लेख

हूतियों की चाल और लाल सागर से उठते सवाल

यमन के समुद्री तट से दूर हुई हमले की घटनाएं दुनिया में युद्ध के अलग पहलू को उजागर करती हैं। बता रहे हैं टीटी राम मोहन

Published by
टी टी राम मोहन   
Last Updated- January 15, 2024 | 9:15 PM IST

वर्ष 2023 में कई तरह के आश्चर्यजनक घटनाक्रम देखने को मिले जिनमें से ज्यादातर सुखद ही रहे। यूक्रेन में संघर्ष के बावजूद इस जंग ने रूस और नाटो (अमेरिका तथा यूरोपीय देशों का सैन्य गठबंधन) के बीच सीधे टकराव का रूप नहीं लिया। इसके अलावा अमेरिका की अर्थव्यवस्था भी मंदी की चपेट में नहीं आई। वैश्विक आर्थिक वृद्धि उतनी धीमी नहीं हुई जितनी आशंका थी। भारतीय अर्थव्यवस्था ने तो अनुमानों से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया।

लेकिन इस स्तंभकार के लिए सुदूर अफ्रीका की घटना कई मायने में बेहद अहम है। इस घटना ने यमन में हूती बागियों की वैश्विक व्यापार को बड़ा झटका देने की उनकी क्षमता उजागर की जिन्होंने लाल सागर में मालवाहक जहाजों के यातायात में बाधा डाल दी। हूती बागियों ने यह कदम इसलिए उठाया कि इजरायल ने गाजा पर हमले रोकने से इनकार कर दिया। उसने दुनिया के घटनाक्रम को प्रभावित करने और विश्व अर्थव्यवस्था को पटरी से उतारने की अपनी नई क्षमता का प्रदर्शन किया और ऐसा करने वाला वह कोई देश नहीं बल्कि गैर राज्य तत्त्व है।

यमन में हूती बागी कई वर्षों तक सरकार के खिलाफ चले गृहयुद्ध में विजयी होकर उभरे हैं। अब देश के उत्तरी क्षेत्र पर उनका नियंत्रण है जिसमें राजधानी सना और लाल सागर का तट भी शामिल है। इनकी मान्यता प्राप्त सरकार को सऊदी अरब का समर्थन मिला हुआ है। वहीं हूती बागियों को ईरान का समर्थन भी हासिल है।

इस तरह के गैर-सरकारी गुटों को आतंकवाद की छिटपुट घटनाओं को अंजाम देने या गृहयुद्धों में शामिल होने के लिए ज्यादा जाना जाता है। अल-कायदा का नाम न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर किए गए 9/11 के हमलों से जुड़ा हुआ है। वहीं तालिबान का नाम भी अफगानिस्तान के गृहयुद्ध से जुड़ा है लेकिन सत्ता से हटाए जाने से पहले वह अफगानिस्तान की सरकार थी। आईएसआईएस भी इराक और सीरिया के गृहयुद्धों में शामिल रहा है। हालांकि तालिबान और आईएसआईएस ने अपनी फौरी दिलचस्पी वाले क्षेत्र के बाहर किसी संघर्ष में खुद को एक ताकत के रूप में पेश करने की कोशिश नहीं की है।

हूती बागियों ने दुनिया की प्रमुख शक्तियों से भिड़ने का विकल्प एक ऐसे मामले में चुना है जिससे उनका सीधा ताल्लुक नहीं है जैसे गाजा, जहां चल रहे संघर्ष में वे लंबे समय से पीड़ित मुस्लिम बिरादरी के समर्थक के रूप में खड़े हैं। अन्य मुस्लिम देश जैसे तुर्की, मिस्र, जॉर्डन, सऊदी अरब और खाड़ी देश इस तरह के मामले में ज्यादातर बयान जारी करने और युद्धविराम का आह्वान करके ही संतुष्ट हो जाते हैं। वे आर्थिक प्रतिबंधों या इजरायल के साथ राजनयिक संबंध तोड़ने जैसे कदम उठाने से बचते रहे हैं।

इसके विपरीत यमन के हूती बागियों ने इजरायल पर ड्रोन और मिसाइलें दागी हैं, हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली है क्योंकि मिसाइलों को रास्ते में ही नाकाम कर दिया गया। लेकिन उन्हें लाल सागर के जलमार्ग में इजरायल के बंदरगाहों से आने या वहां जाने वाले व्यापारिक जहाजों की आवाजाही बाधित करने में सफलता मिलने लगी। शुरुआत में हूती बागियों ने इजरायल के जहाजों को निशाना बनाना शुरू किया। पिछले नवंबर में उन्होंने एक इजरायली मालवाहक जहाज का अपहरण कर लिया और उसे अपने तट की ओर ले गए।

Also read: मंदिर रूपी परीक्षा में कांग्रेस की विफलता

इसके बाद हूती बागियों ने कहा कि वे ऐसे किसी भी व्यापारिक जहाज को निशाना बनाएंगे जो इजरायल से जुड़ा कोई भी सामान लेकर जा रहा होगा। फिर लाल सागर के पास बाब अल-मांडेब जलडमरूमध्य से गुजरने वाले वाणिज्यिक जहाजों पर कई हमले हुए। कई प्रमुख मालवाहक जहाज कंपनियों ने तुरंत ही लाल सागर क्षेत्र में अपना संचालन रोकने की घोषणा कर दी।

बाब अल-मांडेब जलडमरूमध्य बंद होने से अंतरराष्ट्रीय व्यापार में गंभीर अवरोध पैदा होने का खतरा बढ़ गया। यह जलडमरूमध्य, अंतरराष्ट्रीय नौवहन के लिए तीन महत्त्वपूर्ण मार्गों में एक है। बाकी दो हैं हॉर्मुज की खाड़ी और मलक्का जलडमरूमध्य। विश्लेषकों का अनुमान है कि लाल सागर से 10 फीसदी कच्चा तेल और वैश्विक कंटेनर जहाज के यातायात का 30 फीसदी हिस्सा गुजरता है।

अमेरिका ने लाल सागर से गुजरने वाले जहाजों के काफिले की रक्षा के लिए 10 देशों के एक समुद्री गठबंधन का गठन कर अपना जवाब दिया है। हालांकि, केवल अमेरिका और ब्रिटेन ने ही इसके लिए अपने युद्धपोत भेजे हैं। कोई भी प्रमुख अरब देश इसमें हिस्सा लेने के लिए इच्छुक नहीं है। अरब और पश्चिमी देशों की सरकारें गाजा पर इजरायल के आक्रमण के कारण लोगों के रोष और हूती बागियों के संभावित प्रतिकार को लेकर सतर्कता बरत रही हैं।

यह समुद्री गठबंधन हूती बागियों के हमले को रोकने में विफल रहा है हालांकि अब तक यह केवल एक जहाज को नुकसान पहुंचा है। हूती बागियों को भी खुद अमेरिकी नौसेना के साथ हुए टकराव में तीन नावें और अपना चालक दल खोना पड़ा है। पिछले हफ्ते हूती बागियों ने गठबंधन के युद्धपोतों पर ड्रोन और मिसाइलें दागकर संघर्ष को और बढ़ा दिया है। विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका जैसी महाशक्ति को भी हूती हमलों से निपटने में सैन्य और राजनीतिक सीमा जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

दिक्कत की बात यह है कि युद्धपोतों में मिसाइलें सीमित संख्या में होती हैं। इन पर ड्रोन और मिसाइलों से निशाना साधा जा सकता है। युद्धपोतों को समुद्र में मिसाइलों की आपूर्ति तुरंत करने में भी मुश्किल होती है और इसके लिए उन्हें किसी निकटतम बंदरगाह की ओर जाना पड़ता है, जिससे मालवाहक जहाज खतरे में पड़ सकते हैं।

हूती बागी जिन ड्रोन का इस्तेमाल करते हैं उनकी प्रत्येक की कीमत 2,000 डॉलर है जबकि अमेरिका जिन मिसाइलों का इस्तेमाल करता है उसकी एक मिसाइल की कीमत 2 करोड़ डॉलर है। दुनिया अब ऐसे विद्रोही गुटों की ओर से असंतुलित युद्धों के नए आयाम का अनुभव कर रही है। इस तरह के संघर्ष में कम शक्तिशाली संगठन बेहतर सैन्य रणनीति का इस्तेमाल कर ऐसे इलाके में अपना दबदबा दिखा सकते हैं जो उनके निकट है और जिससे वे अच्छी तरह परिचित हैं।

अमेरिकी युद्धपोत हवाई हमले के जरिये जवाबी कार्रवाई कर हूती के ड्रोन और मिसाइलों से खुद को बेहतर तरीके से बचा सकते हैं। हालांकि, इस तरह के हमलों का मतलब यह है कि संघर्ष में अच्छी-खासी तेजी और इस क्षेत्र में अमेरिका का दखल बढ़ना। अमेरिका के राष्ट्रपति जो इस चुनावी वर्ष में दोबारा चुने जाने के लिए मैदान में उतर रहे हैं, वह शायद इत तरह की कोई नई चुनौती नहीं चाहेंगे। हूतियों के साथ सऊदी अरब का भी टकराव रहा है लेकिन अब वे एक समाधान की दिशा में काम कर रहे हैं। वे नहीं चाहते कि अमेरिका हूतियों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करके इस तरह की सुलह को कमजोर करे।

Also read: नीतियों में सुधार से ही तैयार होंगे रोजगार

इन बातों के अलावा, अमेरिका तथा उसके सहयोगी देश इस वक्त जिस तरह की परिस्थितियों में फंसे हैं, उसमें और हूतियों की स्थितियों में बहुत बड़ा अंतर है। हूती बागी किसी देश की सरकार या सेना का हिस्सा नहीं हैं। उन पर संयुक्त राष्ट्र, किसी तरह के राजनयिक संबंधों या यहां तक कि किसी तरह के प्रतिबंधों की भी मजबूरी नहीं है। इसके अलावा वे किसी लोकतांत्रिक जवाबदेही के अधीन भी नहीं हैं। नतीजतन, उनकी हद का दायरा इतना ज्यादा है कि वे बड़ी तादाद में जान-माल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन अमेरिका ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि अगर एक भी अमेरिकी युद्धपोत डूबता है तो वह अपने साथ अमेरिका के राष्ट्रपति के पद को भी ले डूबेगा।

ऐसा नहीं है कि दुनिया में इस तरह के छापामार युद्ध से केवल हूती बागियों ने ही हैरान किया है। तीन महीने से अधिक समय से शक्तिशाली इजरायली सेना को रोकने के लिए हमास ने जो दमखम दिखाया है उसे भी इसी कड़ी से जोड़ा जा सकता है। गाजा में केवल शहरी युद्ध का ही डर नहीं है बल्कि हमास का विशाल भूमिगत सुरंग नेटवर्क भी है जिसका इस्तेमाल वह बेहद चतुराई से कर रहा है और जिसे यह लंदन के भूमिगत मेट्रो नेटवर्क से बड़ा बताया जाता है।

नए वर्ष में इस पर विचार करना जरूरी होगा कि हथियारबंद समूहों और छोटे देशों को इस तरह के छापामार युद्ध में कुशलता हासिल करने और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को गंभीर तरीके से चुनौती देने से कैसे रोका जा सकता है? यमन के समुद्री क्षेत्र में बन रही स्थितियां यही कहानी बयां करती है।

First Published : January 15, 2024 | 9:15 PM IST