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महाराष्ट्रः नए समीकरण की संभावनाओं के बीच बढ़ रहा तनाव

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आदिति फडणीस
Last Updated- April 24, 2023 | 8:15 PM IST

इस महीने की शुरुआत में मुंबई में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता शरद पवार (Sharad Pawar) और अदाणी ग्रुप (Adani Group) के प्रमुख गौतम अदाणी (Gautam Adani) के बीच दो घंटे की बैठक होने के बाद कांग्रेस (Congress) के महाराष्ट्र के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, ‘यह महाविकास आघाडी (MVA) को तोड़ने की एक चाल है।’

हालांकि इस बैठक में मौजूद लोगों के अलावा कोई भी नहीं जानता कि बैठक में क्या हुआ, लेकिन इसने अटकलों को हवा दे दी, खासतौर पर तब जब शरद पवार ने एक इंटरव्यू में बाकी विपक्ष से अलग सुर में जोर देकर यह कहा था कि अदाणी ग्रुप को निशाने पर लिया जा रहा है।

कांग्रेस और अन्य दल अमेरिका की हिंडनबर्ग रिसर्च (Hindenburg Research) द्वारा लगाए गए आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति (JPC) से जांच कराने की मांग कर रहे हैं। शरद पवार और राकांपा के इरादों के बारे में संदेह तब और गहरा होने लगा जब पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार (Ajit Pawar) ने यह संकेत देना शुरू कर दिया कि वह पार्टी छोड़ने और भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल होने पर विचार कर सकते हैं।

हालांकि आधिकारिक तौर पर कांग्रेस ने कहा कि वह शरद पवार के इरादों को लेकर खास चिंतित नहीं है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण (Prithviraj Chavan) ने कहा, ‘(शरद) पवार और अदाणी लंबे समय से एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। हमारे पास राजनीति को लेकर अनुमान लगाने का कोई कारण नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई संशय की स्थिति नहीं है। हम अदाणी के मुद्दे पर JPC को लेकर दृढ़ हैं।’

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लेकिन अजित पवार के हालिया कदमों से पता चलता है कि प्लान बी लागू है। सब कुछ सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) की विधानसभा सदस्यता की अयोग्यता से जुड़े मामले के फैसले पर टिका है। ​शिंदे ने शिवसेना (Shiv Sena) के 40 विधानसभा सदस्यों को साथ लेकर महाराष्ट्र में सरकार बनाने में भाजपा की मदद की थी।

कुछ दिनों में अगर सर्वोच्च न्यायालय उन विधायकों को सदस्यता के अयोग्य घोषित करने का आदेश देता है तब अजित पवार निष्क्रिय नहीं रहना चाहते हैं। (अदालत ने यह फैसला सुरक्षित रख लिया है लेकिन आदेश लिखने वालों में शामिल न्यायमूर्ति एमआर शाह 15 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।)

भाजपा के वरिष्ठ नेतृत्व ने जोर दिया है कि अजित पवार का पार्टी में स्वागत किया जाएगा। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा, ‘भाजपा के दरवाजे हमेशा खुले हैं। यह हमारी विस्तार योजना का हिस्सा है बशर्ते वह हमारी पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को स्वीकार करें। हम 97,000 बूथों पर अपना विस्तार करने के अभियान पर काम कर रहे हैं। हमें शरद पवार-अदाणी की बैठक में कुछ भी गलत नजर नहीं आता है। हमारे पास टिप्पणी करने का कोई कारण नहीं है।’

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लेकिन शिवसेना को तोड़ने वाले शिंदे भी यह समझ रहे हैं कि उनके नीचे की जमीन खिसक रही है जिन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन करने के लिए एक गुट का नेतृत्व करते हुए सरकार बनाने में मदद की।

भाजपा और उसके सहयोगी दलों के पास 113 विधायक हैं। महाराष्ट्र की 288 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 145 है। भाजपा के बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने की भरपाई शिवसेना से अलग हुए विधायकों ने की थी। अब अगर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाता है तब सरकार गिर जाएगी।

वहीं शिंदे ने साफ कहा है कि अगर राकांपा किसी भी तरह से महाराष्ट्र सरकार में शामिल होती है तो वह इस्तीफा दे देंगे। शिवसेना के प्रवक्ता संजय शिरसाट ने कहा, ‘हमारी नीति स्पष्ट है। राकांपा धोखा देने वाली पार्टी है। हम सत्ता में भी राकांपा के साथ नहीं रहेंगे। महाराष्ट्र को यह पसंद नहीं आएगा। हमने (उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली अविभाजित शिवसेना से) बाहर निकलने का फैसला किया क्योंकि लोगों को हमारा कांग्रेस और राकांपा के साथ जाना पसंद नहीं था।’

वहीं दूसरी ओर, अगर शिंदे गुट के विधायकों को सदस्यता के अयोग्य घोषित कर दिया जाता है तब राकांपा के साथ मेलजोल को लेकर गुट की चिंता उतनी प्रासंगिक नहीं रहेगी।

अब बात करते हैं अजित पवार की। रिकॉर्ड स्तर पर राज्य के चार बार के उप मुख्यमंत्री रह चुके पवार ने बार-बार कहा है कि वह राकांपा नहीं छोड़ेंगे। हालांकि, शिवसेना के नेताओं का कहना है कि यह केवल वार्ता का रुख है। शिवसेना के एक नेता ने कहा, ‘उनकी (अजित पवार की) हमेशा से मुख्यमंत्री पद पर नजर रही है। वह इससे कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे।’ लेकिन यह पैकेज का केवल एक हिस्सा है।

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लोकसभा चुनाव में महज एक साल का समय बचा है और ऐसे में अगर भाजपा को निचले सदन में अपनी 303 सीटों की संख्या में सुधार करना है तो 48 सीटों वाला महाराष्ट्र भाजपा के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकता है। हालांकि यह तभी संभव हो सकता है जब महाराष्ट्र में पार्टी का कोई विश्वसनीय साझेदार हो।

पिछले लोकसभा चुनाव में शिवसेना और भाजपा ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। भाजपा ने 23 और शिवसेना ने 18 सीटें जीती हैं। आज, शिवसेना का विभाजन हो चुका है लेकिन अब भी इसके मतदाता वफादार हैं। भाजपा को अपने गठबंधन सहयोगी को बदलने की जरूरत पड़ सकती है और उसे ही यह तय करना होगा कि शिवसेना के गढ़ को तोड़ने में कौन सबसे सफल होगा।

महाराष्ट्र में चल रहा सभी मौजूदा राजनीतिक उथल-पुथल दरअसल 2024 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए ही चल रहे हैं और सभी दलों में कुछ हद तक तनाव की स्थिति बनी हुई। महाराष्ट्र में जो कुछ भी होगा, उसका असर 2024 में राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ेगा और इसे सभी जानते हैं।

First Published : April 24, 2023 | 8:15 PM IST