देश के आवास क्षेत्र में हजारों ऐसी आवासीय परियोजनाओं की भरमार है जो किसी न किसी वजह से स्थगित हैं। लंबित या तय मियाद से पीछे चल रही परियोजनाओं की वजह से उत्पादन और रोजगार दोनों को क्षति पहुंचती है। इससे घर खरीदने वालों के कष्ट भी सामने आते हैं। इन परियोजनाओं को प्राथमिकता के साथ पूरा करना आर्थिक सुधार के एजेंडे में प्रमुख होना चाहिए।
लंबित आवासीय परियोजनाओं का सिलसिला कोविड के बाद शुरू नहीं हुआ है। ये 2020 के आरंभ में कोविड आने से पहले भी इस स्थिति में थीं। वास्तविक समस्या उनकी कीमत की नहीं बल्कि खरीदारों के बीच भय के वातावरण की है। कुछ बड़ी कंपनियों की लंबित परियोजनाओं के साथ उपभोक्ताओं के बुरे अनुभव के बाद उनका आत्मविश्वास बुरी तरह हिल चुका है।
आवासीय परियोजनाओं को इक्विटी, डेट और ग्राहकों द्वारा दी जाने वाली अग्रिम राशि के रूप में वित्तीय मदद मिलती है। बिल्डरों को अपने निवेश पर ठीकठाक प्रतिफल हासिल करने के लिए अग्रिम राशि की आवश्यकता होती है। बहरहाल, आज ग्राहक अग्रिम रािश देने के इच्छुक नहीं हैं क्योंकि वे सुनिश्चित नहीं होते कि परियोजना पूरी होगी भी या नहीं। ग्राहक केवल उन्हीं परियोजनाओं के लिए राशि चुकाने के इच्छुक रहते हैं जो पूरी हो चुकी हैं या पूरी होने वाली हैं। कई शहरों में अपार्टमेंट की कीमत उसी समय बढऩी शुरू हो जाती हैं जब बिल्डर ऑक्युपेंसी प्रमाणपत्र हासिल कर लेता है। इस प्रमाणपत्र का अर्थ यह होता है कि इमारत रहने के लिए तैयार है। रिहायशी आवास परियोजना क्षेत्र में मुर्गी और अंडे जैसी स्थिति है। बिल्डर को शुरू की जा चुकी परियोजना को पूरा करने के लिए अग्रिम राशि की आवश्यकता होती है जबकि ग्राहक तब तक राशि नहीं चुकाना चाहता जब तक कि परियोजना पूरी न हो जाए। इस समस्या को हल करने की आवश्यकता है। सितंबर 2019 में सरकार ने किफायती और मझोली आय वाली परियोजनाओं में इस मसले को हल करने के लिए स्पेशल विंडो फॉर अफोर्डेबल ऐंड मिड-इनकम हाउसिंग प्रोजेक्ट्स (एसडब्ल्यूएएमआईएच) की घोषणा की।
इसके तहत सरकार ने 25,000 करोड़ रुपये मूल्य का फंड बनाने की योजना बनाई जिसे अटकी परियोजनाओं में निवेश किया जाना था। सरकार इसमें 10,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगी तथा शेष राशि एलआईसी, एसबीआई तथा निजी बीमा कंपनियों से आएगी। दिसंबर 2019 में निवेशकों ने इसमें 10,037 करोड़ रुपये देने की प्रतिबद्धता जताई। अक्टूबर 2021 तक एसडब्ल्यूएएमआईएच ने 95 परियोजनाओं को अंतिम मंजूरी दे दी थी। 95,000 करोड़ रुपये की इस मंजूरी से 57,700 घर बनने थे।
यह एक मददगार पहल है लेकिन इसका आकार सीमित है। इतना ही नहीं लंबित या देरी से चल रही परियोजनाओं की समस्या में कोविड की दो लहरों ने और अधिक इजाफा किया है। अगस्त 2021 में एक परिसंपत्ति सलाहकार द्वारा किए गए सर्वेक्षण में बताया गया था कि मुंबई को छोड़कर छह अन्य शहरों में 1,73,740 आवासीय इमारतें निर्माणाधीन और लंबित थीं। इन परियोजनाओं में करीब 140,613 करोड़ रुपये की राशि फंसी थी। इसके अलावा करीब 3,64,802 करोड़ रुपये मूल्य के 4,54,890 आवास निर्धारित समय से देरी से चल रहे थे। एसडब्ल्यूएएमआईएच कुल लंबित और देरी से चल रही परियोजनाओं के 10 फीसदी से भी कम को कवर करती है।
आवास को लेकर ग्राहकों की मांग सुधरी है लेकिन खरीदार अभी भी अग्रिम राशि देने के बहुत इच्छुक नहीं हैं। वे उन्हीं बिल्डरों को अग्रिम राशि देना चाहते हैं जिनकी वित्तीय स्थिति पहले से मजबूत है। उदाहरण के लिए एलऐंडटी, गोदरेज और अदाणी जैसी कंपनियां। खरीदारों को यकीन है कि बिना उपभोक्ताओं की अग्रिम राशि के भी इन संस्थानों के पास परियोजनाओं को पूरा करने की वित्तीय ताकत है। लंबित या देर से चल रही परियोजनाओं को पूरा करने के लिए बैंक फाइनैंस जरूरी है। हालांकि बैंक भी डेवलपरों को ऋण देने से बचते हैं। वे लंबित या देर से चल रही परियोजनाओं को तभी ऋण देंगे जब जोखिम कुछ कम हो। छोटे और मझोले उपक्रमों को गत वर्ष आपात ऋण लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) का लाभ दिया गया था। आवासीय क्षेत्र को भी ऐसी ही ऋण गारंटी योजना की आवश्यकता है। ईसीएलजीएस एक साहसी और समय पर की गई पहल थी और उसने कंपनियों को भी बचाया और रोजगारों की भी रक्षा की। ईसीएलजीएस को कड़े मानकों का सामना करना पड़ा। वही बात रिहायशी आवास से संबंधित किसी ऋण योजना पर भी लागू होनी चाहिए। यह संभव है।
सबसे पहली बात तो यह कि परियोजना में खरीदारों की न्यूनतम तादाद होनी चाहिए, उदाहरण के लिए 100 खरीदार होने चाहिए। दूसरा, यह उन परियोजनाओं पर भी लागू होनी चाहिए जिनमें एक वर्ष से अधिक की देरी हो चुकी है। तीसरी बात, परियोजना सस्ती और मझोली आय वाले लोगों के लिए होनी चाहिए।
चौथी बात, परियोजना ऐसी हो जहां परिसंपत्तियों की तादाद देनदारी से अधिक हो। किसी आवासीय परियोजना की परिसंपत्तियों में प्राप्तियों का मूल्य तथा अनबिके मकानों की कीमत शामिल होती है। देनदारियों में परियोजना पूरी होने की लागत के अतिरिक्त बकाया राशि भी आती है।
पांचवीं बात, बैंकों को खुद को संतुष्ट करना चाहिए कि फंड का बेजा इस्तेमाल नहीं हो रहा है। इसके लिए कुल व्यय में से ग्राहकों द्वारा प्राप्त राशि तथा विनिर्माण कर्ज को घटा देना होगा। अगर इसका नतीजा सकारात्मक आता है तो इसे उचित माना जाना चाहिए।
उपरोक्त मानकों को पूरा करने वाली परियोजनाओं की बैंक फाइनैंसिंग को सरकार की गारंटी मिलनी चाहिए। चरणबद्ध गारंटी की व्यवस्था बनायी जा सकती है। मसलन 90 फीसदी पूरी हो चुकी परियोजनाओं के लिए 100 फीसदी गारंटी, 80 फीसदी पूरी हो चुकी परियोजनाओं के लिए 90 फीसदी गारंटी वगैरह। बैंकरों और अचल संपत्ति पेशेवरों से चर्चा करके इसमें सुधार किया जा सकता है।
उपरोक्त उपायों के साथ अगर ऋण गारंटी योजना लाई जाए तो इससे विनिर्माण क्षेत्र को बल मिलेगा। यह क्षेत्र रोजगार पैदा करने वाला है। जिन प्रवासी श्रमिकों को अपना रोजगार गंवाना पड़ा और अपने गांव लौटकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में नामांकन कराना पड़ा, वे भी अपना रोजगार वापस पा सकते हैं। इससे न केवल अर्थव्यवस्था को लाभ होगा बल्कि सरकार भी असंतोष से गुजर रहे आबादी के बढ़े हिस्से के कष्ट दूर कर सकेगी।
आगामी बजट न केवल वृहद आर्थिक तस्वीर पेश करेगा बल्कि आवास क्षेत्र जैसे विशिष्ट क्षेत्रों से संबंधित प्रस्तावों की मदद से भी यह काफी तगड़ा असर छोड़ सकता है।
