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ऊर्जा श​क्ति: विमानों में ग्रीन एनर्जी पर जोर देने की पहल जरूरी

Green jet fuel: पिछले साल 16 गीगावॉट से अधिक स्टैंडअलोन सौर ऊर्जा क्षमता की नीलामी हुई, जो पिछले दो वर्षों की संयुक्त मात्रा से भी ज्यादा थी।

Last Updated- March 22, 2024 | 9:59 PM IST
विमानों में ग्रीन एनर्जी पर जोर देने की पहल जरूरी, The greening of flights

विमानों को स्वच्छ ऊर्जा से लैस करने का एक तरीका हरित जेट ईंधन का उपयोग करना है जिसे सतत विमानन ईंधन (एसएएफ) के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि इसकी कीमत पारंपरिक ईंधन से दो से तीन गुना अधिक है लेकिन इसके बावजूद विमानन कंपनियां इसकी ज्यादा मात्रा हासिल करने में लगी
हुई हैं।

करीब 40 से अधिक विमानन कंपनियों ने एसएएफ अपनाने के लिए लक्ष्य निर्धारित किए हैं। ज्यादातर कंपनियों का लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक इनकी ईंधन खपत का 10 प्रतिशत हिस्सा एसएएफ से पूरा हो। लताम एयरलाइंस और सिंगापुर एयरलाइंस का लक्ष्य 2030 तक 5 प्रतिशत एसएएफ का उपयोग करना है जबकि मालवाहक कंपनियों, डीएचएल और फेडेक्स ने इसी वर्ष तक 30 प्रतिशत एसएएफ के इस्तेमाल का लक्ष्य रखा था।

यूनाइटेड एयरलाइंस स्वच्छ ईंधन की सबसे बड़ी खरीदार के रूप में उभरी है, जिसने खरीद समझौतों और निवेश के माध्यम से 2.9 अरब गैलन एसएएफ हासिल किया है। इसकी डिलिवरी अलग-अलग समयसीमा में दी जाएगी।

मांग में तेजी आने से उत्पादन में भी उछाल आई है। ब्लूमबर्गएनईएफ के अक्षय ऊर्जा ईंधन विश्लेषक जेड पैटरसन कहते हैं, ‘परियोजनाएं अगर समय पर शुरू हों और उत्पादक यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके पास उत्पादन के लिए पर्याप्त कच्चा माल है तब इस दशक के अंत तक वैश्विक एसएएफ उत्पादन क्षमता में 10 गुना वृद्धि होने की उम्मीद है।’ इससे वर्ष 2030 तक जेट ईंधन की मांग का 5 प्रतिशत से अधिक पूरा किया जाएगा।

नेस्टे, फिलिप्स 66 और शेल जैसे मौजूदा रिफाइनर अगले कुछ वर्षों में कई परियोजनाओं पर काम शुरू कर देंगे। एक अमेरिकी कंपनी गेवो एसएएफ का उत्पादन करने के लिए एक नया संयंत्र बना रही है और इसके मुख्य परिचालन अधिकारी, क्रिस रेयान ने कहा, ‘विमानन कंपनियां वास्तव में एसएएफ चाहती हैं। सवाल यह है कि कि आप इसे कैसे किफायती बना सकते हैं।’ नेट-जीरो 1 नाम का यह कारखाना 2026 तक चालू होने की
संभावना है।

अंतरराष्ट्रीय वायु परिवहन संघ (आईएटीए) वैश्विक हवाई यातायात के 83 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करने वाली 300 से अधिक विमानन कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता है और यह संगठन 2050 तक शुद्ध-शून्य कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन के लिए प्रतिबद्ध है। कार्बन रहित ईंधन तक पहुंचने का एक रास्ता एसएएफ पर निर्भर करता है जो उत्सर्जन में लगभग दो-तिहाई कटौती कर सकता है, बाकी का प्रबंधन कार्बन कैप्चर, ऑफसेट, नई तकनीकों जैसे इलेक्ट्रिक या हाइड्रोजन और परिचालन क्षमता के माध्यम से किया जा सकता है।

हालांकि एसएएफ की गति तेज है लेकिन फीडस्टॉक (इसके लिए जरूरी कच्चा माल) की कमी और उच्च लागत एक चुनौती बनी हुई है। कंपनियां नए फीडस्टॉक या वैकल्पिक उत्पादन मार्ग तैयार करने पर काम कर रही हैं।

तेल, गैस कंपनियां और ऊर्जा परिवर्तन

पिछले कुछ वर्षों में तेल एवं गैस कंपनियों द्वारा ऊर्जा परिवर्तन निवेश में तेजी आई थी। लेकिन अब दिशा बदल गई है। लगातार पांच साल की वृद्धि के बाद, पिछले साल पहली बार ऊर्जा परिवर्तन पर खर्च कम हो गया। तेल एवं गैस क्षेत्र ने 2023 में कम कार्बन परिसंपत्तियों में लगभग 27 अरब डॉलर का निवेश किया जो 2022 की तुलना में 17 प्रतिशत कम है।

बीएनईएफ ने पूरे क्षेत्र में 41 कंपनियों का विश्लेषण किया। उनका ऊर्जा परिवर्तन खर्च, क्षेत्र के कुल पूंजीगत व्यय का 6.5 प्रतिशत था जो 2020 के बाद सबसे कम है। आधे से अधिक कंपनियों ने वर्ष 2023 में पूंजीगत व्यय के हिस्से के रूप में कम कार्बन से जुड़े निवेश को घटा दिया।

निवेश का सबसे बड़ा हिस्सा अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में गया जो 10 अरब डॉलर था और इसमें सौर ऊर्जा का दबदबा रहा। कार्बन कैप्चर और भंडारण (सीसीएस) का निवेश 2023 में बढ़कर 7.4 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले साल के कुल ऊर्जा परिवर्तन निवेश के एक-चौथाई से अधिक है। निवेश के अन्य प्रमुख क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा ईंधन, उन्नत सामग्री, उन्नत परिवहन और हाइड्रोजन शामिल थे।

भारत में सौर ऊर्जा

भारत में सौर ऊर्जा की गतिविधियां सुखद आश्चर्य पैदा कर रही हैं। पिछले साल 16 गीगावॉट से अधिक स्टैंडअलोन सौर ऊर्जा क्षमता की नीलामी हुई, जो पिछले दो वर्षों की संयुक्त मात्रा से भी ज्यादा थी। इन नीलामियों में सरकारी कंपनियों की भागीदारी बढ़ रही है।

बीएनईएफ के सौर विश्लेषक रोहित गादरे ने कहा, ‘राज्य सरकारों के स्वामित्व वाली कंपनियों का योगदान, पिछले साल की नई सौर क्षमता की नीलामी में कुल बोलियों का 31 प्रतिशत रहा जो 2019 के 10 प्रतिशत से अधिक है।’

साथ ही, ‘जटिल’ परियोजनाओं की संख्या में भी वृद्धि हुई है जिसमें सौर ऊर्जा को पवन ऊर्जा/या भंडारण के साथ जोड़ा जाता है। संचयी क्षमता के आधार पर भारत, जापान को पछाड़कर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सौर बाजार बन गया है और इसके ऊपर सिर्फ अमेरिका और चीन हैं। बीएनईएफ के अनुसार, दशक के अंत तक शीर्ष तीन देशों की रैंकिंग में बदलाव आने की संभावना नहीं है।

दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश, सौर ऊर्जा तंत्र का तेजी से विकास करने के दौर में प्रवेश कर रहा है। बीएनईएफ को उम्मीद है कि इस साल रिकॉर्ड 13 गीगावॉट की नई सौर क्षमता चालू हो जाएगी जो अगले महीने शुरू होने वाले आम चुनावों के चलते नीतिगत गतिविधियों के बंद होने के बावजूद जारी रहेगी। इसमें रिकॉर्ड मात्रा में छोटे पैमाने के सौर संयंत्र शामिल हैं। आने वाले कुछ वर्षों में वार्षिक स्तर पर सौर ऊर्जा पैनल लगाने की रफ्तार में तेजी देखी जा रही है।

सरकार ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से 500 गीगावॉट की विद्युत क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है और सालाना 50 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता की बोली लगाने के लिए तेज गतिविधियों की आवश्यकता होगी। इस सालाना बोली में कम से कम 10 गीगावॉट, पवन ऊर्जा के लिए होना चाहिए।

भारत में पवन ऊर्जा संयंत्रों में भी इस साल तेजी देखी जाएगी और नए संयंत्र लगभग 4 गीगावॉट के स्तर तक पहुंच जाएंगे। वर्ष 2027 तक वार्षिक आधार पर लगाए गए तंत्र की क्षमता 5 गीगावॉट से अधिक हो जाएगी।

(लेखिका न्यूयॉर्क में ब्लूमबर्गएनईएफ की वरिष्ठ संपादक, वैश्विक नीति हैं)

First Published - March 22, 2024 | 9:59 PM IST

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