जनता दल (यूनाइटिड) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने के वास्ते बातचीत करने के लिए नीतीश कुमार को अधिकृत कर दिया। इस सिलसिले में राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने बीते सप्ताह आम सहमति से इस आशय का प्रस्ताव मंजूर किया। इसका मूल ध्येय यह सुनिश्चित करना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ विपक्ष का एक ही उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारा जाए।
इस बारे में दल के महासचिव केसी त्यागी ने कहा,’क्या प्रमाण की जरूरत है? मैं हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के अभियान दल के साथ था। इस राज्य के चुनाव परिणामों ने दिखा दिया है कि यदि सभी विपक्षी दल एकजुट हो जाएं तो भाजपा को हर जगह हराया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश में भाजपा के प्रत्याशी के खिलाफ एक ही प्रमुख विपक्षी उम्मीदवार खड़ा करने में कांग्रेस सफल रही थी। लेकिन गुजरात में कांग्रेस के विरोध में आम आदमी पार्टी तीसरे दल के रूप में उभरी। वैसे कांग्रेस ने 2017 के गुजरात चुनाव में ठीक-ठाक प्रदर्शन किया था। चुनाव में आप के उतरने से भाजपा को फायदा पहुंचा। यदि यह चुनाव 2017 के समीकरण पर लड़ा जाता तो गुजरात में भाजपा को खदेड़ दिया गया होता।’
जद (यू) के नेताओं ने कहा कि इस मामले में दो समस्याएं हैं। पहला, अगर विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम में कांग्रेस शामिल नहीं होती है तो एकता की बात करना बेमानी है। दूसरा, कांग्रेस विपक्षी एकता में शामिल हो जाती है तो प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष का कौन उम्मीदवार होगा? यदि नीतीश केंद्र की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं तो बिहार में नेतृत्व की कमी हो जाएगी। ऐसे में जरूरी सवाल यह है : क्या नीतीश अपने को शीर्ष पद के लिए पेश कर रहे हैं?
नीतीश ने जब से विपक्षी एकता के मुश्किल रपटीले रास्ते पर चलने की कवायद शुरू की है, तब से इस पूरी कवायद को उन्हें केंद्र बिंदु में लाने के तर्क को नकराते रहे हैं। उन्होंने हरेक को विश्वास दिलाया कि वे ईमानदारीपूर्वक अपने दायित्वों को निभा रहे हैं। लेकिन उनका यह कहना ही पर्याप्त नहीं है। अन्य लोगों को भी यह बात कहनी होगी, खासतौर से कांग्रेस को। पटना में जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा,’हम चाहते हैं कि इसका कांग्रेस समर्थन करे।’
उन्होंने कहा,’कांग्रेस को आश्वस्त करने के लिए उसे पहले दिन से ही विश्वास में लिया गया है। नीतीश ने जब भाजपा से अलग होने का फैसला किया और महागठबंधन में फिर से शामिल हुए तो सबसे पहले उन्होंने सोनिया गांधी को ही फोन किया था। कांग्रेस को यह संदेश भेजा गया था कि मजबूत विपक्षी एकता के लिए भाजपा गठबंधन छोड़ा गया। इसके बाद नीतीश दिल्ली पहुंचे और विपक्ष में सोनिया गांधी के अलावा हरेक से मुलाकात की। इसके बाद दूसरी बार दिल्ली गए और इस बार लालू प्रसाद के साथ गए थे। उन्होंने सोनिया गांधी से मुलाकात की लेकिन उन्हें जो जवाब मिलने की उम्मीद थी, वह नदारद थी। हाल यह था कि ट्विटर हैंडल पर उनकी और सोनिया गांधी के मुलाकात की फोटो तक नहीं थी।’
जद (यू) का मानना है कि अन्य बड़े विपक्षी दल तृणमूल कांग्रेस का भाजपा से कुछ तालमेल हो गया है। मसलन उसके खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई कुछ कम लग रही है। इसका परिणाम यह हुआ कि उसके बड़े विपक्षी मंच में शामिल होने को लेकर असमंजस है। ऐसी ही पहल तेलंगाना राष्ट्र समिति भी कर चुकी है लेकिन यह दल इतना छोटा है कि वह विपक्षी एकता का नेतृत्व नहीं कर सकता है। यदि उत्तर भारत के सभी विपक्षी दल एक आम सहमति और एक साझा मंच बना लें तो यह पूरी तरह संभव है कि भाजपा के विजयी रथ को रोक दिया जाए।
नीतीश ने मिलाया। इस क्रम में नीतीश कुमार ने अपने दल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कहा कि भाजपा को गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए। उन्होंने कहा,’पूरे देश में उसके खिलाफ आमतौर पर माहौल बना हुआ है। उसने मीडिया को नियंत्रण में ले लिया है। वह अपने बहुत बड़ी विफलताओं को छुपा लेती है और मीडिया की मदद से अपनी छोटी-छोटी सफलताओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती है। उसके सामने 2024 में असलियत सामने आ जाएगी।’
इस बारे में सोनिया की केवल एक प्रतिक्रिया रही : सभी मामले पार्टी की महाधिवेशन और नए अध्यक्ष, नई कार्यकारी समिति और नए पदाधिकारी के चयन के बाद तय होंगे। लिहाजा अगले साल फरवरी -मार्च में तय हो पाएंगे। हालांकि सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस के नेता त्वरित प्रतिक्रिया दे रहे हैं। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा,’कांग्रेस को अलग करने पर विपक्ष में एकजुटता नहीं रहेगी।’ पार्टी के महासचिव व प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा,’यदि गैर भाजपा दलों को यह लगता है कि वे कांग्रेस के बिना पांच साल के लिए स्थायी सरकार बना सकते हैं तो वे स्वप्न लोक में जी रहे हैं। कांग्रेस के बिना कभी भी विपक्षी एकजुटता हो ही नहीं सकती है।’
हालांकि निजी बातचीत के दौरान कांग्रेस के नेताओं ने स्वीकारा कि समस्या स्पष्ट है। कांग्रेस के एक शीर्ष नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा,’क्या आपको लगता है कि राहुल गांधी 3,500 किलोमीटर की पदयात्रा अपनी लोकप्रियता के लिए कर रहे हैं? निश्चित रूप से नहीं। इसके पीछे राजनीतिक कारण है। इस कवायद में कई लोग जुड़े हुए हैं और उनका भविष्य राहुल गांधी के आगे बढ़ने पर निर्भर है। जब तक शीर्ष पद के लिए राहुल गांधी का ही एकमात्र नाम स्वीकार नहीं हो जाता, तब तक पार्टी विपक्षी दलों की नाव पर सवार नहीं होगी। भाजपा के खिलाफ विपक्ष का एक ही उम्मीदवार होने से उसकी डगर मुश्किल हो जाएगी। हालांकि भाजपा के एक उम्मीदवार के खिलाफ विपक्ष का एक उम्मीदवार होने पर अगर दौड़ राहुल और नरेंद्र मोदी के बीच होती है तो हमें नहीं मालूम कि क्या विपक्ष इस उद्देश्य (मोदी को सत्ता से हटाने) में कामयाब होगा।’
हालांकि कांग्रेस की राह में कांटे बहुत हैं। ‘कार्नेगी एनडाउमेंट फॉर इंटरनैशनल पीस’ संस्था के स्कॉलर मिलन वैष्णव ने इस साल पांच राज्यों के परिणाम आने के बाद एक समस्या को उजागर किया। वैष्णव ने 1962 से लेकर अभी तक हुए सभी विधानसभा चुनावों का विश्लेषण किया है जिसमें निरंतर गिरावट का रुझान उजागर होता है। उनके आकलन के अनुसार,’यदि हालिया रुझान 2024 तक कायम रहा तो गैर-भाजपा गठबंधन में कांग्रेस को मुख्य दल की जगह अलग किए जाने वाले दल की तरह बरताव किया जाएगा।’ जद (यू) को उम्मीद है कि वह कांग्रेस को सही रास्ते के लिए राजी कर सकती है।