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कैसे चलाएं चरणबद्ध विनियमन परियोजना

प्रत्येक क्षेत्र में और प्रत्येक नियमन के मामले में विनियमन परियोजनाओं को तीन प्रश्नों का जवाब अवश्य तलाश करना चाहिए। बता रहे हैं

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अजय शाह   
Last Updated- February 18, 2025 | 10:37 PM IST

लोगों के जीवन में सरकार के हस्तक्षेप को लेकर अनेक चिंताएं हैं। बजट भाषण में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक उच्चस्तरीय समिति की घोषणा की जो गैर वित्तीय क्षेत्र में विनियमन की पड़ताल करेगी और वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद में एक कार्यक्रम तैयार करेगी ताकि वित्तीय क्षेत्र को लेकर भी ऐसा ही किया जा सके। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने उस समय नई रोशनी डाली जब उन्होंने कहा, ‘जिस तरह कुछ भी नि:शुल्क नहीं होता उसी तरह उपभोक्ता संरक्षण और स्थिरता बढ़ाने वाले नियमन भी बिना कीमत के नहीं होते। स्थिरता और किफायत के बीच एक किस्म का समझौता होता है।’ यूनाइटेड किंगडम में एक नए ‘नियामकीय नवाचार कार्यालय’ को लेकर आशावाद है। अमेरिका में एक नए ‘सरकारी किफायत विभाग’ को लेकर बहुत अधिक उम्मीद नहीं है।

नियमन को लेकर दलील लागत और लाभ की तुलना की बात करती है। पूर्ण स्वतंत्रता लोगों को यह इजाजत देती है कि वे आर्थिक किफायत हासिल कर सकें। बदले में यह सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में वृद्धि तैयार करती है। ऐसा नवाचार और कंपनियों की उचित डिजाइनिंग की मदद से किया जाता है। सरकार का हर हस्तक्षेप आर्थिक किफायत को कम करता है और जीडीपी वृद्धि पर असर डालता है। सरकार का हस्तक्षेप केवल तब उचित है जब नियामकीय अनुपालन से होने वाले सामाजिक लाभ सामाजिक लागत से अधिक हों।

विशुद्ध आर्थिक स्वायत्तता का माहौल बाजार की कुछ नाकामी से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए बाजार की शक्ति, बाह्य कारक, विसंगतिपूर्ण सूचना आदि के चलते। बेहतर नियमन वह होता है जो बाजार की नाकामियों को दूर करे किंतु जिसके अनचाहे परिणाम न हों और जो समाज पर न्यूनतम लागत आरोपित करे। यानी यह बाजार की नाकामी दूर करने को लेकर स्वीकार्य नतीजे पेश करे जबकि इस दौरान आर्थिक किफायत, नवाचार और जीडीपी वृद्धि पर न्यूनतम नकारात्मक प्रभाव डाले। भारत में राज्य की क्षमता सीमित है। ऐसे में अक्सर समझदारी यह होती है कि आर्थिक गतिशीलता को प्रभावित करने वाले खराब हस्तक्षेप के बजाय बाजार विफलता को ही कुछ हद तक झेल लिया जाए।

वास्तविक दुनिया की सरकारों को सार्वजनिक चयन का सिद्धांत आकार देता है। यानी अधिकारी और राजनेता प्रोत्साहन को लेकर प्रतिक्रिया देते हैं और अपने हितों को आगे बढ़ाते हैं। राज्य के कर्मचारियों के पास आम लोगों के विरुद्ध बहुत अधिक दमनकारी शक्तियां होती हैं। ऐसे में सरकार के हस्तक्षेप का अक्सर बाजार की नाकामी से कोई रिश्ता नहीं होता। यही समझ इस बात को रेखांकित करती है कि वह चरणबद्ध ढंग से विनियामकीय परियोजनाओं का इस्तेमाल करे। राज्य के हस्तक्षेप के हर मामले में विनियामकीय परियोजना को निम्न चरणों से गुजरना चाहिए।

पहला प्रश्न: हस्तक्षेप की जरूरत ही क्यों पड़ी?
हर हस्तक्षेप के दस्तावेजों में उद्देश्य दर्शाना चाहिए और यह दिखाना चाहिए कि यह उद्देश्य बाजार की नाकामी पर आधारित है। जब किसी हस्तक्षेप का उद्देश्य स्पष्ट रूप से नजर नहीं आता है तो उसे तुरंत बदलना सही होता है। मिसाल के तौर पर, वर्तमान भुगतान कानून की स्पष्ट प्रस्तावना के मुताबिक कानून का उद्देश्य आरबीआई को भुगतान के व्यवसाय को विनियमित करना है। इस उद्देश्य का बाजार की नाकामी से कोई लेना-देना नहीं है।

जब कोई हस्तक्षेप उस बाजार विफलता के बारे में दावा करता है जिसे वह हल करना चाहता है तो इनका पूरी आशंका के साथ विश्लेषण किया जाना चाहिए। सरकार के कामकाज में काफी हद तक प्रलोभन और छल कपट शामिल होता है: केरल में हस्तक्षेप के लिए तिब्बत के एक शैतान को दिखाया जाता है। ऐसे में आलोचनात्मक विचार की आवश्यकता है ताकि हस्तक्षेप के बारे में दस्तावेजों को पढ़ें और कथ्य से संबंधित कानूनी उपायों के बारे में विचार करें।

दो बातों को परखें: पहली, क्या हस्तक्षेप डिजाइन करते समय ही उद्देश्य बताया गया था और दूसरा क्या उद्देश्य, बाजार विफलता को हल करता है। ऐसा करने से चीजें बहुत सुसंगत हो जाएंगी।

दूसरा प्रश्न: क्या यह कारगर साबित हुआ?
जो नियमन पहले सवाल से उबर सके वे ऐसे नियम थे जिनको अतीत में पेश किया गया था, ये बाजार की विफलता से प्रेरित थे और इनका उद्देश्य स्पष्ट था। अब हमें पूछना चाहिए: क्या हस्तक्षेप कारगर रहा? क्या उद्देश्य प्राप्त हुए? कई हस्तक्षेप नाकाम रहते हैं, उन्हें बदला जाना चाहिए। लोक नीति में अच्छे इरादों की कोई खास भूमिका नहीं। जो बात मायने रखती है वह है चीजों को हल करना।

तीसरा प्रश्न: क्या लागत लाभ से अधिक रही?
सरकारी हस्तक्षेप निजी लोगों के भाग लेने की संभावना कम करता है। प्रतिक्रिया स्वरूप वे कम नवाचार अपनाते हैं और निवेश भी कम करते हैं। परियोजनाओं का नियमन समाप्त करने का तीसरा चरण है सफल हस्तक्षेपों पर शंकालु ढंग से दृष्टि डाली जाती है। हां, ठीक है नियमन सही रहा लेकिन किस कीमत पर? न्यूनतम इक्विटी पूंजी की जरूरतें लागू करने वाले विनियमन के साथ छोटी फर्मों के प्रवेश को रोकने और प्रतिस्पर्धा को कम करने की लागत आती है। ऐसा विनियमन जो निजी लोगों को जमीन बरबाद करने पर विवश करता है, वह कंपनियों द्वारा आवश्यक पूंजी को बढ़ाकर आर्थिक नुकसान पहुंचाता है। इसके अलावा वह जमीन के उपयोग में आर्थिक कुशलता को भी बाधित करता है।
अनुपालन की प्रत्यक्ष लागत भी होती है। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि निजी लोगों के नवाचार, रचनात्मकता और निवेश पर अदृश्य नकारात्मक प्रभाव होता है। सीमा में देखें तो भारत की केंद्रीय नियोजन व्यवस्था समूचे निजी क्षेत्र को सार्वजनिक उपक्रमों की तरह व्यवहार करने पर विवश करती है जहां सभी अहम निर्णय सरकार लेती है। निजी बैंकों के उत्पादों और प्रक्रियाओं पर भी सरकारी बैंकों की तरह काफी हद तक रिजर्व बैंक का नियंत्रण रहता है। नवाचार, वृद्धि और गतिशीलता के रूप में अधिक लागत थोपने वाला नियमन बदला जाना चाहिए।
यह महत्त्वपूर्ण है कि हम कानून में लिखी बातों के परे और इस बात पर ध्यान दें कि हस्तक्षेप किस तरह काम करते हैं। जब शक्ति भारतीय राज्य के पास केंद्रित हो जाती है तो इनका संपर्क विधि के शासन की कमी से होता है। देश के शक्तिशाली सरकारी संस्थानों के पास मनमानी ताकत होती है। विनियमन के एजेंडे के अलावा विधि के शासन में सुधार भी समस्या को हल करने में मददगार साबित हो सकता है।

यह विश्लेषण दिखाता है कि चरणबद्ध विनियमन परियोजना कैसे संचालित की जानी चाहिए और क्यों आमतौर पर इनका प्रदर्शन कमजोर रहता है? किसी एक क्षेत्र में सिद्धहस्त होकर ऐसी टीम बनाना मुश्किल काम है जिसमें उपरोक्त तीन सवालों को हल करने की बौद्धिक क्षमता हो और सरकारी संस्थानों को चुनौती देने की भी।

इसके अलावा इनमें से कोई भी हल बुनियादी कारण को हल नहीं करता क्योंकि राज्य के ढांचे में समस्या है जिसके चलते वह निरंतर नए हस्तक्षेप भी कर रहा है। ऐसे नए नुकसान चरणबद्ध विनियामकीय परियोजनाओं की संभावनाओं को दबा देता है। आवश्यकता यह है कि मूल कारण का विश्लेषण करने की जो नियामकों के काम करने के तरीके को बदल देगा। भारत में विनियामक क्षेत्र सिद्धांत को पता है कि यह कैसे करना है।

(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)

First Published : February 18, 2025 | 10:37 PM IST