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Mizoram: अर्थव्यवस्था बेहाल, लालदुहोमा कैसे करेंगे कमाल

अधिकांश पूर्वोत्तर राज्यों की तरह मिजोरम भी अनुदान और सहायता राशि के लिए काफी हद तक केंद्र पर निर्भर है।

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आदिति फडणीस   
Last Updated- January 05, 2024 | 9:44 PM IST

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 1974 बैच के पूर्व अधिकारी और मुख्यमंत्री लालदुहोमा के नेतृत्व में जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेपीएम) को मिजोरम की सत्ता में आए हुए लगभग एक महीना हो गया है। हालांकि इतने कम वक्त में ही मिजोरम ने केंद्र सरकार के नेतृत्व के सामने कुछ बातें बिल्कुल साफ कर दी हैं।

पहली बात, जेपीएम भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ कोई राजनीतिक समझौता नहीं करेगी। इसने अपनी बात बिना किसी नाराजगी के सद्भावना के साथ दृढ़तापूर्वक बता दी है। सद्भावना से इसलिए कि पार्टी केंद्र से कोई झगड़ा नहीं मोल लेना चाहती

अधिकांश पूर्वोत्तर राज्यों की तरह मिजोरम भी अनुदान और सहायता राशि के लिए काफी हद तक केंद्र पर निर्भर है। लेकिन सभी पूर्वोत्तर राज्यों में, मिजोरम का ऋण-जीडीपी अनुपात सबसे अधिक है। पिछले चार वर्षों में मिजो नैशनल फ्रंट (एमएनएफ) सरकार ने लगभग 5000 करोड़ रुपये का बढ़ा लिया है। इसके अलावा खुद के शुद्ध कर राजस्व के लिहाज से देखें तो मिजोरम वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 में सभी पूर्वोत्तर राज्यों के मुकाबले सबसे कम राजस्व जुटाने वाला राज्य रहा है।

जेपीएम ने नई दिल्ली को संकेत दिए हैं कि वह भाजपा के साथ संबंध बनाने के लिए पूर्वोत्तर राज्यों का अनुसरण नहीं करेगी। पूर्व मुख्यमंत्री जोरामथंगा ने चुनाव से पहले भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ दिया था लेकिन वह भाजपा के नेतृत्व वाले पूर्वोत्तर विकास गठबंधन (एनईडीए) से अलग नहीं हुए। पदभार संभालते ही लालदुहोमा ने घोषणा की कि उनकी पार्टी ‘ईश्वर की मदद’ के सहारे राज्य में सरकार चलाएगी।

कार्यभार संभालने के पहले ही दिन उन्होंने पार्टी के सहयोगियों के साथ मिजोरम चर्च लीडरशिप कमेटी के सदस्यों से भी मुलाकात की। स्थानीय मीडिया के मुताबिक राज्य सरकार पर विधानसभा चुनाव जीतने वाले दो भाजपा विधायकों में से कम से कम एक को सरकार मे शामिल करने का दबाव था।

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दरअसल, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वनलालमुआका ने चुनाव परिणाम के बाद आइजोल में पत्रकारों से कहा था कि उनकी पार्टी अगली सरकार का हिस्सा होगी। हालांकि अभी तक इसके आसार नहीं दिख रहे हैं।

कहने का यह मतलब नहीं है कि जेपीएम-भाजपा के साथ टकराव की ओर है। लालदुहोमा के केंद्र में खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अच्छे व्यक्तिगत संबंध हैं। लेकिन दोस्ती और भाजपा को सरकार में शामिल करने से जेपीएम के रणनीतिक लक्ष्य नहीं सधते।

चुनाव अभियान में ‘कलफुंग थार: मिपुई सॉरकर’ (एक नई व्यवस्था और जनता की सरकार) के नारे ने उनके युवा समर्थकों की उम्मीदें बढ़ा दी हैं जिनकी संख्या काफी है। इस पार्टी ने कुल 39 उम्मीदवार चुनाव में उतारे जिनमें से 15 की उम्र 50 साल से कम थी, हालांकि लालडोहमा खुद 77 साल के हैं।

मुमकिन है कि जेपीएम ने भी मिजोरम के लिए अपने लक्ष्यों और आकांक्षाओं को बदला होगा। प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ हुई बैठकों में लालदुहोमा ने साफ कर दिया कि राज्य म्यांमार से लगने वाली सीमा पर तारबंदी करने के खिलाफ है। म्यांमार से आने वाले चिन शरणार्थी मिजोरम में बस गए हैं और
मिजो जनजातियों के साथ उनकी गहरी रिश्तेदारी है।

म्यांमार के सैन्य मार्शल से आजिज होकर 30,000 से ज्यादा चिन शरणार्थी वहां से भाग लिए। वे अब मिजोरम में रहते हैं जिनकी चर्च और अन्य धर्मार्थ संस्थाएं मदद करती हैं। पड़ोसी राज्य मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हिंसा के बाद कुकी या जो समुदाय ने मिजोरम में ही शरण ली जिससे यहां शरणार्थियों की तादाद काफी बढ़ गई।

करीब 12 लाख से थोड़ी अधिक आबादी वाले मिजोरम में सीमा पार से लगभग 12,000 से 20,000 लोगों के अचानक आने से निश्चित ही राज्य की राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज पर प्रभाव पड़ा है। राज्य की पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था अब और दबाव का सामना कर रही है।

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मिजो राष्ट्रवाद को अच्छी तरह से समझा जाता है और यह एक शक्तिशाली राजनीतिक हथियार रहा है। हालांकि लालदुहोमा अब तक ‘जो’ क्षेत्र के एकीकरण (जिसमें पूर्वोत्तर भारत, म्यांमार, बांग्लादेश के चटगांव पहाड़ी इलाके शामिल हैं) की बात करते रहे हैं लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार उन्होंने ‘ग्रेटर मिजोरम’ की बात कही। उन्होंने कहा कि जो समुदाय के लोगों को अलग राज्य का समर्थन करना ब्रितानी दौर की विभाजनकारी विरासत को दुरुस्त करने में मददगार साबित होगा और यह 1937 में बर्मा को भारतीय साम्राज्य से अलग कर मिजो लोगों को बांटने वाली उस औपनिवेशिक गलती को सुधारने का यह जरिया हो सकता है। उन्होंने अपनी बात को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए ‘अखंड भारत’ का जिक्र किया।

लालदुहोमा के इस कदम को भारत सरकार और यहां तक कि स्थानीय मिजो लोग किस तरह देखेंगे, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है। पहले चिन शरणार्थियों को अपनाने से जुड़े मुद्दे को मिजो मानवीय मुद्दा मानते थे लेकिन अब वहां धीरे-धीरे असंतोष पनप रहा है। यही बात पड़ोसी मणिपुर से आए कुकी समुदाय पर भी लागू होती है।

लालदुहोमा के सामने सबसे बड़ी चुनौती राज्य की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाना है जिसमें रोजगार, मिजोरम की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए कारोबार की बेहतर शर्तें और अच्छा बुनियादी ढांचा जैसे प्रयास शामिल हैं। राज्य के श्रम बल का 60 प्रतिशत हिस्सा कृषि क्षेत्र से जुड़ा हुआ है।

सरकार में भी 45,000 लोग काम कर रहे हैं और सरकार बड़ी नियोक्ता है। इससे वेतन और पेंशन का खर्च बढ़ रहा है। एक नई व्यवस्था और जनता की सरकार एक अच्छा नारा माना गया। लेकिन जब इस पर अमल करने की बारी आती है तब इसे लागू करना मुश्किल हो सकता है।

First Published : January 5, 2024 | 9:44 PM IST