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सियासी हलचल: आम चुनाव में महत्त्वपूर्ण है महाराष्ट्र की भूमिका

उत्तर प्रदेश की 80 सीट के बाद 48 सीट वाला महाराष्ट्र आम चुनाव की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है और पश्चिमी मोर्चे पर जीत सभी दलों के लिए बहुत मायने रखती है।

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आदिति फडणीस   
Last Updated- May 24, 2024 | 11:12 PM IST

इस विषय पर शायद ही कोई मतभेद है कि लोक सभा की 545 में से 48 सीट के साथ महाराष्ट्र आगामी 4 जून को आम चुनाव के नतीजे आने के बाद बनने वाली नई सरकार के निर्माण में संतुलन कायम करने की भूमिका निभाएगा।

महाराष्ट्र में 20 मई को मतदान हो चुका है और उसके बाद आ रही जमीनी खबरें दिलचस्प स्थिति की ओर इशारा कर रही हैं।

वर्ष 2014 और 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को महाराष्ट्र में स्पष्ट जीत मिली थी। राजग ने 2014 में 42 और 2019 में 41 सीट पर जीत हासिल की थी।

प्रधानमंत्री ने 2019 में प्रदेश में नौ जनसभाओं को संबोधित किया था। उन्होंने इस बार प्रदेश में 17 जनसभाओं को संबोधित करने के अलावा कई रोड शो भी किए। वह राज्य में दो बार रात में भी रुके जो अपने आप में काफी अस्वाभाविक नजर आता है।

पार्टी के पारंपरिक साथियों ने 2019 और 2024 के बीच उसका साथ छोड़ दिया और भाजपा को मजबूरन नए मित्र तलाशने पड़े। मई 2019 के आम चुनाव में पार्टी प्रदेश में उद्धव ठाकरे की शिव सेना के साथ मिलकर आम चुनाव में उतरी थी।

अक्टूबर 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद उद्धव ठाकरे ने भाजपा का साथ छोड़ दिया और विपक्षी कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ जा मिले। माना जाता है कि इस अलगाव की पटकथा शरद पवार ने लिखी।

अपमानित भाजपा ने अंदर ही अंदर शरद पवार से हिसाब बराबर करने की ठानी। उसने ऐसा ही किया और शिव सेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को दो फाड़ करके एकनाथ शिंदे को नया मुख्यमंत्री बनने में मदद की।

भाजपा की विदर्भ इकाई के सचिव संजय फांजे बहुत संतुष्टि के साथ कहते हैं, ‘जब सुप्रिया ताई (पवार की बेटी और बारामती से सांसद) कहती हैं कि हमारा एकमात्र निशाना शरद पवार हैं तो वह सही कहती हैं। शरद पवार ने हमारा गठबंधन तोड़ा तो हमने उनका तोड़ा।’

शरद पवार के भतीजे और राष्ट्रवादी कांग्रस पार्टी के कार्यकारी प्रमुख अजित पवार भी अपने अंकल की छाया से निकलकर भाजपा के साथ चले गए।

इसका नतीजा महाराष्ट्र की राजनीति में उथलपुथल के रूप में सामने आया। इसका असर इस वर्ष के अंत में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में भी नजर आएगा। कई मतदाता शिंदे-अजित पवार के कदम को धोखेबाजी के रूप में देखते हैं। अन्य ऐसे भी लोग हैं जो इसे एक युग के स्वाभाविक अंत तथा दूसरे युग की शुरुआत के रूप में देखते हैं।

मतदाताओं के लिए ऐसे धर्मसंकट की स्थिति बनी हुई है कि बारामती से शरद पवार की बेटी और बहू के बीच आमने-सामने की चुनावी लड़ाई है और वहां मत प्रतिशत इस बार सबसे कम रहा। बारामती के छह विधानसभा क्षेत्रों में से दो पर कांग्रेस का नियंत्रण है जबकि चार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अजित पवार खेमे के प्रति वफादार हैं।

बहरहाल, शरद पवार हार नहीं मान रहे हैं और मतदाताओं को समझा रहे हैं कि कैसे उन्हें लूटा गया है। उन्होंने 82 वर्ष की आयु में गंभीर शारीरिक दिक्कतों के बावजूद 48 लोक सभा क्षेत्रों में से प्रत्येक में चुनाव प्रचार किया।

उन्होंने अपने दल के अलावा अन्य दलों के उम्मीदवारों के पक्ष में भी प्रचार किया। उनकी सभाओं में लोग केवल उनको देखने के लिए भी जुटे।

क्षेत्रीय संदर्भों में देखें तो विदर्भ-मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र सभी जल संकट से जूझ रहे हैं और लोग भी अपनी इस मुश्किल के लिए किसी को दंडित करना चाहते हैं।

भाजपा का कहना है कि कांग्रेस सरकार ने जलविद्युत परियोजनाओं और बांध बनने में देरी की। परंतु पिछले कई वर्षों से उपमुख्यमंत्री रहे अजित पवार के पास जल संसाधन विभाग था।

प्रदेश में कृषि जिंसों की राजनीति एक अहम राजनीतिक कारक है। कांग्रेस मतदाताओं को याद दिलाती रही है कि सरकार ने जहां गुजरात में होने वाले सफेद प्याज के निर्यात पर से प्रतिबंध हटा लिया, वहीं महाराष्ट्र में होने वाले लाल प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध जारी रहा।

इतना ही पर्याप्त नहीं है। मनोज जारांगे-पाटिल इस क्षेत्र की जानीमानी शख्सियत हैं। महाराष्ट्र में मराठा जाति का दबदबा है और प्रदेश की कुल आबादी में उनकी हिस्सेदारी 35 फीसदी है। जारांगे-पाटिल मराठों के आरक्षण के लिए आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। कृषि और आजीविका के संकट की चुनौती के बीच सरकारी नौकरियां ही रोजगार की मुश्किलों का इकलौता हल हैं और मौजूदा राज्य सरकार इस विषय में बहुत अस्पष्ट बातें कर रही है।

तमाम राज्यों के बीच नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र में संविधान में बदलाव के मुद्दे पर सबसे अधिक बातें कीं। उन्होंने वादा किया कि अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में कभी कमी नहीं की जाएगी। उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह इस आरक्षण का एक हिस्सा मुस्लिमों को देना चाहता है। परंतु उनकी बात पर सभी विश्वास नहीं कर रहे।

कांग्रेस को उम्मीद है कि गठबंधन के चलते विपक्षी मोर्चे को 32 से लेकर 39 सीट पर जीत मिलेगी (कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का तो दावा है कि गठबंधन को 48 में से 46 सीट पर जीत मिलेगी, हालांकि इस पर कांग्रेस को भी यकीन नहीं है)।

गृह मंत्री अमित शाह ने एक जन सभा में मानक को और ऊंचा उठाते हुए कहा, ‘महाराष्ट्र की जनता ने भारतीय जनता पार्टी (और उसकी साझेदार शिव सेना को) 2014 और 2019 के चुनाव में 48 में से 41 से अधिक सीट पर जीत दिलाई थी। इस बार मैं 45 लोक सभा सीट पर जीत चाहता हूं।’

उत्तर प्रदेश की 80 सीट के बाद 48 सीट वाला महाराष्ट्र आम चुनाव की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है और पश्चिमी मोर्चे पर जीत सभी दलों के लिए बहुत मायने रखती है।

First Published : May 24, 2024 | 10:15 PM IST