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क्या वित्तीय संकट आने वाला है? ध्यान रखें अमेरिकी नियमन पर

IMF को लगता है कि शैडो बैंकिंग से जोखिम है मगर असली जोखिम अमेरिका में बैंकिंग नियमन वापस लेने से है। समझा रहे है

Last Updated- June 16, 2025 | 11:03 PM IST
Indian Economy
प्रतीकात्मक तस्वीर

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने शुल्कों की ऐसी जंग शुरू की है, जो 2025 में पूरी दुनिया की आर्थिक वृद्धि दर को हर हाल में धीमा कर देगी। धीमी वृद्धि दर तो बरदाश्त की जा सकती है मगर चिंता इस बात की है कि इसके साथ वैश्विक बाजारों में उथलपुथल भी शुरू हो गई तो वित्तीय संकट उत्पन्न हो सकता है।

तो क्या कोई संकट आने वाला है? हाल-फिलहाल तीन संस्थाओं ने वित्तीय संकट की आशंका जताई है मगर किसी ने भी ऐसे संकट की भविष्यवाणी नहीं की है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अप्रैल 2025 की अपनी वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में इसका जिक्र किया है। द इकॉनमिस्ट ने 31 मई की अपनी खास रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि अगला वित्तीय संकट कहां से शुरू हो सकता है। मूडीज एनालिटिक्स ने भी इस महीने प्रकाशित अपने एक अध्ययन में इसकी बात की है।

आईएमएफ और द इकॉनमिस्ट मानते हैं कि अगला वित्तीय संकट बैंकिंग तंत्र के बाहर से शुरू हो सकता है। मूडीज एनालिटिक्स को लगता है कि प्रणाली में आए किसी भी झटके को बैंकिंग तंत्र के बाहर की संस्थाएं और भी बदतर कर देंगी।

वित्तीय संकट आर्थिक उत्पादन को वृहद आर्थिक संकट से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। उनसे बाहर निकलना भी बड़ी टेढ़ी खीर होता है। अर्थशास्त्रियों केनेथ रोजॉफ और कारमेन रेनहार्ट के मुताबिक किसी भी वित्तीय संकट से उबरने में औसतन आठ साल लग जाते हैं। इन दोनों ने वित्तीय संकटों का बहुत गहराई से अध्ययन किया है।

आईएमएफ को इस बात की चिंता है कि अमेरिकी बैंकों का काफी कर्ज गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं (एनबीएफआई) के पास है। 2010 में कुल बैंक कर्ज आदि का 6 फीसदी हिस्सा उनके पास था, जो 2024 में बढ़कर 24 फीसदी तक पहुंच गया। एनबीएफआई का दायरा बहुत बड़ा है। इसमें वित्तीय कंपनियां ही नहीं आतीं बल्कि म्युचुअल फंड, हेज फंड, प्राइवेट इक्विटी और क्रेडिट फंड जैसे निवेश फंड भी शामिल होते हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि इससे चिंता क्यों होनी चाहिए। एनबीएफआई में अमेरिकी बैंकों का कर्ज विविधता भरा है, जिससे चिंता नहीं बल्कि राहत होनी चाहिए।  

आईएमएफ को एनबीएफआई की एक खास श्रेणी निजी क्रेडिट फंड से चिंता है। आम तौर पर ये फंड संस्थागत निवेशकों और बैंकों से मिलने वाली दीर्घकालिक पूंजी के सहारे रहते हैं। बैंकों की तरह उन्हें कम अवधि के लिए रकम जमा करने वालों से एक साथ निकासी का खतरा नहीं होता, इसलिए उनका भट्ठा बैठने का खटका भी बहुत कम होता है। निजी क्रेडिट फंड बैंकों के मुकाबले अधिक जोखिम वाली और अधिक रिटर्न वाली जगहों पर निवेश करते हैं। ज्यादा जोखिम लेने और निजी ऋण एक दूसरे से जुड़ा होने के कारण आईएमएफ को लगता है कि उनकी वजह से तमाम संस्थाओं और देशों में कर्ज का जोखिम फैल सकता है।

द इकॉनमिस्ट को प्राइवेट क्रेडिट या हेज फंड तथा कुछ अन्य स्रोतों से संकट दिख रहा है। उसे इनका बड़ा आकार खतरनाक लगता है। उसका कहना है, ‘शीर्ष पांच प्राइवेट क्रेडिट कंपनियां 1.9 लाख करोड़ डॉलर का कर्ज संभाल रही हैं। पांच बड़े मल्टी मैनेजर हेज फंड 1.6 लाख करोड़ डॉलर का कर्ज संभालते हैं।’

मूडीज एनालिटिक्स ने आगाह किया है कि बैंकों और बीमा कंपनियों के साथ अपने जुड़ाव के कारण प्राइवेट क्रेडिट अगले संकट की जड़ बन सकता है। जड़ नहीं बना तब भी यह वित्तीय संकट को कई गुना बढ़ा जरूर सकता है।

इन आशंकाओं का क्या मतलब है? अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां, रेटिंग एजेंसियां, शिक्षा जगत और मीडिया के टीकाकार वैश्विक वित्तीय संकट का अनुमान लगाने में बुरी तरह नाकाम रहे। अब चेतावनी देते रहना सही है ताकि संकट आने पर बचाव हो सके। नीचे दी गई वजहें बताती हैं कि वित्तीय संकट की आशंकाएं अभी बेमानी हैं। कई वित्तीय संस्थाएं नाकाम हो सकती हैं। उनकी नाकामी तब तक वित्तीय संकट में नहीं बदलती, जब तक बैंकों की बहुत अधिक रकम उनमें फंसी नहीं हो। अगर बैंकों ने किसी म्युचुअल फंड में ज्यादा रकम नहीं लगाई है तो फंड बंद होने पर परेशानी निवेशकों को होगी, बैंकों को नहीं। प्राइवेट क्रेडिट में बैंकों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है मगर अब भी बहुत कम है। वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट का अनुमान है कि प्राइवेट क्रेडिट में बैंकों की हिस्सेदारी केवल 500 अरब डॉलर है। बैंकों के 12.5 लाख करोड़ डॉलर बकाया कर्ज का यह केवल 0.4 फीसदी है। हो सकता है कि कुछ बैंकों ने प्राइवेट क्रेडिट को भारी रकम दे रखी हो। इस पर नजर रखनी होगी।

हेज फंड में बैंकों का निवेश 1998 से ही चिंता का विषय है, जब लॉन्ग टर्म कैपिटल मैनेजमेंट (एलटीसीएम) नाम का हेज फंड डूब गया था और उसे बैंकरों को बचाना पड़ा था। तभी से बहुत अधिक कर्ज वाली संस्थाओं में बैंकों के कर्ज पर कड़ी नजर रखी जाने लगी है।

वैश्विक वित्तीय संकट के बाद अमेरिका में बैंकों को हेज फंड के स्वामित्व और प्रायोजन से रोक दिया गया है। ऊपर बताया गया है कि अगर सभी एनबीएफआई में लगी बैंकों की रकम कुल बैंक कर्ज की केवल 16 फीसदी है तो उसमें केवल हेज फंड की हिस्सेदारी बहुत अधिक नहीं हो सकती। वित्तीय संकट के दौरान बैंकों की नाकामी के पीछे तीन वजह हैं: अत्यधिक कर्ज, कम नकदी होना और प्रोपराइटरी ट्रेडिंग बुक पर मार्क टु मार्केट (मौजूदा बाजार मूल्य पर मूल्यांकन और देनदारी) घाटा। इन तीनों को नियमन से ठीक करना पड़ा। बैंकों के पास काफी पूंजी है। तरलता कवरेज अनुपात से बैंकों के पास तरलता ज्यादा ही रहती है। पूंजी की जरूरत से जुड़े सख्त कायदों ने प्रोपाइटरी ट्रेडिंग में दिलचस्पी बहुत कम कर दी है। जरूरत पड़े तो इन उपायों को ज्यादा कारगर बनाने के लिए हेज फंड और प्राइवेट क्रेडिट जैसी अहम संस्थाओं को नियमन के दायरे में लाया जा सकता है। अमेरिकी वित्तीय स्थिरता निगरानी परिषद को इसका अधिकार है।

अमेरिका को भारतीय रिजर्व बैंक की तरह ही बैंकों के लिए सख्त कायदे बनाने चाहिए और कड़ी निगरानी करनी चाहिए। वहां के नियामक को बैंकों से प्राइवेट क्रेडिट और हेज फंड में कर्ज की सख्त सीमा बनाने के लिए कहना चाहिए और जोखिम भार बढ़ाकर इनमें अपना कर्ज कम करना चाहिए। मगर अभी वहां नियमन विरोधी माहौल है। कर्ज बाजार में बैंकों की हिस्सेदारी गैर बैंकिंग संस्थाएं खा रही हैं। बैंकिंग कायदों को कमजोर बनाने की तगड़ी कोशिश हो रही है ताकि लगाम ढीली पड़ते ही बैंक होड़ में उतर सकें। कुल संपत्तियों के अनुपात में न्यूनतम पूंजी रखना अनिवार्य करने वाले पूरक लेवरेज अनुपात को घटाया या बदला जा सकता है।

यह बैंकों के लिए पूंजी अनिवार्यता बढ़ाने वाले बेसल 3 नियमों का अनुपालन कम कराने की कोशिश का ही हिस्सा है। पिछले साल अमेरिकी फेडरल रिजर्व बड़े बैंकों के लिए प्रस्ताविक अतिरिक्त पूंजी अनिवार्यता को आधा कर ही चुका है। अतिरिक्त पूंजी की जरूरत वाले बैंक भी उसने कम कर दिए। बैंक फिर भी संतुष्ट नहीं हैं और ज्यादा ढिलाई चाहते हैं। प्राइवेट क्रेडिट और हेज फंड तो इन कायदों का और भी ज्यादा विरोध करेंगे।

समस्या की जड़ यहीं है। आईएमएफ आदि को लगता है कि प्राइवेट क्रेडिट या हेज फंड जैसे एनबीएफआई के डूबने से वित्तीय संकट आएगा मगर असल जोखिम बैंक नियमन वापस लेने से है। रिजर्व बैंक और उसके सहयोगी उभरते बाजारों के नियामकों तथा निगरानीकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाते हैं। विकसित देश भी अपने लोगों को इन कार्यक्रमों में भेज सकते हैं। इससे अनिश्चितता भरे इस दौर में बैंकिंग प्रणालियां महफूज बनी रहेंगी।

First Published - June 16, 2025 | 10:37 PM IST

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