कोविड-19 महामारी से प्रभावित एक और वर्ष समाप्त हो गया। एक पखवाड़ा पहले डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में आई भारी गिरावट ने अवश्य ही नियामक को चिंतित किया होगा लेकिन आखिरकार रुपया वापसी करने में कामयाब रहा। इस बीच बॉन्ड प्रतिफल में भी तेजी का क्रम बना रहा। नए वर्ष की शुरुआत में आइए देखते हैं कि वित्तीय क्षेत्र के सामने क्या चुनौतियां आ सकती हैं और इसमें क्या रुझान रह सकते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने दिसंबर में अंतिम मौद्रिक नीति समिति की बैठक में दरों को अपरिवर्तित रखा। उसका रुख समायोजन वाला रहा। इसके चलते 10 वर्ष के बॉन्ड पर प्रतिफल 6.39 फीसदी से घटकर 6.34 फीसदी रह गया। अब यह दोबारा बढ़कर 6.48 फीसदी हो गया है। दरों में इजाफा भले ही कुछ वक्त बाद हो लेकिन होगा अवश्य। इस वर्ष शीर्ष मुद्रास्फीति 5 से 5.5 फीसदी के बीच रह सकती है जो तकनीकी रूप से आरबीआई के तय दायरे के अनुरूप होगी। बहरहाल, बाजार जरूर कीमत वसूल करेगा। यानी वित्त वर्ष 2023 में सरकारी उधारी की लागत बढ़ेगी, भले ही दरों में इजाफा होने में वक्त लगे। बेहतर हालात में यही हो सकता है कि इस वर्ष ऋण कार्यक्रम का आकार वित्त वर्ष 2022 के समान यानी करीब 12.5 लाख करोड़ रुपये रहे। लेकिन बिना आरबीआई की मदद के सरकार के लिए यह आसान नहीं होगा। यदि भारत वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों का रुख करता है तो हालात अलग होंगे। एक रिपोर्ट के अनुसार जेपी मॉर्गन के वैश्विक उभरते बाजारों के बॉन्ड सूचकांक में इसका शामिल होना विदेशी निवेशकों से 25 अरब डॉलर की राशि ला सकता है। भारत को इस वर्ष के आरंभ में दो अन्य बड़े वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में शामिल किया जा सकता है। इससे बॉन्ड बाजार में विदेशी पूंजी की आवक होगी और कीमतें बढ़ेंगी। इससे सरकार की उधारी लागत कम होगी। इसका शेयर बाजार, कॉर्पोरेट बॉन्ड और स्थानीय मुद्रा पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा। रुपया गत वर्ष फरवरी के उत्तराद्र्ध में 72.27 रुपये प्रति डॉलर था, वह 16 दिसंबर को गिरकर 76.31 रुपये प्रति डॉलर तक फिसल गया था लेकिन यह दोबारा सुधरकर 74.29 रुपये प्रति डॉलर हो गया।
रीपो दर को मौद्रिक नीति समिति की पिछली बैठक में लगातार नौवीं बार चार फीसदी पर अपरिवर्तित रखा जबकि रिवर्स रीपो दर 3.35 फीसदी पर थी। परंतु आरबीआई ने अक्टूबर के बाद से सामान्यीकरण की प्रक्रिया तेज की है। उसने नकदी कम करने के लिए वैरिएबल रिवर्स रीपो रेट (वीआरआर) की नीलामी का इस्तेमाल किया। ऐसी नीलामी की राशि लगातार बढ़ाई गई। जनवरी के बाद से नकदी खपत प्राय: इसी मार्ग से की जाएगी। आम भाषा में कहें तो आरबीआई रिवर्स रीपो दर को निरर्थक बना रहा है। अल्पावधि की सभी दरें ऊपर जा रही हैं। अधिकांश वैश्विक केंद्रीय बैंक मौद्रिक सख्ती अपना रहे हैं, भारत उनसे अलग नहीं रह सकता। पहले रिवर्स रीपो दर बढ़ाकर दोनों दरों के बीच का अंतर पाटा जाएगा और फिर रीपो दर में इजाफा किया जाएगा। मुद्रास्फीति और वृद्धि के संभावित मार्ग को देखते हुए इस वर्ष दरों में इजाफा संभव है। वर्ष 2021-22 के लिए आरबीआई ने जीडीपी वृद्धि का अनुमान 9.5 फीसदी रखा है। ऋण की मांग भी सुधर रही है। सितंबर 2021 तक ऋण वृद्धि खामोश थी और खुदरा ऋण के अलावा बैंक कोई मांग नहीं कर रहे थे। अब ऋण की मांग बढ़ रही है। आने वाले महीनों में यह स्थिति और मजबूत होगी।
आरबीआई ने दिसंबर 2015 तिमाही में बैंकों के बही खाते दुरुस्त करने के लिए परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा शुरू की थी तब से आय के हिसाब से सितंबर 2022 तिमाही ही सर्वश्रेष्ठ रही है। यह बात सरकारी और निजी बैंक दोनों पर लागू होती है। ऐसा इसलिए हुआ कि फंसे हुए कर्ज के प्रावधान में कमी आई। एक बार वृद्धि के गति पकडऩे के बाद उनकी आय में सुधार ही होगा। अधिकांश बैंक फंसे हुए कर्ज से इसलिए निपट सके क्योंकि उसमें कमी आई और नया फंसा हुआ कर्ज कम हुआ। ऐसे अधिकांश ऋण के लिए पहले ही प्रावधान किए जा चुके हैं। कुछ अपवादों के सिवा लगभग हर बैंक के फंसे कर्ज में सितंबर तिमाही में कमी आई। हालात आरबीआई के अनुमान से बेहतर हैं। देखना होगा कि यह सिलसिला जारी रहता है या नहीं। हालांकि आरबीआई की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में कुछ बैंकों का फंसा हुआ कर्ज बढ़ सकता है। डिजिटल गतिविधियों के इजाफे के बीच कई बैंक गहरे संकट के शिकार हो सकते हैं। एनबीएफसी और फिनटेक कंपनियां नए बाजार तैयार करेंगी। अगर पुराने बैंक अपने कामकाज का तरीका नहीं बदलते तो उनके अप्रासंगिक हो जाने का खतरा रहेगा। इस बीच एनबीएफसी का फंसा कर्ज बढ़ेगा क्योंकि आरबीआई कड़ाई बरत रहा है। उनके साथ वाणिज्यिक बैंकों जैसा ही व्यवहार हो रहा है।
सन 2022 में आरबीआई नए बैंकों की राह खोल सकता है। बैंक स्वामित्व के मानकों को दुरुस्त किया गया है और केंद्रीय बैंक की विशेषज्ञ समिति कुछ बैंकों को मंजूरी दे सकती है। क्या बजट की घोषणा के मुताबिक दो सरकारी बैंकों का भी निजीकरण देखने को मिलेगा? इस दिशा में काम चल रहा है। सरकार की योजना दो बैंकों में अपनी हिस्सेदारी कम करके 26 फीसदी करने की है लेकिन अभी बैंकों के नाम तय नहीं हैं लेकिन इससे इनके संभावित निवेशकों पर असर नहीं पडऩा चाहिए।
आखिर में, क्या क्रिप्टोकरेंसी की पहेली हल होगी? आरबीआई शायद ही इसे मंजूरी दे लेकिन सरकार पर दबाव है कि वह इन पर प्रतिबंध न लगाए। इस बात पर सभी लोग सहमत हैं कि यह मुद्रा नहीं है। क्या यह कोई परिसंपत्ति है या यह कोई जिंस है? इसका नियामक कौन होगा? कई लोग यह प्रश्न कर रहे हैं जबकि उद्योग जगत चतुराईपूर्वक क्रिप्टोकरेंसी के विचार को ब्लॉकचेन तकनीक के सहारे नीति निर्माताओं को बेच रहे हैं। इस बीच आरबीआई अपनी डिजिटल मुद्रा का खाका तैयार करने में लगा है। यह एक वॉलेट होगा जो क्रिप्टो का प्रतिस्पर्धी नहीं होगा।
