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टेक कूटनीति: क्षमता का परीक्षण

सुर्खियां बटोरने वाले सौदे की बात करें तो वह है जनरल इलेक्ट्रिक और हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के बीच तेजस लाइट लड़ाकू विमानों के लिए एफ 414 इंजन तैयार करने का सौदा।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- June 25, 2023 | 9:01 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा स्पष्ट संकेत देती है कि भारत और विश्व की इकलौती महाशक्ति के बीच रिश्ते नए सिरे से परिभाषित हो रहे हैं। रिश्तों में इस बदलाव का एक प्रमाण यह भी है कि भारत द्वारा यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा करने का विरोध किए जाने तथा बड़ी मात्रा में रूसी तेल और एस400 डिफेंस शील्ड खरीदे जाने के बावजूद बाइडन प्रशासन ने न केवल राजकीय यात्रा का आयोजन किया बल्कि अमेरिकी कांग्रेस को संबोधन का कार्यक्रम भी रखा।

भारतीय पेशेवरों के लिए उदार नवीनीकरण वीजा व्यवस्था तथा भारत के साथ विश्व व्यापार संगठन में छह व्यापारिक विवादों को समाप्त करने का निर्णय एवं भारत द्वारा प्रतिरोधस्वरूप तय टैरिफ समाप्त करने की बात दोनों पक्षों की ओर से बेहतर सहयोग की ओर इशारा करती है।

कूटनीतिक माहौल में आए बदलाव में दोनों देशों की बढ़ी हुई तकनीक संबंधी घोषणाओं की भी भूमिका है। सरकारी पहलों की बात करें तो तीन अरब डॉलर की राशि व्यय करके एमक्यू-9 रीपर स्काईगार्डियन और सी गार्डियन ड्रोन की खरीद का सौदा शामिल है जिसके बारे में उम्मीद है कि इससे हिंद महासागर क्षेत्र में देश की निगरानी क्षमता में सुधार होगा। चीन के साथ लगी लंबी सीमा की निगरानी भी बेहतर हो सकेगी।

सुर्खियां बटोरने वाले सौदे की बात करें तो वह है जनरल इलेक्ट्रिक और सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच तेजस लाइट लड़ाकू विमानों के लिए एफ 414 इंजन तैयार करने का सौदा। भारत ने अंतरिक्ष शोध पर आर्टमिस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

आइडहो की कंपनी माइक्रॉन टेक्नॉलजी जिसका नेतृत्व संयोगवश भारतीय मूल के सीईओ के पास है, उसने भी गुजरात में मेमरी चिप असेंबली संयंत्र तथा परीक्षण संयंत्र स्थापित करने की बात कही है। यह उपक्रम भारत सरकार और गुजरात सरकार के साथ संयुक्त रूप से तैयार किया जाएगा।

ये सौदे बहुत प्रभावित करने वाले हैं तथा ये 2022 में घोषित इनीशिएटिव फॉर क्रिटिकल ऐंड इमर्जिंग टेक्नॉलजीज (आईसेट) पर आधारित हैं जिसका नेतृत्व दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने किया था। यह तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 2008 के ऐतिहासिक भारत-अमेरिका परमाणु सौदे के बाद आए ठहराव के पश्चात एक नई शुरुआत है।

वह ठहराव खराब तरीके से तैयार निवेश कानूनों की वजह से आया था। अगर परमाणु समझौते ने व्यापक रूप से सन 1960 के दशक से आरंभ हुए तकनीक देने से इनकार के दौर को पीछे छोड़ा तो मौजूदा सौदे इस रिश्ते को और आगे ले जाते हैं। इसके साथ ही ये सौदे भारत के सामने क्षमता वृद्धि और कूटनीतिक संतुलन दोनों क्षेत्रों में चुनौतियां भी सामने रखते हैं।

उदाहरण के लिए एफ 414 सौदों में 80 फीसदी तकनीक हस्तांतरण शामिल है जिसमें 11 ‘अहम तकनीक’ शामिल हैं और इसके तहत एचएएल को तकनीक ग्रहण करके तीन वर्ष के भीतर निर्माण शुरू करना होगा। यह एचएएल के लिए एक बड़ी परीक्षा होगी क्योंकि अब तक डिजाइन और विनिर्माण के क्षेत्र में उसे सीमित सफलता मिली है।

माइक्रॉन टेक्नॉलजीज का प्रस्ताव भी बाधित हो सकता है। दरअसल भारत में अल्ट्रा हाइटेक इकाई की स्थापना करने में अनिश्चितता की स्थिति बन सकती है क्योंकि 80 के दशक में सेमीकंडक्टर विनिर्माण के मामले में हमारा इतिहास सुखद नहीं रहा है। इसके अलावा भारत इस क्षेत्र में काफी देरी से आ रहा है और पूर्वी एशियाई देशों ताइवान, दक्षिण कोरिया तथा चीन का यहां पहले से दबदबा है। ये देश, दुनिया की कुल मेमरी चिप्स का 90 फीसदी उत्पादित करते हैं।

आखिर में कूटनीतिक बातें भी हैं जिन पर विचार करना होगा। ड्रोन सौदा सीधे तौर पर चीन के क्षेत्रीय दबदबे को लक्षित करता है लेकिन आर्टमिस समझौता दबाव का एक और बिंदु हो सकता है। यह उल्लेखनीय है कि चीन और रूस दोनों अंतरिक्ष के क्षेत्र में दो बड़ी शक्तियां हैं लेकिन वे इस समझौते में शामिल नहीं हैं। यानी वे अंतरिक्ष में अमेरिकी नेतृत्व के खिलाफ हैं।

भारत पहले ही अंतरिक्ष परियोजनाओं में रूस के साथ सहयोग कर रहा है। गगनयान इसमें शामिल है। रक्षा आपूर्ति में दिक्कतदेह रिश्तों की तरह यह परियोजना भी ठंडे बस्ते में जा सकती है क्योंकि रूस यूक्रेन में उलझा हुआ है। क्वाड की तरह आर्टमिस समझौता भी भारत के लिए परीक्षा का अवसर साबित हो सकता है।

First Published : June 25, 2023 | 9:01 PM IST