क्या भारत आभासी मुद्राओं (क्रिप्टोकरेंसी) के खिलाफ है? क्या सरकार कर अधिकारियों एवं जांच एजेंसियों को क्रिप्टोकरेंसी के नियमन एवं इनके कराधान के लिए आवश्यक ढांचा निर्धारित करने की अनुमति देगी? हाल में समाचार माध्यमों में ऐसे कई प्रश्न पूछे गए थे। इस विषय पर सरकार पर निष्क्रियता दिखाने के आरोप लगते रहे हैं। कारोबार सरकार से स्पष्ट निर्देश मिलने की उम्मीद कर रहा है। अब ऐसा लगता है कि वित्त मंत्री ने इस दिशा में कदम उठाया है और क्रिप्टोकरेंसी पर कर लगाने के लिए ढांचा पेश किया है। इस ढांचे की सूक्ष्म बातें और कराधान के अलावा वित्त मंत्री का यह कदम सराहनीय है। यह कम से कम इस बात का संकेत जरूर दे रहा है कि सरकार की कर नीति अब स्पष्ट होती जा रही है और पहले की तरल अस्पष्ट और क्रियान्वयन के लिहाज से जटिल नहीं रह गई है।
नीतिगत लिहाज से बजट में किए गए इस उपाय की प्रशंसा की जानी चाहिए। बजट में वित्त मंत्री ने कर कानून में जिस तरह ‘आभासी डिजिटल परिसंपत्ति’ (वर्चुुअल डिजिटल ऐसेट्स) शब्द का जिक्र किया है वह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यह कानूनी प्रावधान केवल खास मकसद को पूरा करने तक सीमित नहीं रहेगा और आने वाले समय में भी क्रिप्टोकरेंसी खंड में बदलती परिस्थितियों के अनुरूप और कई उपाय किए जाएंगे। शुरुआत में इस घोषणा में सभी क्रिप्टो परिसंपत्तियां शामिल की गई हैं। इसके अलावा नॉन-फंजीबल टोकन (एनएफटी) भी खास तौर पर शामिल किए गए हैं। तेजी से बदलते हालात से निपटने के लिए सरकार को पर्याप्त अवसर और समय देने के वास्ते इस कानूनी ढांचे में दूसरी प्रकार की डिजिटल परिसंपत्तियां भी अधिसूचित कर सकती हैं। इनमें उन परिसंपत्तियों को बाहर रखा गया है जो इस दायरे में रखे जाने के लिए उपयुक्त नहीं समझी जाती हैं। इस तरह, सरकार के पास नियामकीय मोर्चे पर बदलती परिस्थितियों के अनुरूप उपाय करने के लिए काफी गुंजाइश बची हुई है।
क्रिप्टो परिसंपत्तियों को पूंजीगत लाभ के दायरे में रखा गया है। पूंजीगत लाभ पर कर नीति को सभी परिसंपत्तियों पर कराधान के लिए एक बुनियादी उपाय के तौर पर देखा जाता है। इसके अलावा करदाताओं को इन परिसंपत्तियों से प्राप्त आय को कारोबार से प्राप्त आय के रूप में दिखाने और क्रिप्टोकरेंसी कारोबार में हुए नुकसान की भरपाई दूसरी परिसंपत्ति श्रेणियों के बदले करने से रोकने की योजना भी लाई गई है। नई योजना के तहत क्रिप्टोकरेंसी के स्थानांतरण से प्राप्त मुनाफे पर आयकर का भुगतान करना होगा और केवल ऐसी परिसंपत्तियां खरीदने पर आने वाले खर्च को इस दायरे से बाहर रखा जाएगा। वित्त मंत्री ने कहा है कि ऐसे लाभ पर 30 प्रतिशत दर से कराधान होगा। संक्षेप में कहें तो कोई व्यक्ति क्रिप्टोकरेंसी की बिक्री या स्थानांतरण से जितना लाभ अर्जित करेगा उनमें एक तिहाई हिस्सा सरकार के पास जाएगा। नुकसान की भरपाई आगे करने की अनुमति नहीं होगी और न ही कर कटौती का लाभ मिलेगा। इसके अलावा कर कटौती के लिए विशेष प्रावधान लाए जाएंगे। संभवत: इनका उद्देश्य रकम की आमद पर नजर रखना और कर अनुपालन सुनिश्चित करना होगा।
हालांकि सरकार का यह कदम आय कर तक ही सीमित नहीं है और इसने क्रिप्टोकरेंसी के नियमन का ढांचा तैयार करने की प्रक्रिया को भी आगे बढ़ा दिया है। बजट में वित्त मंत्री की इस घोषणा को दो पूर्व में हुईं अन्य दो घोषणाओं से अलग कर देखा जाना चाहिए। यह डिजिटल रुपये की शुरुआत से संबंधित है। यह दर्शाता है कि क्रिप्टो को क्रिप्टो परिसंपत्तियों के साथ जोड़ा जाएगा। दूसरी घोषणा इसका इस्तेमाल डिजिटल दायरे से बाहर उन क्षेत्रों में बढ़ाने से संबधित है। इनमें जमीन से जुड़ी जानकारियों और नागरिकों के स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियों का डिजिटलीकरण किया जाना शामिल हैं। इसमें कोई शक नहीं कि क्रिप्टोकरेंसी के लिए नियमन तैयार करते वक्त निजता कानून एवं स्थानीय स्तर पर डेटा के संरक्षण से जुड़ी बातों को भी ध्यान में रखना होगा। इसके अलावा कोई कदम बढ़ाने से पहले नागरिकों के मौलिक अधिकारों की परिधि पर भी विचार करना होगा।
सच्चाई यह है कि यह एक ऐसी कर नीति है जिसकी अभी शुरुआत हुई है और यह दर्शाती है कि यह भारत में एक ऐसा कर कानून होगा जो क्रिप्टो परिसंपत्तियों के नियमन का ढांचा तय करेगा। एक अन्य संबंधित बात यह है कि बजट में क्रिप्टो परिसंपत्तियों को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से नहीं जोड़ गया है मगर यह ढांचा जीएसटी परिषद के दायरे में आ सकता है। वित्त मंत्री जीएसटी परिषद की सदस्य होती हैं इसलिए यह नहीं मानना चाहिए कि क्रिप्टो परिसंपत्तियों पर कर लगाने के लिए अप्रत्यक्ष कर योजना लाने में काफी देर लग जाएगी। वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में क्रिप्टोकरेंसी निवेशकों को यह स्पष्ट इशारा दे दिया गया है कि आने वाले समय में तस्वीर कैसी रह सकती है। कर बोर्ड और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से स्पष्टीकरण भी आ सकते हैं। इस तरह, 2022 को एक ऐसे वर्ष के रूप में याद किया जाएगा जब क्रिप्टो अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने की शुरुआत हुई है।
(मुकेश बुटानी (मैनेजिंग पार्टनर) और दिव्याशा माथुर (सीनियर एसोसिएट), बीएमआर लीगल एडवोकेट्स से संबद्ध हैं। आलेख में लेखकों के निजी विचार हैं)