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अरे दीवानो, समय को पहचानो

Last Updated- December 06, 2022 | 1:00 AM IST

जापान के ओसाका शहर में आज से करीब 3 साल पहले हुआ एक बुलेट ट्रेन हादसा आपको याद होगा।


यह ट्रेन महज डेढ़ मिनट लेट चल रही थी, पर ड्राइवर ने इसे अपने दिल पर ले लिया। ट्रेन का समय मेक-अप करने के बजाय उसने उसकी गति काफी ज्यादा बढ़ा दी। नतीजतन, एक वृताकार मोड़ पर ट्रेन पटरी से उतर गई और पास के एक अपार्टमेंट से जा टकराई। इस हादसे में कम से कम 94 लोगों की जान चली गई थी।


इस पूरे प्रकरण को दो नजरिये से देखा जा सकता है। कुछ लोग इसे समय की पाबंदी के नाम पर सनक सवार होने की मिसाल मान सकते हैं। पर इस मामले का दूसरा पहलू ज्यादा महत्वपूर्ण है, जिसके मुताबिक ड्राइवर समय के महत्व के प्रति कितना संजीदा था। दोनों पहलुओं में अंतर है। वक्त का पाबंद होना एक आदत होती है। जमीन और पूंजी की तरह समय भी एक संसाधन है, जिसका इस्तेमाल राष्ट्रों द्वारा अपनी अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण के लिए किया जाता है।


कुछ देश काफी निपुणता से समय का इस्तेमाल करते हैं और वे लीडर बनते हैं। जो ऐसा नहीं करते, पीछे छूट जाते हैं।इस अर्थ में समय सही मायने में धन है। एशिया की बात करें तो यह सिर्फ बर्फ से ढके हिमालय के द्वारा की आपस में विभाजित नहीं है, बल्कि समय का इस्तेमाल करने वालों और नहीं करने वालों की भी एक विभाजन रेखा एशिया में मौजूद है।


मोटे तौर पर कहें तो यहां एक ओर तो उत्तर पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के क्षेत्र हैं, जहां समय की अहमियत को शिद्दत से महसूस किया जाता है और दूसरी ओर दक्षिण एशिया है, जहां समय की अहमियत को कोई खास तवज्जो नहीं दी जाती।एशिया का वह हिस्सा जो समय के इस्तेमाल को लेकर बेहद सतर्क है, वहां समय को जीतने की ललक मुख्य है।


पर कई दफा ऐसा भी होता है कि समय की पाबंदी वाले देश लेटलतीफी दिखाते हैं और समय को लेकर अब तक कम सतर्क रहे देश भी काफी अच्छा कर जाते हैं। मिसाल के तौर पर, जापान जैसे समय के पाबंद देश को भी महज 4 किलोमीटर लंबे आकाशी-कैक्यो पुल के निर्माण में 10 साल का वक्त लग गया। हालांकि यह पुल दुनिया में अपनी तरह का सबसे लंबा पुल है।


दूसरी ओर, चीन ने समुद्र से होकर गुजरने वाले एक 36 किलोमीटर लंबे पुल का निर्माण 5 साल से भी कम वक्त में पूरा कर लिया, जिस पर 1 मई यानी आज से आवाजाही शुरू हो जाएगी। इससे साफ है कि अर्थव्यवस्थाएं जैसे-जैसे मजबूत होती जाती हैं, उनके द्वारा की जाने वाली समय की बर्बादी कम होती जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो तेजी से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्थाएं दूसरों के मुकाबले ज्यादा प्रतिबध्द होने लगती हैं।


पर आखिरकार चीन को समुद्र से होकर गुजरने वाले इतने लंबे पुल के निर्माण की जरूरत क्यों महसूस हुई? चीन ने यह पुल इसलिए बनाया है ताकि शांघाई और निंगबो के बीच की 250 मील की ड्राइविंग दूरी को घटाकर 50 मील तक लाया जा सके। यही बात गौर करने लायक है।


जिस देश को तेज विकास की चिंता हो, उसकी नजर में 250 मील की दूरी भी ज्यादा होती है और इस दूरी को घटाकर 50 मील करने के लिए वह पुल के निर्माण पर डेढ़ अरब डॉलर (करीब 6 हजार करोड़ रुपये) का निवेश करने में भी कोई संकोच नहीं करता। समय की इसी अहमियत की समझ भारत में महसूस नहीं की जाती।


समय की जितनी ज्यादा बचत होगी, किसी देश की अर्थव्यवस्था उतनी ही तेजी से आगे बढ़ेगी। समय की बचत के लिए ही बुनियादी विकास पर जोर दिया जाना जरूरी है और एशिया में चीन के अलावा फिलहाल ऐसा कोई भी दूसरा देश नहीं है, जो समय की अहमियत को बखूबी समझता हो। चीन ने 1.33 अरब डॉलर के निवेश से 30 किलोमीटर की एक मैगनेटिक लेविटेशन ट्रेन सेवा शुरू की, ताकि पडोंग अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से शांघाई शहर की दूरी महज 7 मिनट 20 सेकंड में तय की जा सके।


इसी तरह, चीन में 27 अरब डॉलर की लागत से 1,318 किलोमीटर लंबी हाई-स्पीड ट्रेन सेवा शुरू किए जाने की योजना है। इस सेवा के शुरू होने से बीजिंग से शांघाई की दूरी महज 5 घंटे में पूरी की जा सकेगी। फिलहाल बीजिंग से शांघाई के सफर में 10 घंटे लगते हैं। लोग इसे इसे चीन की सनक भले ही कहें, पर सचाई यह है कि चीन ने समय की बचत कर काफी कुछ अर्जित किया है।


चीन में किसी भी प्रोजेक्ट को वक्त पर पूरा किए जाने की ख्वाहिश काफी मजबूत है। वहां ओलंपिक खेलों से संबंधित सारी तैयारियां वक्त पर या वक्त से पहले पूरी की जा चुकी हैं। चीन के पश्चिमी रेगिस्तान से यांग्जी डेल्टा तक जाने वाली 4,000 किलोमीटर लंबी गैस पाइपलाइन के प्रोजेक्ट को तय समय से पहले पूरा कर लिया गया है। इसी तरह, ‘थ्री जॉर्ज’ नामक बांध की 2.31 किलोमीटर लंबी और 185 मीटर ऊंची मुख्य दीवार का निर्माण भी वक्त से 9 महीने पहले पूरा कर लिया गया है।


आगे चलने वालों के लिए समय पर या समय से पहले प्रोजेक्ट को पूरा करना गौरव की बात होती है और ऐसा न कर पाने पर वे शर्मसार महसूस करते हैं। चीन का तेवर भी कुछ ऐसा ही है। चीनवासियों के लिए 2 बजे का मलतब 2 बजे है, क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा न होने पर उनके कारोबार या आमदनी पर तो बुरा असर पड़ेगा ही, साथ ही छवि भी दागदार होगी।


शायद यही वजह है कि चीन में हर चीज घड़ी के हिसाब से चलती है। वहां रेलवे, एक्सप्रेसवे, पुल, सुरंग, हवाईअड्डा आदि से जुड़े हर प्रोजेक्ट वक्त पर या वक्त से पहले पूरे होते हैं। पिछले साल अप्रैल महीने में एक खास दिन वहां देश भर में एक साथ 280 हाई स्पीड ट्रेनें शुरू की गईं। पिछले साल दिसंबर तक इनकी संख्या बढ़ाकर 500 कर दी गई।


दूसरी ओर, समय को चकमा देने वाले भारत की कहानी सुनिए। खुद वित्त मंत्री पी. चिदंबरम कह चुके हैं कि यहां 40 अरब डॉलर की कुल लागत से चल रहीं 340 बड़ी परियोजनाएं तय समयसीमा से काफी पीछे चल रही हैं। पर इसकी परवाह किसे है?

First Published - April 30, 2008 | 11:18 PM IST

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