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क्या यह मर्ज की सही दवा है?

Last Updated- December 05, 2022 | 4:49 PM IST

हफ्ते भर चले बेयर स्टीर्यन्स से जुड़े नाटक के बाद एक नया दिलचस्प नाटक शुरू हुआ, जिसका विषय था अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में कटौती करेगा या नहीं।


 फिर कयासों का दौर शुरू हुआ और यहां तक भविष्यवाणी कर दी गई कि फेडरल फंड रेट में 100 बेसिस पॉइंट यानी 1 फीसदी तक की कटौती की जा सकती है। आखिरकार फेडरल रिजर्व ने इसमें 75 बेसिस पॉइंट यानी 0.75 फीसदी की कटौती का ऐलान किया। यह कटौती गैर-पारंपरिक है और बहुत ज्यादा भी। अमूमन फेडरल रिजर्व 25 बेसिस पॉइंट यानी 0.25 फीसदी की कटौती करता रहा है।


पर इस कदम के बाद इस बारे में गंभीर सवाल उठने लगे हैं कि क्या फेडरल रिजर्व द्वारा अपनाया गया तरीका सही है और क्या इस कदम से हालात पर काबू पाने में मदद मिलेगी? दरअसल, सवाल यह उठ रहे हैं कि घबराहट में इस तरह का कदम उठाकर फेडरल रिजर्व मौद्रिक नीति की अहमियत को कम तो नहीं कर रहा?


 कुछ आलोचक तो मंदी से उबरने के लिए अपनाए जाने वाले पुराने तरीकों को आजमाने की बात कर रहे हैं, पर नए और उलझे हुए अंदाज में। परंपरागत अंदाज-ए-बयां यह है कि बाजार में ज्यादा से ज्यादा पैसा आने से ब्याज दरों में गिरावट होगी, निवेश को बढ़ावा मिलेगा और खपत पर लोगों का खर्च बढ़ेगा। पर इसके लिए जरूरी है कि वित्त तंत्र द्वारा लेंडिंग रेट में कमी लाई जाए और लोगों को कर्ज लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।


मौजूदा हालात में वित्तीय सेवाएं मुहैया कराने वालों द्वारा लोगों को ज्यादा से ज्यादा लोन लेने के लिए उकसाने संबंधी विकल्प पर सबसे आखिर में विचार किया जा रहा है। उनमें से ज्यादातर पर तो प्रॉपर्टी की मार पड़ी है, जिनकी कीमतें जमीन पर आ गई हैं, क्योंकि उनका कोई खरीदार नहीं है।


इन संस्थाओं के निवेशक काफी तेजी से इनसे अपने पैसे खींच रहे हैं और दिवालियापन की हालत आ गई है। यही वजह है कि ये संस्थाएं अधिग्रहणों आदि की जुगत में लग गई हैं, जैसा कि बेयर सर्टन्स के मामले में हुआ।


फेडरल रिजर्व के चेयरमैन बेन बर्नान्के खुद यह बात कबूल कर चुके हैं कि मौद्रिक नीति की अपनी सीमाएं हैं। इसी के मद्देनजर उन्होंने आर्थिक पैकेज का ऐलान किए जाने की मांग की थी, जिसे अमल में भी लाया गया।


ऐसा अनुमान लगाया गया कि मौद्रिक और वित्तीय दोनों तरह के कदमों से अमेरिका को इस छोटी-मोटी मंदी से निजात मिल जाएगी, पर अब यह बात सामने आ रही है कि अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए वित्तीय उपाय अपनाए जाने संबंधी उम्मीद कुछ ज्यादा ही थी। समस्या का एक मात्र उपाय यह है कि सरकार बीमार पड़ी वित्तीय परिसंपत्तियों को अपने कब्जे में ले ले।

First Published - March 20, 2008 | 11:06 PM IST

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