देवेंद्र फडणवीस ने नवंबर 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा में बतौर मुख्यमंत्री जो अंतिम भाषण दिया था वह उनकी ही लिखी एक कविता के साथ समाप्त हुआ था जिसकी अंतिम पंक्ति का अर्थ था-मैं वापस आऊंगा।
इस बात ने महाराष्ट्र के राजनीतिक हलकों में इस बात का खूब मजाक बनाया गया और राजनेता जितेंद्र आव्हाड ने तो एक टिकटॉक वीडियो भी बनाया जिसमें पीछे मुख्यमंत्री की मैं वापस आऊंगा की घोषणा गूंज रही थी और कैमरे के समक्ष खड़ा एक व्यक्ति कह रहा था, ‘‘जब वापस आओ तो अपने साथ थोड़ा सा चूना लेते आना।’’
2019 का वह समय महाराष्ट्र की राजनीति में परिवर्तन लाने वाला समय था: महाराष्ट्र में 36 दिन तक चले नाटक के बाद उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने, अजित पवार ने पहले पाला बदला और फिर वापस आए तथा फडणवीस ने इस्तीफा दिया।
कुछ समय विपक्ष में बिताने के बाद तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के सक्रिय सहयोग से फडणवीस वापस आ गए लेकिन यह वापसी उप मुख्यमंत्री के रूप में हुई थी और उनके पास वित्त मंत्रालय का प्रभार था।
वह एकनाथ शिंदे को रिपोर्ट करते थे जो शिव सेना से टूट कर अलग हुए धड़े के नेता थे और ऑटो चालक से मुख्यमंत्री तक का सफर तय करने में कामयाब रहे थे। पिछले वर्ष दीवाली मिलन पर जब संवाददाताओं ने फडणवीस से मुलाकात की और उनसे पूछा कि क्या वह अपनी मौजूदा भूमिका से खुश हैं तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया।
तब से अब तक हालात और खराब हुए हैं। मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही सप्ताह के भीतर शिंदे ने महाराष्ट्र इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मेशन (मित्र) की स्थापना की। यह राज्य स्तरीय संगठन केंद्र के नीति आयोग के तर्ज पर स्थापित किया गया। फडणवीस को इसका सह अध्यक्ष बनाया गया। इस निर्णय में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं होता अगर उन्होंने बिल्डर और अशर समूह के मालिक अजय अशर को वाइस चेयरमैन (कैबिनेट रैंक) न बनाया होता।
यही वह समूह है जो बांद्रा, घाटकोपर और ठाणे में संपत्तियों का निर्माण कर रहा है। जब महाराष्ट्र विकास आघाडी (एमवीए) की सरकार थी और शिंदे शहरी विकास मंत्री थे तब मुंबई भाजपा अध्यक्ष आशीष शेलार ने विधानसभा में शिंदे और अशर की ‘करीबी’ को लेकर बात की थी। वह भाषण अभी भी सार्वजनिक पटल पर उपलब्ध है।
भाजपा के नेता निजी बातचीत में वही सवाल कर रहे हैं जो कांग्रेस के नेता सार्वजनिक रूप से कर रहे हैं। कांग्रेस नेता नाना पटोले ने पूछा, ‘देवेंद्र फडणवीस जो उस वक्त विपक्ष के नेता थे, उन्होंने भी शिंदे और अशर की करीबी को लेकर आपत्ति की थी। ऐसे में शिंदे और फडणवीस की सरकार उसी व्यक्ति को इतने अहम पद पर कैसे नियुक्त कर सकती है।’
फडणवीस और उनकी पत्नी अमृता कुछ अन्य वजहों से भी खबर में बने हुए हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में विधायकों ने उनके असाधारण भाषण को ध्यान से सुना जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे उनकी पत्नी को एक फैशन डिजाइनर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने पर विवश होना पड़ा क्योंकि उसके पिता एक बुकी थे और इस समय भूमिगत हैं।
करीब दो वर्षों तक इस युवा फैशन डिजाइनर को फडणवीस के घर पर आसानी से आनेजाने की सुविधा मिली रही। अब परिवार का दावा है कि इस रिश्ते में खटास आ गई और मामला वसूली की मांग, धमकी, ब्लैकमेल आदि तक चला गया। इस प्रकरण को लेकर तमाम और बातें हैं। डिजाइनर अब जेल में बंद है।
महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनाव करीब एक वर्ष पहले होने थे। पिछली सरकार ने इन्हें टालने के लिए तमाम तरह के बहाने बनाए। मौजूदा सरकार भी जल्दी चुनाव कराती नहीं दिख रही है। फॉक्सकॉन परियोजना के पड़ोसी राज्य गुजरात में चले जाने से भी महाराष्ट्र सरकार की प्रशासनिक प्रतिष्ठा को क्षति पहुंची है।
एमवीए के साझेदार भी 16 विधायकों की टूट के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का इंतजार कर रहे हैं। उस टूट के कारण ही शिव सेना में विभाजन हुआ और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार का पतन हुआ था।
शिंदे सरकार 43 मंत्रियों की नियुक्ति कर सकती है। फिलहाल उसके केवल 20 मंत्री हैं क्योंकि तमाम दबावों का समायोजन करना संभव नहीं हो पा रहा है। गठबंधन 12 लोगों को विधान परिषद में भी नामित कर सकता है। परंतु कांग्रेस से पाला बदलकर आने वाले नेताओं के साथ-साथ पुराने आरएसएस कार्यकर्ताओं की दावेदारी के बीच इस विषय पर कोई निर्णय नहीं हो पा रहा है।
बहरहाल इस संकट के सबसे बड़े लाभार्थी के रूप में एकनाथ शिंदे उभरे हैं क्योंकि वह तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने का सपना ही देख सकते थे। जबकि सबसे अधिक नुकसान फडणवीस को उठाना पड़ा है। उन्हें हमेशा से एक साफ-सुथरा नेता माना गया जिसकी छवि बिल्कुल पड़ोस के लड़के जैसी रही जिसने महाराष्ट्र में रहने के लिए केंद्र में जाने की पेशकश ठुकरा दी थी।
लेकिन अचानक उनके विरोधी सामने आने लगे हैं: विनोद तावड़े जिन्हें 2019 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया गया था लेकिन पार्टी के भीतर उनका कद बढ़ा और अब वह बिहार के प्रभारी हैं। वहीं राधाकृष्ण विखे पाटिल जो कुछ वर्ष पहले कांग्रेस से भाजपा में आए, वह महाराष्ट्र शुगर कोऑपरेटिव क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हैं और इस समय सरकार में राजस्व मंत्री हैं।
विखे पाटिल मराठा हैं और बहुत साधारण ढंग से रहना पसंद करते हैं लेकिन उनकी पहुंच दिल्ली में बहुत ऊपर तक है। अगर अदालत शिंदे को 16 अन्य विधायकों के साथ सदस्यता के अयोग्य घोषित करती है तो वह मंत्री नहीं रह पाएंगे। अगर आपको लग रहा है कि उस स्थिति में शिंदे की जगह फडणवीस लेंगे तो हम आपको बता दें कि पाटिल का नाम भी चर्चा में है।
चुनाव जीतने के मामले में भी सरकार का रिकॉर्ड कोई बहुत शानदार नहीं रहा है। उसे पुणे में कास्बा उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा जहां भाजपा करीब तीन दशक से जीत रही थी।
फडणवीस अपनी खोई हुई जमीन कैसे हासिल करते हैं यह देखने वाली बात होगी। उन्होंने भाजपा को सत्ता में वापस लाने के लिए हरसंभव प्रयास किया और अब जब वह सत्ता में है तो वह काफी कुछ गंवाते हुए दिख रहे हैं, खासकर अपनी प्रतिष्ठा।