facebookmetapixel
Gratuity Calculator: ₹50,000 सैलरी और 10 साल की जॉब, जानें कितना होगा आपका ग्रैच्युटी का अमाउंटट्रंप के ट्रेड एडवाइजर पीटर नवारो ने BRICS गठबंधन पर साधा निशाना, कहा- यह पिशाचों की तरह हमारा खून चूस रहा हैGold, Silver price today: सोने का वायदा भाव ₹1,09,000 के आल टाइम हाई पर, चांदी भी चमकीUPITS-2025: प्रधानमंत्री मोदी करेंगे यूपी इंटरनेशनल ट्रेड शो 2025 का उद्घाटन, रूस बना पार्टनर कंट्रीGST कट के बाद ₹9,000 तक जा सकता है भाव, मोतीलाल ओसवाल ने इन दो शेयरों पर दी BUY रेटिंग₹21,000 करोड़ टेंडर से इस Railway Stock पर ब्रोकरेज बुलिशStock Market Opening: Sensex 300 अंक की तेजी के साथ 81,000 पार, Nifty 24,850 पर स्थिर; Infosys 3% चढ़ानेपाल में Gen-Z आंदोलन हुआ खत्म, सरकार ने सोशल मीडिया पर से हटाया बैनLIC की इस एक पॉलिसी में पूरे परिवार की हेल्थ और फाइनेंशियल सुरक्षा, जानिए कैसेStocks To Watch Today: Infosys, Vedanta, IRB Infra समेत इन स्टॉक्स पर आज करें फोकस

चार आर्थिक रुझान तय करेंगे भारत की दशा-दिशा

Last Updated- February 15, 2023 | 10:41 PM IST
Indian Economy

वित्त वर्ष 2023-24 का बजट वैश्विक स्तर पर पूंजीगत व्यय, महंगाई, राजकोषीय घाटा और वैश्वीकरण के प्रति बदल रही धारणा को परिलक्षित करता है। बता रहे हैं टी टी राम मोहन

आने वाले वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था को चार बड़े महत्त्वपूर्ण रुझान प्रभावित कर सकते हैं। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए प्रस्तुत बजट में इन रुझानों की स्पष्ट झलक मिलती है। ये रुझान निम्नलिखित हैं:

पहला महत्त्वपूर्ण रुझान यह है कि मध्यम अवधि में पूंजीगत व्यय अर्थव्यवस्था को दिशा देगा। वर्तमान परिदृश्य पर विचार करने के बाद ऐसा कहा जा सकता है। ताजा आर्थिक समीक्षा में इस तथ्य पर रोशनी डाली गई है कि सरकार का पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 2009 से वित्त वर्ष 2020 की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.7 प्रतिशत के दीर्घ अवधि के औसत से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में जीडीपी का 2.9 प्रतिशत हो गया।

कुछ दिनों पूर्व प्रस्तुत बजट में पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 2024 में बढ़कर जीडीपी का 3.3 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। यह आंकड़ा एक असहज तथ्य की तरफ इशारा करता है।

निजी क्षेत्र से निवेश सुस्त रहा है और इस कमी की भरपाई भी सरकार को करनी पड़ी है। भारत में निजी निवेश में उतार-चढ़ाव कोई अनूठी बात नहीं है। यह उस रुझान का हिस्सा है जो तेजी से उभरते बाजारों एवं विकासशील देशों (ईएमडीई) में देखने को मिलता है।

विश्व बैंक की वैश्विक आर्थिक संभावना रिपोर्ट (2023) के अनुसार 2022 में ईएमडीई में निवेश वृद्धि दर 2000-2021 के औसत से करीब 5 प्रतिशत अंक कम रही और अगर चीन को शामिल नहीं करें तो यह करीब 0.5 प्रतिशत अंक नीचे रही।

विश्व बैंक को नहीं लगता कि 2024 में निजी निवेश कोविड महामारी से पहले दिखे रुझानों के स्तरों तक पहुंच पाएगा। विश्व बैंक के अनुसार ईएमडीई में निवेश की गति धीमी पड़ने के पीछे कई कारक हैं। इन कारकों में 2010-19 के दौरान उत्पादन में धीमापन, जिंसों की कमजोर कीमतें, ईएमडीई में पूंजी प्रवाह में अधिक उतार-चढ़ाव, आर्थिक एवं भू-राजनीतिक अनिश्चितता और सार्वजनिक और निजी स्तरों पर भारी कर्ज बोझ शामिल हैं। इनमें कई कारक भारत पर लागू होते हैं।

सरकार को वित्त वर्ष 2024 में पूंजीगत व्यय में भारी इजाफा होने की उम्मीद है। मगर इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा कि वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 0.5 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य रखा गया है। आर्थिक प्रोत्साहन वापस लिए जाने का प्रभाव यह होगा कि अर्थव्यवस्था में खपत कम हो जाएगी। यह सच है कि व्यय में पूंजीगत व्यय बढ़ता दिख रहा है और यह अर्थव्यवस्था में खपत को बढ़ावा देगा।

मगर राजकोषीय घाटे में कमी से खपत में कमी का असर तभी नियंत्रित किया जा सकेगा जब पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी राजकोषीय घाटे में कमी की तुलना में अधिक होगी। बजट में व्यक्त अनुमानों के अनुसार पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी 40 आधार अंक होगी जबकि राजकोषीय घाटे में गिरावट 50 आधार अंक रहेगी। इस तरह अंतिम परिणाम यह होगा कि अर्थव्यवस्था की चाल सुस्त पड़ जाएगी।

दूसरा अहम रुझान यह है कि राजकोषीय घाटा ऊंचे स्तर पर बना रहेगा। वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.4 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य अपरिवर्तित रखा है। विश्लेषकों ने इसका स्वागत किया है। बजट में वर्ष 2023-24 में राजकोषीय घाटा 5.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।

अगर यूक्रेन में टकराव बढ़ता है और वैश्विक स्तर पर स्थिति बिगड़ती है तो सरकारी सब्सिडी बढ़ेगी (वित्त वर्ष 2023-24 में सब्सिडी में कटौती की गई है) और फिर पुरानी स्थिति आ जाएगी। 2024 में चुनाव से पहले कुछ रियायत आदि दी जा सकती है। राजकोषीय स्थिति में मौलिक स्तर पर तभी बदलाव आ पाएगा जब कर-जीडीपी अनुपात काफी बढ़ेगा (मान लें जीडीपी का 12 प्रतिशत) या विनिवेश से पूंजी प्राप्ति बहुत अधिक होती है या दोनों ही बातें होती है। मगर इनमें किसी भी लिहाज से भी परिदृश्य अच्छा नहीं दिख रहा है। वित्त वर्ष 2023-24 में कर-जीडीपी अनुपात 11.1 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। पिछले दशक में इस अनुपात का सर्वाधिक स्तर 11.4 प्रतिशत रहा है।

जहां तक विनिवेश से प्राप्त रकम की बात है तो आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 2015 से जनवरी 2023 के दौरान आठ वर्षों की अवधि में सार्वजनिक उपक्रमों में हिस्सेदारी बेचने से सरकार को कुल 4 लाख करोड़ रुपये (सालाना 50,000 करोड़ रुपये) रकम प्राप्त हुई है। इस पूरी अवधि में नीतिगत बिक्री से केवल 69,412 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं। ऐसा लगता है कि 3 प्रतिशत का राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन लक्ष्य फिलहाल हासिल करना मुश्किल है।

वैश्विक वित्तीय संकट और कोविड महामारी के बाद हर जगह सरकार का घाटा बढ़ रहा है और सार्वजनिक कर्ज में इजाफा हो रहा है। भारत भी इसका अपवाद नहीं है। वर्ष 2005 से 2021 की अवधि में भारत का ऋण-जीडीपी अनुपात 81 प्रतिशत से बढ़कर 85 प्रतिशत तक पहुंच गया। मगर दूससे देशों की तुलना में सामान्य ही लग रहा है।

अमेरिका का यह अनुपात 66 प्रतिशत से 128 प्रतिशत, ब्रिटेन में 39 प्रतिशत से 95 प्रतिशत, चीन में 26 प्रतिशत से 72 प्रतिशत और ब्राजील में 69 प्रतिशत से बढ़कर 93 प्रतिशत पहुंच गया है। भारत पर 95 प्रतिशत देनदारियां घरेलू है, इसलिए इस लिहाज से यहां सार्वजनिक कर्ज थोड़ा नियंत्रित लग रहा है। वृद्धि-ब्याज अंतर (ग्रोथ-इंटरेस्ट डिफरेंशियल) भी भारत के पक्ष में दिख रहा है।

तीसरा अहम रुझान यह है कि महंगाई दर ऊंचे स्तर पर बनी रहेगी। राजकोषीय घाटा अधिक रहने से महंगाई ऊंचे स्तर पर पहुंच सकती है। इसके अलावा कमोबेश दुनिया के देशों के बीच आपसी सहयोग कम होता जाएगा। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे हो सकती है मगर दिशा काफी स्पष्ट लग रही है।

वैश्वीकरण का एक प्रमुख उद्देश्य दुनिया में कहीं भी सस्ते दाम पर वस्तु एवं सेवाओं का लाभ उठाना है। इतिहासकार हैरोल्ड जेम्स ने हाल में कहा कि इतिहास गवाह है कि वैश्वीकरण के कारण महंगाई दर में कमी लाने में मदद मिली है। क्षोभ की बात है कि वैश्वीकरण की धारणा अब कमजोर पड़ती नजर आ रही है।

कोविड महामारी और यूक्रेन में लड़ाई छिड़ने के बाद हरेक देश विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर अपनी निर्भरता की समीक्षा कर रहा है। अमेरिका और इसके सहयोगी देश चीन पर निर्भरता यथासंभव कम करने की दिशा में काम कर रहे हैं। दुनिया में चीन का प्रभाव कम करना अमेरिका एवं पश्चिमी देशों की नई रणनीति बन गई है।

अमेरिका में महंगाई दर में वृद्धि 2 प्रतिशत तक नियंत्रित रखने का लक्ष्य बढ़ाने पर गंभीर चर्चा चल रही है ताकि इसे कम करने के लिए मौद्रिक नीति के तहत अधिक गुंजाइश बनी रहे। भारत में 4 प्रतिशत महंगाई लक्ष्य महज सांकेतिक रह गया है। अगर महंगाई दर 6 प्रतिशत से नीचे आती है यह किसी खुशी से कम नहीं होगी।

चौथा महत्त्वपूर्ण रुझान यह है कि आत्मनिर्भरता और आयात प्रतिस्थापन अब नई वास्तविकता बन गई है। दुनिया के हरेक देश स्थानीय स्तर पर विनिर्माण को अधिक बढ़ावा देंगे। यह बात अग्रणी आर्थिक एवं सैन्य शक्तियों के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण होगी।

भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है और इसकी सैन्य ताकत भी बढ़ रही है। इस लिहाज से आत्मनिर्भर बनने की तरफ झुकाव अवश्यसंभावी है। हमें इस रुझान को लेकर अनावश्यक रूप से चिंतित नहीं होना चाहिए। भारत भी वही कर रहा है जिसका अनुसरण दुनिया में दूसरे देश कर रहे हैं। बजट में शुल्कों में कुछ बदलाव किए गए हैं। विश्लेषकों की नजर में घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने के लिए यह कदम उठाया गया है।

भारत सहित दुनिया में संरक्षणवाद की तरफ बढ़ती सोच पर दुख जताना कहीं से उपयुक्त नहीं होगा। वास्तव में अगर उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं की सफलता सुनिश्चित करने की दिशा में ध्यान दिया जाए तो यह अधिक फायदेमंद होगा। हमें औद्योगिक नीति में मनमानी रोकने के उपाय भी खोजने चाहिए। हमें उपयुक्त मानदंडों की मदद से पीएलआई योजना के असर पर नजर रखनी चाहिए। आने वाले वर्षों में औद्योगिक नीति आर्थिक नीति का अभिन्न हिस्सा होगी। आने वाले वर्षों में वृहद आर्थिक परिणाम इन चारों रुझानों पर निर्भर रहेंगे।

First Published - February 15, 2023 | 10:41 PM IST

संबंधित पोस्ट