बाजार में इस समय लाभांश की झड़ी लगी हुई है। खासकर, पिछली कुछ तिमाहियों में यह सिलसिला काफी बढ़ गया है। हाल में इस समाचार पत्र में एक खबर प्रकाशित हुई थी कि कई कंपनियों का लाभांश अनुपात काफी बढ़ा है और कुछ ने तो वित्त वर्ष 2023 में दोगुना लाभांश बांटे हैं।
यह खबर शेयरधारकों के लिए अच्छी है और वे इससे खुश दिखाई दे रहे हैं। उनके साथ बाजार और अर्थव्यवस्था के लिए भी इसे सकारात्मक माना जा रहा है। कुछ कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले कुछ प्रवर्तक एवं प्रवर्तक समूह इकाइयां अधिक खुश लग रही हैं क्योंकि उन्हें लाभांश के रूप में मोटी रकम मिल रही है।
हालांकि, किसी कंपनी की लाभांश वितरण नीति का उद्देश्य शेयरधारकों को अधिक से अधिक लाभांश देने तक ही सीमित नहीं है। लाभांश शेयरों (डिविडेंड स्टॉक) के साथ भी यही बात लागू होती है। इस नीति के कई पहलू हैं, इसलिए शुद्ध मुनाफा और मुक्त भंडार (फ्री रिजर्व) पर निर्णय लेने के लिए एक व्यापक एवं दीर्घकालिक दृष्टिकोण रखना जरूरी होता है।
कंपनी संचालन के नजरिये से लाभांश वितरण नीति किसी कंपनी की विकास एवं निवेश योजना के लिए पूरी तरह अनुकूल होनी चाहिए। किसी कंपनी के लिए लगातार आगे बढ़ना जरूरी होता है और इस क्रम में वह अर्जित मुनाफे का एक हिस्सा अपने शेयरधारकों के बीच वितरित करती है।
लिहाजा, प्रतिकूल परिस्थितियों के लिए पर्याप्त प्रावधान करने के साथ ही विकास एवं कारोबार में विविधता लाने के लिए पहले से ही उपाय करने पड़ते हैं। इसके साथ ही, किसी कंपनी के लिए पेचीदा एवं अनिश्चितता भरे दौर में बदलती तकनीक के साथ भी सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है।
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लाभांश भुगतान अनुपात प्रति शेयर लाभांश और प्रति शेयर आय के बीच तुलना करने का माध्यम है। भुगतान अनुपात उलट दिया जाए तो हमें पता चलता है कि कंपनी कितना मुनाफा अपने पास रखना चाहती है। उद्योग या स्वामित्व से संबद्ध कुछ कारक हो सकते हैं जो आंकड़ों पर असर डाल सकते हैं, मगर एक मोटे सिद्धांत के अनुसार भुगतान अनुपात अधिक रहना इस बात का संकेत हो सकता है कि दीर्घ अवधि में लाभांश भुगतान निरंतर जारी रखना संभव नहीं होगा।
कंपनियां जो आय बचाकर रखती हैं उसे भविष्य की योजनाएं पूरी करने के लिए एक सुरक्षित भंडार के रूप में इस्तेमाल होना चाहिए। इस आधार पर कहा जा सकता है कि जो कंपनियां दोबारा निवेश करने के लिए प्रावधान नहीं करती हैं उन्हें भविष्य में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
कई कंपनियां, खासकर धनी तकनीकी क्षेत्र की कंपनियां अपने शुद्ध मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा हिस्सेधारकों के बीच बांट देती हैं। वे ऐसा इसलिए कर पाती हैं कि उनके पास संभवतः भविष्य की विकास योजनाएं पूरी करने के लिए रकम की कोई कमी नहीं होती है।
उनके कारोबार में मानव संसाधन की विशेष भूमिका को देखते हुए अधिक पूंजीगत व्यय की जरूरत नहीं होती है। मगर ऐसा लगता है कि कुछ दूसरी कंपनियां असामान्य लाभांश वितरण के लिए सुरक्षित रखी रकम का इस्तेमाल करने लगती हैं। ये वे कंपनियां हैं जिन्हें अपना कारोबार आगे बढ़ाने के लिए बड़ी पूंजी की जरूरत होती है।
कुछ कंपनियों ने मुनाफे में कमी आने के बावजूद शेयर के अंकित मूल्य का 100 गुना या अपने मुनाफे का तीन गुना तक लाभांश दिए हैं। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि कुछ कंपनियां शेयर पुनर्खरीद जैसे लाभ देने के विकल्पों का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि मोटा लाभांश देने का निर्धारण प्रवर्तक या प्रवर्तक समूहों की रकम की आवश्यकता के आधार पर होता है।
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यह एक खतरनाक रुझान है क्योंकि एक उचित एवं संतुलित लाभांश वितरण नीति में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी तीसरे पक्ष से संबंधित बातों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। अगर अप्रत्यक्ष तरीके से भी इन बातों पर विचार किया जाता है तो यह कंपनी की मौलिक संरचना और इसके भविष्य पर प्रतिकूल असर डालेगा।
यह मध्यम या दीर्घ अवधि के लिए शेयरधारकों के हित में नहीं है और ना ही यह लाभांश की चाह रखने वाले प्रवर्तक शेयरधारकों के लिए उचित है। संयोग की बात है कि अधिक लाभांश की चाह रखने वाले प्रवर्तक शेयरधारक सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों में एक जैसे होते हैं और इस मामले में उन्हें एक दूसरे से अलग दिखाने का कोई जरिया भी नहीं होता है।
एक जीवित व्यक्ति की तरह ही सभी कंपनियों के कुछ अधिकार एवं उत्तरदायित्व होते हैं। किसी कंपनी के लिए यह सुनिश्चित करना उसकी जिम्मेदारी होती है कि उसके साथ काम करने वाले सभी लोग पूरी जिम्मेदारी के साथ वृहद शेयरधारिता संरचना को ध्यान में रखकर अपने कार्यों का निर्वहन करे।
शेयरधारिता संरचना में सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष स्वयं कंपनी होती है क्योंकि इस पर प्रतिकूल असर डालने वाले निर्णय सभी संबंधित पक्षों को भी प्रभावित करते हैं। निवेशकों को संभावित लाभांश कुचक्र के प्रति सावधान रहना चाहिए। यह कुचक्र ऐसा होता है जो क्षणिक खुशी तो देता है मगर दीर्घ अवधि की कारोबारी संभावनाओं को दांव पर लगा देता है।
यद्यपि, कंपनी के निदेशक मंडल को कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत लाभांश के रूप में मुनाफे या मुक्त भंडार में एक अनुपात तय करने का अधिकार है मगर अधिनियम की धारा 123 में वितरण के लिए कुछ निश्चित सिद्धांतों एवं शर्तों का भी उल्लेख किया गया है। ये नियम-शर्तें तय करने का उद्देश्य किसी कंपनी के निदेशक मंडल के सदस्यों को लाभांश का वितरण करते समय प्रवर्तकों की जरूरत और अनावश्यक उत्साह आदि से प्रभावित होने से बचाना है।
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कंपनियों से उम्मीद की जाती है कि वे अपने शुद्ध मुनाफे में से एक वाजिब हिस्सा ही लाभांश वितरण के लिए रखें। अगर यह रकम शुद्ध मुनाफे के 35 प्रतिशत से 55 प्रतिशत के बीच रखी जाती है तभी वाजिब मानी जाती है।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान अर्जित मुनाफे एवं लाभांश वितरण और तात्कालिक पूंजीगत व्यय इस वाजिब अनुपात को प्रभावित कर सकते हैं। मगर सीधा एवं सपाट नियम यह है कि शुद्ध मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा कंपनी के पास ही रहे। दीर्घकाल में पुनर्निवेश योजनाओं एवं जोखिम की समीक्षा के बाद बची अधिशेष रकम का इस्तेमाल विशेष लाभांश देने के लिए किया जा सकता है।
मगर नियमित लाभांश का वितरण सोच-समझकर किया जाना चाहिए और कंपनी की दशा-दिशा एवं संभावनाओं का सावधानीपूर्वक ध्यान रखा जाना चाहिए। लाभांश का बेतहाशा वितरण विदेश से आने वाली पूंजी पर भी असर डाल सकता है।
कुछ कंपनियों द्वारा आवश्यकता से अधिक लाभांश का वितरण ऐसी कंपनियों के पक्ष में पूंजी आवंटन एवं पूंजी निवेश को प्रभावित कर सकता है, वहीं कभी-कभी कई संतुलित एवं अच्छी तरह संचालित कंपनियों में पूंजी की आमद पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। ऐसा होने से पूंजी बाजार में बेवजह प्रोत्साहन-गैर-प्रोत्साहन आधारित व्यवस्था की शुरुआत हो सकती है। ऐसी स्थिति उत्पन्न करना ना तो कानून का उद्देश्य है और न ही पूंजी बाजार और अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है।
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कंपनियों के बीच लाभांश देने की होड़ हुई तो बाजार में शेयरधारकों को लाभांश देने की एक अस्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा की शुरुआत हो सकती है। इसका नतीजा यह होगा कि आंख मूंदकर लाभांश देने वाली कंपनी निरंतरता खो बैठेंगी और उनका कारोबार केवल अल्पकालिक उद्देश्यों की प्राप्ति ही कर पाएगा।
लाभांश का वितरण अनुचित नहीं है मगर कुछ कंपनियों द्वारा बिना सोच-विचार के खुले हाथों से ऐसा करना स्वयं उन कंपनियों, दीर्घ अवधि के लिए रकम लगाने वाले निवेशकों और कभी-कभी अर्थव्यवस्था के लिए काफी जोखिम भरा हो जाता है।
(लेखक एनआईएसएम में क्रमशः निदेशक एवं प्राध्यापक हैं।)