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कमजोर रहेगी वृद्धि

Last Updated- December 11, 2022 | 5:17 PM IST

महामारी के बाद मची उथलपुथल के बाद शुरू हुआ वैश्विक आर्थिक सुधार तेजी से अपनी गति खो रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने जुलाई माह का जो वैश्विक आर्थिक पूर्वानुमान जारी किया है उसके मुताबिक 2022 में वैश्विक अर्थव्यवस्था के 3.2 फीसदी की दर से तथा 2023 में 2.9 फीसदी की दर से विकसित होने का अनुमान है। इस बहुपक्षीय एजेंसी ने वर्ष 2022 और 2023 के लिए अपने वृद्धि पूर्वानुमान को अप्रैल के अनुमानों की तुलना में क्रमश: 0.4 फीसदी तथा 0.7 फीसदी कम कर दिया है। अनुमान है कि 2021 में वैश्विक अर्थव्यवस्था 6.1 फीसदी की दर से विकसित हुई होगी। विकसित और विकासशील दोनों तरह की अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि दर कमतर रहने का अनुमान है। उदाहरण के लिए अनुमान है कि अमेरिका चालू वर्ष में 2.3 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल करेगा जो आईएमएफ के अप्रैल में जताए गये अनुमान से 1.4 फीसदी कम है। इसी प्रकार चीन के वृद्धि अनुमान को 1.1 फीसदी कम करके 3.3 फीसदी कर दिया गया है। अगर कोविड वाले वर्ष यानी 2020 को छोड़ दिया जाए तो यह गत चार दशक में चीन के लिए सबसे धीमी वृद्धि दर का अनुमान है। भारत के वृद्धि अनुमानों को भी अगले दो वर्षों के लिए संशोधित करके 0.8 फीसदी कम किया गया है तथा इसे क्रमश: 7.4 फीसदी तथा 6.1 फीसदी कर दिया गया है।
इस बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था गति खो रही है और इसके कई कारण हैं। अनुमान तो यही है कि वृद्धि के अनुमानों को आगे चलकर पुन: संशोधित करना होगा क्योंकि कुछ बुनियादी अनुमान शायद कायम न रह सकें। मौजूदा यूक्रेन युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है और इसकी बदौलत ईंधन और तेल कीमतों में तेजी आयी है। यूरोप को होने वाली रूसी गैस की आपूर्ति गत वर्ष के स्तर से 40 फीसदी कम हुई है। अगर यह आपूर्ति पूरी तरह रुक जाती है तो वैश्विक मुद्रास्फीति में अहम इजाफा होगा। गौरतलब है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पहले ही उच्च मुद्रास्फीति से जूझ रही है। कुछ विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों में मुद्रास्फीति की दर ऐसे स्तर पर है जहां वह दशकों से नहीं पहुंची थी। इन देशों के केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति को सख्त बना रहे हैं। वैश्विक वित्तीय हालात में सख्ती से उत्पादन प्रभावित होगा। अनुमान तो यही है कि 2022 की दूसरी तिमाही में वैश्विक उत्पादन में गिरावट आएगी। अमेरिका की बात करें तो फेडरल बैंक ऑफ अटलांटा के मुताबिक एक तकनीकी मंदी शायद शुरू भी हो चुकी है। विकसित दुनिया से अलग चीन में मंदी की स्पष्ट आहट है। ध्यान रहे कि हाल के दशकों में चीन वैश्विक वृद्धि का प्रमुख वाहक रहा है। ऐसे में यह बात भी वैश्विक आर्थिक स्थिति को प्रभावित करेगी। चीन की कोविड-शून्य नीति उत्पादन को प्रभावित कर रही है, वहीं अचल संपत्ति और वित्तीय बाजारों में हो अव्यवस्था मध्यम अवधि के वृद्धि पूर्वानुमानों को प्रभावित कर सकती है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी और बड़े विकसित देशों में मंदी, भारत की वृद्धि संभावनाओं को भी प्रभावित करेगी। आईएमएफ ने अपने वृद्धि अनुमान को कम किया है लेकिन आगे चलकर इसमें और कमी की जा सकती है। चालू वित्त वर्ष में शीर्ष वृद्धि दर, अप्रैल-जून तिमाही के आधार प्रभाव के कारण ऊंची नजर आएगी। 2021 में कोविड की दूसरी लहर ने सुधार की प्रक्रिया को बाधित किया। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमानों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में वृद्धि दर घटकर 4 फीसदी रह सकती है। चूंकि वैश्विक आर्थिक और वित्तीय हालात सहयोगात्मक नहीं होंगे इसलिए संभव है कि आने वाली तिमाहियों में वृद्धि दबाव में रहे। ऐसे में ध्यान रखने वाली बात है कि ब्याज दरों में इजाफा करना होगा ताकि मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखा जा सके। इसके अलावा उच्च डेट-जीडीपी अनुपात भी सरकार को वृद्धि को समर्थन देने से रोकेगा। मध्यम अवधि में उच्च वृद्धि हासिल करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा।

First Published - July 27, 2022 | 1:01 AM IST

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