राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की नई कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले ने पिछले हफ्ते स्थानीय मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, ‘राष्ट्रीय स्तर पर मैं शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल को रिपोर्ट करूंगी। राज्य में, मैं अजित पवार, छगन भुजबल और जयंत पाटिल को रिपोर्ट करूंगी।’ यानी पार्टी में इतने सारे लोग बॉस की भूमिका में हैं! यह अपने आप में एक कहानी बयां करता है।
इस साल मई में पवार ने यह घोषणा की थी कि वह 1999 में स्थापित अपनी पार्टी के अध्यक्ष पद से हट रहे हैं और अब कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे तब उनका लहजा ज्यादा गंभीर नहीं लग रहा था। उन्होंने उत्तराधिकार पर फैसला करने के लिए एक समिति का भी गठन किया। यह रिपोर्ट कुछ दिन पहले जमा की गई थी। इसका परिणाम क्या हुआ?
पिछले कुछ समय से महाराष्ट्र में राकांपा में काम कर रहे उनके भतीजे अजित के लिए पार्टी का कोई पद नहीं रहा। हालांकि वह महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता बने हुए हैं और यह ऐसा पद है जिसे उन्होंने कुछ संघर्ष के बाद हासिल किया था।
सुले के आकाओं में पाटिल भी शामिल हैं, जिन्हें पार्टी अजित के मुकाबले वैकल्पिक शख्सियत के रूप में देखती है। जब उद्धव ठाकरे की सरकार गिरी तब शिवसेना टूट गई और एकनाथ शिंदे के शिवसेना गुट ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मिलकर सरकार बना ली।
विधानसभा में विपक्ष का नेता पाटिल को नहीं बल्कि अजित को चुना गया था। पाटिल पहले ही इस पद के लिए दावा पेश कर चुके हैं और महाराष्ट्र इकाई के पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उन्हें विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखना था। जब उन्हें बताया गया कि अजित इस पद पर आसीन होंगे तब उन्होंने यह पत्र ठंडे बस्ते में डाल दिया। हालांकि इसे जारी करने के लिए पटेल को दो कॉल करनी पड़ी। महाराष्ट्र की राजनीति पर नजर रखने वालों के लिए आंतरिक सत्ता संघर्ष का यह बड़ा सार्वजनिक प्रभाव था।
अजित महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन उनका मानना है कि उन्हें उनका हक नहीं मिला है। पवार ने अजित को आश्वासन दिया था कि वह उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार के तहत उनके लिए उपमुख्यमंत्री का पद सुरक्षित रखेंगे। लेकिन अजित ने सोचा कि वह मोल-तोल करने में अपने चाचा को पछाड़ सकते हैं और विधानसभा चुनावों के बाद उन्हें एक प्रस्ताव मिला और वह भाजपा में चले गए। यह ऐसा प्रस्ताव था जिसके लिए वह मना नहीं कर सकते थे। उनके इस कदम से यह भी पता चला कि पार्टी के विधायक उनके साथ हैं। लेकिन वह विधायकों की अपेक्षित संख्या नहीं जुटा सके और उनका यह कदम विफल हो गया जिसके बाद वह पार्टी में लौट आए। इससे पता चलता है कि उन्हें कितनी जल्दी थी।
कुछ समय पहले बारामती में पवार ने ही अपने भतीजे के बारे में कहा था, ‘अजित स्वभाव से अलग हैं।‘ उन्होंने कहा, ‘वह ऐसे व्यक्ति हैं जो जमीनी स्तर पर काम करना पसंद करते हैं और परिणाम देने पर ध्यान देते हैं। वह मीडिया के साथ सहज नहीं हैं और वह प्रचार को लेकर परेशान भी नहीं होते हैं। वह पार्टी और राज्य के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन उनके बारे में काफी गलत धारणाएं हैं।’
लेकिन हाल के कुछ घटनाक्रम कुछ और ही इशारा कर रहे हैं। अजित को नया मुख्यमंत्री घोषित करते हुए पूरे मुंबई में बैनर पहले ही दिखाई दे चुके हैं। मुख्यमंत्री शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बीच मतभेद की खबरों के बीच दोनों दलों के अलग होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। फडणवीस नए सहयोगियों की तलाश में उतरेंगे। ऐसे में असंतुष्ट अजित को राजी करना आसान हो सकता है।
हालांकि पवार पार्टी को विपक्ष की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह संकेत मिलता हो कि वह इस योजना के हामी नहीं भरेंगे। अजित के दलबदल पर मुहर लगाने के लिए फडणवीस द्वारा पवार को की गई कॉल पर भी काफी कुछ लिखा जा चुका है। बातचीत इतनी आगे बढ़ चुकी थी कि राकांपा और भाजपा ने न केवल विभागों पर चर्चा की बल्कि सरकार बनाने में एक-दूसरे की मदद करने के बाद अभिभावक मंत्रियों पर भी चर्चा की।
इस मुद्दे पर पवार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई बातचीत की भी चर्चा हो चुकी है। महाराष्ट्र विधानसभा में राकांपा के 53 विधायकों में से 40 विधायक कथित तौर पर पार्टी छोड़ने के लिए थे। अगर यह एक बार हो सकता है तो यह फिर यह दोबारा भी संभव है।
अजित प्रधानमंत्री के प्रति कांग्रेस नेतृत्व के रवैये की काफी आलोचना करते रहे हैं। पिछली बार उन्होंने इस पर तब बात की जब मल्लिकार्जुन खरगे ने कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान मोदी और अन्य को ‘जहरीले सांप’ बताया था। उन्होंने कहा, ‘आज मोदी हमारे प्रधानमंत्री हैं। उससे पहले मनमोहन सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी थे। देश के प्रधानमंत्री या राज्य के मुख्यमंत्री के बारे में इस तरह का बयान देना सही नहीं लगता है।’
एक मायने में वह विपक्ष की आमतौर पर कभी स्पष्ट तौर पर व्यक्त नहीं किए जाने वाले उसी दृष्टिकोण को जाहिर कर रहे थे कि प्रधानमंत्री पर किए जाने वाले हमले राजनीतिक रूप से फायदेमंद नहीं हो सकते हैं।
राकांपा की राजनीति में भविष्य में जिस व्यक्ति पर अधिक नजर होगी वह चचेरी बहन और पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले नहीं बल्कि अजित पवार ही हो सकते हैं।