अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में डॉनल्ड ट्रंप का कार्यकाल विश्व अर्थव्यवस्था पर किस तरह का असर डालेगा? अंतरराष्ट्रीय व्यापार में कई तरह की उथलपुथल देखने को मिलेंगी। बड़ी शक्तियां जो कदम उठाएंगी, उनकी वजह से भारत को कुछ अनचाहे परिणामों का सामना करना पड़ेगा।
विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है और उसके पास इस मामले में वैश्विक तस्वीर बदलने या बनाने की क्षमता नहीं है। उदाहरण के लिए वर्ष 2023 में भारत से 432 अरब डॉलर का वस्तु निर्यात हुआ। पिछले दशक से तुलना करें तो इसमें 3.2 फीसदी नॉमिनल वृद्धि थी और पूरे दशक में यही वृद्धि दर रही है। इस रफ्तार से हर 22 साल में निर्यात दोगुना हो जाएगा। वियतनाम से तुलना करें तो उसकी आबादी भारत की आबादी की महज 7 फीसदी है मगर 2023 में उसका वस्तु निर्यात 354 अरब डॉलर रहा था। पूरे दशक में उसकी नॉमिनल वृद्धि दर 10.4 फीसदी रही।
हाल में इमर्जिंग मार्केट्स कॉन्फ्रेंस में डैनियल रॉथशील्ड ने एक अहम विचार पेश किया। उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच मजबूत मुक्त व्यापार समझौते यानी एफटीए के लिए अच्छे हालात हैं। उनका कहना था कि भारत-अमेरिका एफटीए को अमेरिका के भीतर तीन बड़े समूहों का समर्थन मिलेगा:
1. अमेरिका की जनता मुक्त व्यापार को दर्शन की तरह मानती है और विश्व व्यापार में बढ़ती अड़चनों से चिंतित है। भारत-अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते को उसका समर्थन मिलेगा क्योंकि यह व्यापार को जीवित रखने का एक तरीका है। यह रिकार्डो के सिद्धांत पर आधारित है, जो कहता है कि व्यापार का एकतरफा उदारीकरण किसी भी देश के अपने हितों के लिए अच्छा होता है। खास तौर पर अगर अमेरिका अन्य देशों के साथ व्यापार सीमित करता है तो भारत के साथ मुक्त व्यापार उसके लिए बहुत कीमती हो जाएगा।
2. अमेरिका संरक्षणवादी रुख अपनाता है और दूसरे देश भी जवाब में ऐसा ही करते हैं तो अमेरिका में बड़े कारोबारी हितों को नुकसान पहुंचेगा। विदेशी गतिविधियों में बढ़ोतरी के इरादे से एक दरवाजा खुला रखना ही उनके लिए बेहतर होगा। यह भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते के रूप में हो सकता है, जिसका स्वागत होगा।
3. भारत-अमेरिका एफटीए का स्वागत करने वाला तीसरा अमेरिकी समूह उन लोगों का है, जो चीन की दिक्कत पर ध्यान देते हैं। भारत के लोकतंत्र में बड़ी खामियां हैं मगर यह भी सच है कि भारतीय राज्य की संवैधानिक बुनियाद चीन के मुकाबले ज्यादा गहरी और मजबूत है। राजनीतिक आज़ादी और नागरिक अधिकारों का आकलन करने वाले फ्रीडम हाउस मानक में भारत को ‘आंशिक रूप से मुक्त’ घोषित किया है। उसे 100 में से 66 अंक दिए गए हैं। चीन को ‘मुक्त नहीं’ बताया गया है और उसे 100 में केवल 9 अंक मिले हैं। ऐसे में भारत के साथ जुड़ाव कुछ समूहों को बेहतर लग सकता है।
ये तीन अहम समूह भारत-अमेरिका एफटीए का समर्थन करते हैं तो इसकी और पड़ताल करना जरूरी हो जाता है। ट्रंप और कैबिनेट के लिए उनके द्वारा चुने गए कुछ चेहरे नापसंद होने से हमें विचलित नहीं होना चाहिए। उनकी आर्थिक टीम वास्तव में सक्षम है, वैश्वीकरण की धुर विरोधी नहीं है और वे एफटीए वार्ता में सही मायनों में गंभीरता लाएंगे। अमेरिकी सरकार का मतलब केवल ट्रंप और उनके करीबी नहीं हैं।
1. दोनों पक्षों के ऐसे शुल्क हैं, जिनमें सार्थक कमी लाई जा सकती है। अमेरिका को स्रोत के नियम से चिंता है और यह चिंता भी है कि भारत व्यापार के लिए चोर रास्ता बन सकता है जैसे चीन से निर्यात पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए हैं मगर चीन के सोलर पैनल उन्हें ठेंगा दिखाकर भारत के रास्ते अमेरिका में प्रवेश कर सकते हैं।
2. अमेरिकी पक्ष को अमेरिका के निर्यात प्रतिबंधों को लागू करने के बारे में भी चिंता हो सकती है। ये प्रतिबंध इसलिए लगाए गए हैं ताकि अमेरिका की उच्च प्रौद्योगिकी भारत के रास्ते रूस या चीन में खरीदारों तक न पहुंच जाए।
3. भारत के भविष्य के लिए सेवा निर्यात में वृद्धि अहम है। सीमा पार सेवा गतिविधियों के अवरोध तोड़ना दोनों पक्षों के हित में है। फिलहाल फाइनैंस क्षेत्र की अमेरिकी कंपनियां भारत में काफी सक्रिय नहीं हैं, खास तौर पर सिटीबैंक और गोल्डमैन सैक्स जैसी बड़ी फर्मों की भारत में गतिविधियां कम होने के बाद। अमेरिकी विधिक कंपनियां भारत में नहीं आई हैं।
4. भारत के पूंजी नियंत्रण और कर नीतियों के कारण सीमा पार निवेश प्रभावित हो रहा है। अमेरिकी कराधान में समस्या भी इसे कठिन बना रही है। एफडीआई और पोर्टफोलियो निवेश के काम को बेहतर बनाने के लिए अभी दोनों पक्षों को काफी कुछ करना है। निवेश संबंधी रिश्ते उतने एकतरफा नहीं हैं जितने हमें लगते हैं। अमेरिका में अब भारत की काफी एफडीआई परिसंपत्ति और पोर्टफोलियो हैं। भारतीयों के लिए अमेरिका में एफडीआई तथा पोर्टफोलियो निवेश के लिए अड़चनें खत्म करना भारत के ही हित में है।
5. वीजा की समस्याओं पर भी बात होगी। अमेरिकी नागरिकों के लिए भारत आना और यहां यात्रा करना मुश्किल होता है।
6. दोनों पक्ष सरकारी खरीद के मामले में भी आगे बढ़ सकते हैं। स्थानीय लोगों से सरकारी खरीद पर प्रतिबंध लगाने वाले नियमों को खत्म कर ऐसा किया जा सकता है। यह दोनों देशों में सार्वजनिक व्यय को अधिक कुशलता से करने में मददगार होगा।
7. कई प्रक्रियागत बाधाएं दूर करने की जरूरत है, जैसे सीमा शुल्क से जुड़े कामकाज, भारत में काम कर रहा अमेरिकी एफडीए, अमेरिकी निर्यात नियंत्रण का कामकाज आदि।
8. भारत में इस बात की भी चिंता है कि भारत में परोपकार तथा गैर लाभकारी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं।
9. आखिर में प्रौद्योगिकी नीति की दिक्कतें भी हैं। दोनों सूचना अर्थव्यवस्था में मुक्त व्यापार में रुचि रखते हैं। भारत का सबसे अहम निर्यात आईटी और सेवा क्षेत्र में है। इसके लिए आईटी हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और डेटा आदान-प्रदान में खुली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की जरूरत है। डिजिटल मुक्त व्यापार में हस्तक्षेप मसलन डेटा स्थानीयकरण के नियम आदि इन संभावनाओं को नुकसान पहुंचाते हैं। वैश्विक आईटी व्यवस्था में शामिल होना व उससे फायदा उठाना भारत के हित में है।
सामरिक स्वायत्तता आसान है विदेश नीति मुश्किल। इसके लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को गहराई से समझने के वास्ते तैयारी करनी पड़ती है ताकि भारत के हितों को पहचाना जा सके और बातचीत की संभावनाओं पर काम हो सके। ऐसी तैयारी नहीं हुई तो हम विशेष हित समूहों की मांगें माननी पड़ जाएंगी। भारत सरकार ने कई एफटीए या व्यापक आर्थिक सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनके नतीजे निराशाजनक रहे। इसकी वजह विशेष हित समूहों के कारण लगे प्रतिबंध थे। कई एफटीए के कारण सीमा पार व्यापारिक गतिविधियों में अड़चन आती हैं। इसलिए बात बारीकियों से बनेगी, दोनों पक्षों की वार्ता करने वाली टीम तैयार करने की क्षमता से बनेगी ताकि बड़ी-बड़ी बातों के बजाय कुछ ठोस हासिल हो सके।
(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)