्विटी को बट्टेखाते में डालने से बैंक के शेयरधारकों को यह संदेश जाएगा कि कुप्रबंधन की स्थिति में उन्हें सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।
बहरहाल, सच यही है कि लक्ष्मी विलास बैंक की स्थिति इतनी खराब होने दी गई कि उसकी वित्तीय हालत में अत्यधिक अस्थिरता आ गई। ऐसे में देश में वित्तीय क्षेत्र की निगरानी की गुणवत्ता पर सवाल उठने लाजिमी हैं। बैंक की पूंजी लगभग समाप्त हो गई और गत वित्त वर्ष के अंत तक उसका फंसा हुआ कर्ज 25 प्रतिशत तक जा पहुंचा। यह भी स्पष्ट है कि बैंक के लिए पूंजी जुटाना मुश्किल हो रहा था। बल्कि सितंबर में बैंक के अंशधारकों ने कई बोर्ड सदस्यों और मुख्य कार्याधिकारी की दोबारा नियुक्ति का विरोध किया था। परंतु चिंता की बात यह है कि लक्ष्मी विलास बैंक की नाकामी इकलौती घटना नहीं है। हाल के दिनों में बैंकों और वित्तीय संस्थानों की नाकामी का सिलसिला देखने को मिला है। इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज (आईएलऐंडएफएस), पंजाब ऐंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव (पीएमसी) बैंक, दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड, येस बैंक और अब लक्ष्मी विलास बैंक ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं। इससे आरबीआई की बैंकों और वित्तीय क्षेत्र की निगरानी की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते हैं।
पीएमसी बैंक के मामले में नियामक धोखाधड़ी का पता ही नहीं लगा सका और आईएलऐंडएफएस, येस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक के मामले में लंबे समय तक समस्या को पनपने दिया गया। येस बैंक मामले में तो प्रबंधन के पूंजी जुटाने के बार-बार किए जा रहे दावों पर भी पर्याप्त सवाल नहींं किए गए। केंद्रीय बैंक की सालाना निगरानी पर भी सवाल उठेंगे जिसके जरिए जोखिम का पता लगाया जा सकता है। जाहिर है बैंकिंग नियामक को काफी आत्मावलोकन की आवश्यकता है। आरबीआई ने अक्सर यह दावा किया है कि उसके पास सरकारी बैंकों की निगरानी के पर्याप्त अधिकार नहीं है। यही कारण है कि फंसे कर्ज में इजाफा होता है। निजी क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों की निगरानी के उसके पास पर्याप्त अधिकार हैं लेकिन वह उनकी भी समुचित निगरानी नहीं कर सका। वित्तीय क्षेत्र की प्रभावी निगरानी की आवश्यकता पर जरूरत से अधिक जोर नहीं दिया जा सकता। ऐसे संस्थान हमेशा रहेंगे जो समय के साथ नाकाम हो जाएं लेकिन नियामक को इस स्थिति में रहना चाहिए कि वह समय पर उचित कदम उठाकर व्यवस्था, जमाकर्ताओं पर इसके प्रभाव को सीमित कर सके। ऐसे में आरबीआई को अपने निगरानी ढांचे की समीक्षा करनी चाहिए और ऐसे कदम उठाने चाहिए ताकि वित्तीय तंत्र में ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।

First Published - November 18, 2020 | 11:27 PM IST

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