बाजार की गतिविधियों में सरकार का हस्तक्षेप अक्सर अनचाहे परिणाम लेकर आता है। बाजार प्रतिभागियों का लक्ष्य अपने प्रतिफल को अधिक से अधिक करना होता है और जरूरी नहीं कि यह बात हमेशा सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के साथ तालमेल में हो।
इस संदर्भ में ताजा उदाहरण है बिजली से चलने वाले वाहनों (EV) को फास्टर एडॉप्शन ऐंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड ऐंड इलेक्टि्रक व्हीकल्स (एफएएमई) योजना के तहत दी जाने वाली सब्सिडी।
इसी समाचार पत्र में प्रकाशित खबरों के मुताबिक ईवी बनाने वाले कुछ निर्माता अलग-अलग स्तरों पर नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। पहले खबर आई थी कि कुछ कंपनियां स्थानीयकरण के मानकों का पालन नहीं कर रही हैं।
सब्सिडी की अर्हता हासिल करने के लिए ईवी बनाने वालों को यह दिखाना होता है कि वे एक खास तादाद के कलपुर्जे स्थानीय स्तर पर बनवाते हैं या खरीदते हैं। बहरहाल देखा गया कि कुछ ईवी निर्माता मानकों का पालन नहीं करते हैं और वे आयात पर निर्भर हैं। संभवत: वे लागत कम रखने के लिए ऐसा करते हैं। यह बात सब्सिडी के उद्देश्य को ही नष्ट कर देती है क्योंकि ऐसा करने से सतत वृद्धि के लिए स्वदेशी मूल्य श्रृंखला ही तैयार नहीं होगी।
अब खबर है कि ईवी निर्माताओं की जांच की जा रही है कि उन्होंने सरकार द्वारा तय मूल्य सीमा को दरकिनार किया। एफएएमई योजना के तहत ईवी को सब्सिडी दी जाती है। यह सब्सिडी 1.5 लाख रुपये के फैक्टरी मूल्य तक मिलती है।
योजना के मुताबिक दोपहिया वाहन क्षेत्र में प्रति किलोवॉट 15,000 रुपये की सब्सिडी दी जाती है और यह वाहन की फैक्टरी कीमत के 40 फीसदी तक सीमित रहती है। ऐसे में प्रति दोपहिया वाहन सब्सिडी 17,000 रुपये से 66,000 रुपये तक रहती है।
सरकार को मिली शिकायतों के अनुसार ईवी निर्माता ईवी चार्जर और जरूरी सॉफ्टवेयर जैसी चीजों के लिए अलग से कीमत वसूल कर रहे हैं ताकि मूल्य सीमा का पालन कर सकें।
सरकार ने योजना के तहत पंजीकृत 64 ईवी निर्माताओं में से 17 को प्रतिबंधित कर दिया है। चल रही जांच में कई अन्य निर्माता मानकों का उल्लंघन करते हुए मिल सकते हैं।
सरकार ईवी पर सब्सिडी इसलिए दे रही है ताकि उपभोक्ता इस बदलाव को अपना सकें। ईवी को अपनाने से शहरों में वाहन प्रदूषण कम करने में मदद मिलेगी जो एक बड़ी चुनौती बन चुका है।
इससे ईंधन का आयात कम करने में भी मदद मिलेगी। यह सब इस अनुमान के साथ हो रहा है कि आगे चलकर अधिकतर बिजली उत्पादन भी नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों के जरिये होगा और बाहरी बैलेंस शीट बेहतर होगी। निश्चित तौर पर ईवी की बिक्री बढ़ी है लेकिन इनकी तादाद अभी भी कम है।
हालांकि सब्सिडी मिलने से उनको अपनाने की प्रक्रिया तेज हुई है लेकिन हालिया घटनाक्रम बताता है कि इसकी समीक्षा करने की आवश्यकता है। वृहद स्तर पर यह देखना होगा कि तादाद बढ़ने पर सरकार आखिर किस हद तक सब्सिडी दे सकेगी। सरकार उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना (पीएलआई ) के तहत भी निर्माण को प्रोत्साहन दे रही है।
सूक्ष्म स्तर पर योजना को नए सिरे से डिजाइन करना होगा। कीमतों को नियंत्रित करने के बजाय सीधे ग्राहकों को सब्सिडी दी जा सकती है क्योंकि कीमत कम करने पर निर्माता गुणवत्ता और सुरक्षा से समझौता कर सकते हैं। प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण के अनुभव को देखते हुए यह कठिन नहीं होना चाहिए।
सब्सिडी को ईवी के लिए कम ब्याज दर के माध्यम से भी ग्राहकों तक पहुंचाया जा सकता है और सरकार इसके अंतर का भुगतान सीधे कर्जदाता को कर सकती है। ईवी निर्माताओं द्वारा तय मूल्य सीमा से अधिक राशि लेने की बात यह भी बताती है कि उपभोक्ता अधिक राशि चुकाने को तैयार हैं। ऐसे में सब्सिडी के स्तर की भी नए सिरे से समीक्षा की जा सकती है।
स्थानीय स्तर पर कलपुर्जे खरीदने या बनवाने की निगरानी तकनीक की मदद से की जा सकती है। सरकार की सीमित क्षमता को देखते हुए उसे हमेशा योजनाओं को अधिक सक्षम ढंग से और बाजार हकीकतों को ध्यान में रखते हुए तैयार करना चाहिए।