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बिज़नेस स्टैंडर्ड
  लेख  बैंकों को भी लुभा रहा स्वर्ण ऋण कारोबार
लेख

बैंकों को भी लुभा रहा स्वर्ण ऋण कारोबार

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —November 16, 2020 10:45 PM IST
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इस वर्ष अप्रैल के मध्य में नकदी की कमी से बेहाल थाईलैंड के लोग बैंकॉक के चाइनाटाउन में अपना सोना बेचने के लिए बड़ी संख्या में कतारों में खड़े हो गए थे। कोविड-19 महामारी की वजह से वहां कई लोगों के रोजगार छिन गए थे और आय का नियमित स्रोत खत्म होने के बाद उनके पास सोना बेचने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं रह गया था। दुकान  खुलने से पहले ही उसके सामने लोग एक दूसरे से पर्याप्त दूरी बनाकर कतारों में खड़े हो जाते थे। यह सिलसिला जोर पकड़ता गया। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के उमडऩे से सोना खरीदने वाली दुकानों में नकदी की किल्लत हो गई। नतीजा यह हुआ कि थाईलैंड के प्रधानमंत्री प्रयुथ चान-ओचा को लोगों को धीरे-धीरे सोना बेचने के लिए कहना पड़ा ताकि सोना खरीदने वाले वाले दुकानदारों पर बोझ कम हो जाए।
थाईलैंड के लोगों के लिए सोना हमेशा से बचत का एक लोकप्रिय माध्यम रहा है, लेकिन वैश्विक स्तर पर इस पीली धातु की कीमतें चढ़ती देख लोग आर्थिक तंगी के कारण इसे बेचने के लिए आगे आने लगे।  
थाईलैंड से दूर भारत में अप्रैल के बाद सोने से ही जुड़ी एक दूसरी कहानी रची जा रही है। इन दिनों बैंक सोना गिरवी लेकर ऋण की पेशकश जोर-शोर से कर रहे हैं। मोटे तौर पर सोना गिरवी लेकर ऋण देने के कारोबार में मुथूट फाइनैंस, मणप्पुरम फाइनैंस और मुथूट कॉर्प जैसी मुठ्ठी भर कंपनियों का दखल रहा है। ऐसा पहली बार हुआ कि विभिन्न श्रेणियों के लोग सोना गिरवी रखकर बैंकों एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) से कर्ज लेने सामने आ रहे थे।
देश के सबसे बड़े कर्जदाता भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अनुसार देश के विभिन्न हिस्सों में सोना गिरवी रखकर ऋण लेने के लिए खासी संख्या में लोग आ रहे हैं। यहां तक कि पुराने निजी बैंक भी सोना गिरवी लेकर ऋण देने के कारोबार में खुलकर उतर आए हैं। सितंबर में सीएसबी बैंक लिमिटेड (पूर्व में कैथलिक सीरियन बैंक) का स्वर्ण ऋण खाता सालाना आधार पर 47 प्रतिशत बढ़ गया। इसी तरह, करूर वैश्य बैंक का भी स्वर्ण ऋण खाता इसी अवधि में 37 प्रतिशत तक उछल गया। एक गैर-सूचीबद्ध लघु वित्त बैंक (एसएफबी) का स्वर्ण ऋण खाता सितंबर में 550 करोड़ रुपये पहुंच गया, जो मार्च 2020 में महज 165 करोड़ रुपये था। इस एसएफबी के लिए अपने ऋण आवंटन खाते पर दबाव कम करने के लिए ऋण योजनाओं में विविधता लाना जरूरी हो गया था। वैसे भी सोना गिरवी लेकर ऋण देना सुरक्षित माना जाता है।
उधार लेने वाले लोगों के लिए भी कई फायदे हैं। जब कोई उपभोक्ता सोना गिरवी रखने के एवज में ऋण मांगता है तो उसके आभूषण या सोने का नि:शुल्क मूल्यांकन हो जाता है। इस तरह उसे अपने सोने की शुद्धता का भी अंदाजा हो जाता है। चूंकि, बैंक एवं वित्तीय संस्थान सोना वॉल्ट (सोना रखने का स्टोर) में रखते हैं, इसलिए ग्राहकों को सोना सुरक्षित रखने के एवज में किसी तरह का शुल्क भी देना नहीं पड़ता है। इनके अलावा सोना गिरवी रखते ही ग्राहकों को तत्काल रकम मिल जाती है और अन्य ऋण के मुकाबले इस पर ब्याज भी कम चुकाना पड़ता है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने हाल में ही मार्च 2021 तक स्वर्ण ऋण के लिए ऋण एवं मूल्य अनुपात (लोन टू वैल्यू या एलटीवी) बढ़ाकर 90 प्रतिशत तक कर दिया है। इसे आसान शब्दों में कहें तो अगर किसी व्यक्ति के पास 1 लाख रुपये मूल्य का सोना है तो उसे कोई बैंक 90,000 रुपये तक ऋण दे सकता है। जब तक सोने की कीमतों में भारी गिरावट नहीं हो तब तक बैंकों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। अगर ग्राहक ऋण चुकाने में असफल रहता है तो उस सूरत में भी बैंक आराम से सोना बेचकर अपनी रकम ऊपर कर सकते हैं।
अमूमन कारोबारी एवं खुदरा व्यवसाय करने वाले लोग तत्काल कारोबारी जरूरतों के लिए सोना गिरवी रखकर ऋण लेते हैं। ऐसे ऋण से नकदी की तत्काल जरूरतें भी पूरी करने में मदद मिलती हैं। वैसे भी सोना गिरवी रखकर ऋण आपात स्थिति में या स्वास्थ्य संबंधी जरूरतें पूरी करने के लिए ही लिया जाता है। इस ऋण की अवधि भी कम होती है और ज्यादातर मामलों में एक वर्ष से भी कम समय में ग्राहक रकम चुका कर अपना सोना छुड़ा लेते हैं।
कुछ समय पहले तक सोना गिरवी रखकर ऋण जुटाना लोगों के लिए सहज नहीं होता था और उनके मन में एक अपराध बोध आ जाता था। हालांकि अब ऐसी सोच चली गई है और अधिक से अधिक उपभोक्ता सोने के बदले ऋण लेने के लिए कतारों में दिख जाएंगे। बस जरूरत इतनी है कि बैंक सभी ग्राहकों को इस बाबत पूरी एवं एकसमान रूप से जानकारी दें। जब तक सोने के बदले ऋण सोना भुनाने का एक पुख्ता साधन रहेगा तब तक आरबीआई को भी लंबे समय तक एलटीवी मौजूदा स्तर पर रखने में कोई परेशानी नहीं होगी।
वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार कैलेंडर वर्ष 2020 की दूसरी तिमाही में भारत में सोने का भंडार बढ़कर 657.70 टन हो गया। पहली तिमाही में यह आंकड़ा 642.80 टन था। पिछले कुछ वर्षों में सबसे अधिक स्वर्ण भंडार रखने वाले दुनिया के 10 शीर्ष केंद्रीय बैंकों की फेहरिस्त में मोटे तौर पर कोई बदलाव नहीं हुआ है। अमेरिका 8,000 टन सोना के साथ इस सूची में शीर्ष पर है। इसके पास जर्मनी, इटली और फ्रांस के केंद्रीय बैंकों के पास संयुक्त रूप से जमा मात्रा के बराबर सोना मौजूद है। भारत इस सूची में नौवें स्थान पर है और यह नीदरलैंड्स से ऊपर है।
हालांकि भारत में लोगों एवं परिवारों के पास कहीं अधिक मात्रा में -25,000 टन-तक सोना मौजूद है। भारत का सोना आयात करने पर खर्च तेल के बाद सबसे अधिक है और उर्वरकों के आयात पर होने वाले खर्च से अधिक है। हमारा देश सालाना करीब 800 से 900 टन सोना आयात करता है। हालांकि वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में कोविड-19 महामारी की वजह से सोना आयात में 94 प्रतिशत तक कमी आई है। वित्त वर्ष 2020 की समान अवधि में सोने का आयात 11.5 अरब डॉलर रहा था।
सोने के मुद्रीकरण के लिए कई योजनाएं आई हैं। इसका सबसे ताजातरीन उदाहरण फरवरी 2015 में दिखा जब बजट में सरकार ने स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (जीएमएस) शुरू की थी। जीएमएस के तहत लोग सोना व्यावसायिक बैंकों में जमा कर सकते हैं और इस पर ब्याज भी अर्जित कर सकते हैं। वे सोना समर्थित बॉन्ड भी खरीद सकते हैं और ऐसे बॉन्ड पर ब्याज अर्जित कर सकते हैं। कुल मिलाकर घर में पड़े रहने के बजाय इन योजनाओं में सोने का इस्तेमाल कहीं लाभदायक है।
नवंबर 1962 में पहला गोल्ड बॉन्ड आया था और 15 वर्ष की अवधि की इस योजना पर 6.5 प्रतिशत ब्याज की पेशकश की जा रही थी। हालांकि इसे बहुत अधिक सफलता नही मिली और केवल 16.7 टन सोना ही जमा हो सका। मार्च 1965 में एक बार फिर ऐसा ही बॉन्ड आया और इसके तहत लोगों से 6.1 टन सोना जुटाया गया। इसके बाद 1980 में आया नैशनल डिफेंस गोल्ड बॉन्ड योजना 13.7 टन सोना जुटाने में सफल रही और मार्च 1993 में आई एक अन्य योजना के जरिये 41.12 टन सोना जुटाया गया। आरबीआई ने 1999 में एक गोल्ड डिपॉजिट स्कीम की मंजूरी दी थी, लेकिन बैंक और लोग दोनों में किसी ने भी इसमें बहुत उत्साह नहीं दिखाया।
अक्टूबर 2015 से सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड ने 44 हिस्सों में 22,723 करोड़ रुपये जुटाए हैं और चालू वित्त वर्ष में इनका लगभग आधा हिस्सा आया है। सबसे अधिक रकम सीरीज 5 बॉन्ड के जरिये चालू वित्त वर्ष में जुलाई (3,386 करोड़ रुपये) में जुटाई गई, जबकि सबसे कम रकम दिसंबर में 2017 में (32.14 करोड़ रुपये) जुटाई गई। हालांकि यह एक बड़ी सफलता नहीं मानी जा सकती, लेकिन बचतकर्ताओं ने उत्साह दिखाना जरूर शुरू कर दिया है। सोने की चढ़ती कीमतों के साथ ही फिलहाल मौजूद बॉन्ड पोर्टफोलियो 26,878 करोड़ रुपये का हो गया है। गोल्ड डिपॉजिट को लेकर उत्साह जरूर ठंडा रहा है। कुछ मंदिर न्यास सोना जमा कराते रहे हैं, लेकिन आम लोगों ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई है। सोना भुनाने के लिए इसे गिरवी रख कर ऋण लेना सबसे बेहतर जरिया है और कोविड-19 महामारी में इसे बढ़ावा मिल रहा है।
(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड में सलाहकार संपादक एवं जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)

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