केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार को इस समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में कहा कि सरकार ने अब तक यह तय नहीं किया है कि अर्थव्यवस्था को और अधिक गतिशील बनाने के लिए एक और राजकोषीय प्रोत्साहन कब दिया जाएगा और उसका आकार क्या होगा। समय तेजी से हाथ से निकलता जा रहा है और ऐसे में उनका बयान बहुत चकित करने वाला है। सरकार की इस वर्ष की उधारी योजनाओं में अवश्य दुविधा की प्रवृत्ति नजर आई और यह इस सप्ताह 12 लाख करोड़ रुपये पर अपरिवर्तित रहा। सरकार का मानना है कि राजस्व संग्रह में सुधार के साथ उसे इस वर्ष अतिरिक्त उधारी की आवश्यकता नहीं होगी। हालांकि एक बार जब वह मांग में सुधार के लिए व्यय बढ़ाने का निर्णय करेगी तो हालात बदल जाएंगे। मौजूदा स्तर पर खरीदारी करने पर अतिरिक्त व्यय की गुंजाइश नहीं बचेगी। हालांकि देशव्यापी लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। निजी क्षेत्र के अधिकांश अर्थशास्त्रियों को आशा है कि चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर में दो अंकों की गिरावट आएगी। वित्त मंत्री का वक्तव्य स्पष्ट करता है कि सरकार मौजूदा आर्थिक हालात का सही आकलन नहीं कर पाई है।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में 24 फीसदी की गिरावट आई और माना जा रहा है कि दूसरी तिमाही में भी उत्पादन दो अंकों में घटेगा। अब जबकि वित्त वर्ष की एक छमाही बीत चुकी है, सरकार के पास वास्तविक आकलन करने के लिए पर्याप्त आंकड़े हैं। इससे उसे यह तय करने में मदद मिलेगी कि अर्थव्यवस्था को किस तरह के सहयोग की आवश्यकता है। तब यह आकलन करना अहम होगा कि सरकार आर्थिक गतिविधियों को किस हद तक प्रोत्साहन दे सकती है और बाजार में न्यूनतम हलचल के साथ इसके लिए जरूरी संसाधन कैसे जुटाए जा सकते हैं। सरकार ने पहले ही उधारी लक्ष्य को बजट अनुमान की तुलना में 50 प्रतिशत बढ़ा दिया है और चालू वर्ष में सार्वजनिक ऋण भी सकल घरेलू उत्पाद के 80 फीसदी से अधिक हो सकता है। यह चिह्नित करना आवश्यक है समग्र आर्थिक गतिविधियां और राजकोषीय दबाव दोनों वित्त वर्ष के साथ समाप्त होने वाले नहीं हैं।
ऐसे में सरकार को अर्थव्यवस्था पर अधिकतम प्रभाव डालने के लिए आवश्यक राजकोषीय हस्तक्षेप के स्पष्ट खाके की दरकार होगी। यदि सरकार इस दिशा में सहजता से काम करे तो बेहतर होगा। उसे विशेषज्ञों के एक पैनल के साथ काम करना चाहिए। अब जबकि अर्थव्यवस्था काफी हद तक खुल चुकी है, सरकार को जल्द से जल्द उपलब्ध राजकोषीय गुंजाइश का इस्तेमाल शुरू कर देना चाहिए। ऐसा करने से नुकसान को सीमित करने में मदद मिलेगी और आर्थिक गतिविधियों में नई जान फूंकी जा सकेगी। इसके अलावा एक स्पष्ट खाका सबके लिए मददगार होगा। उदाहरण के लिए वित्तीय बाजारों को यह पता होगा कि वे क्या अपेक्षा रख सकते हैं। वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से देखें तो बाजार में भ्रम की स्थिति है और वह मान रहा है कि सरकार आर्थिक गतिविधियों की सहायता के लिए उधारी बढ़ाकर अपरिहार्य हालात को केवल टाल रही है। भारतीय रिजर्व बैंक भी जरूरी हस्तक्षेप की मदद से उधारी को सहज ढंग से अंजाम देने के लिए बेहतर स्थिति में होगा। इतना ही नहीं एक स्पष्ट लक्ष्य सरकार के लिए भी बेहतर होगा। जरूरत के मुताबिक वह परिसंपत्तियों की बिक्री और घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से उधारी के माध्यम से संसाधन जुटा सकता है। महामारी के गहन प्रभाव को देखते हुए आर्थिक प्रबंधन के लिए अधिक सकारात्मक रुख अपनाना होगा। मौजूदा परिस्थितियां असाधारण हैं और सरकार की प्रतिक्रिया को जरूरत के मुताबिक संशोधित करना होगा। निर्णय प्रक्रिया में देरी से हालात केवल और जटिल होंगे।