केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने बुधवार को एक बार फिर दोहराया कि सरकार सन 2025 तक निर्यात को एक लाख करोड़ डॉलर के महत्त्वाकांक्षी स्तर तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है। देश की मौजूदा निर्यात उपलब्धियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह लक्ष्य बहुत बड़ा है। गत पूर्ण वित्त वर्ष में भारत का वाणिज्यिक वस्तु निर्यात 320 अरब डॉलर से भी कम रहा। इससे पिछले वित्त वर्ष में भी यह 330 अरब डॉलर रहा था। सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 214 अरब डॉलर थी। दूसरे शब्दों में कहें तो यदि सरकार का लक्ष्य केवल वाणिज्यिक निर्यात से संबंधित है तो उसे सन 2025 तक इसे तीन गुना करना होगा। बहरहाल यदि सन 2025 के एक लाख करोड़ डॉलर के लक्ष्य में सेवा क्षेत्र का निर्यात भी शामिल है तब वाणिज्यिक निर्यात को पांच साल में दोगुना करना होगा। देश में निजी निवेश की मौजूदा स्थिति को देखते हुए और वैश्विक अर्थव्यवस्था के हालात के मद्देनजर यह आसान नहीं है।
इस लक्ष्य को हासिल करने की धूमिल संभावनाओं के बीच इसकी महत्ता कम नहीं होनी चाहिए। इसमें दोराय नहीं है कि विश्व व्यापार में भारत की भूमिका में इजाफा करना और निर्यात में बढ़ोतरी करना ही राष्ट्रीय आय में स्थायी बढ़ोतरी का माध्यम है। फिलहाल ऐसा करके ही समृद्धि हासिल की जा सकती है। बहरहाल, नीतिगत संदर्भ को देखें तो अधिकांश पर्यवेक्षक यही मानेंगे कि निर्यात में स्थायी सुधार के लिए कोई वास्तविक प्रयास नहीं किया जा रहा है। बल्कि सरकार ने संरक्षणवाद, आयात प्रतिस्थापन जैसे कदम उठाए हैं। सरकार ने गत वर्ष क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसेप) को नकार दिया। भारत के अलावा क्षेत्र की तमाम बड़ी आर्थिक शक्तियां आरसेप में नजर आ रही हैं। यह भी चिंता का विषय है।
घरेलू उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा से बचाने की इच्छा नए निर्यात बाजार तलाशने और उनमें इजाफा करने में मददगार नहीं होगी। आरसेप से बाहर रहने का अर्थ यह है कि भारत को वैश्विक निर्यात के तेजी से विकसित होते केंद्रों में प्राथमिकता वाली पहुंच हासिल नहीं होगी। सन 2019 में वैश्विक आयात में आरसेप के सदस्य देशों की हिस्सेदारी 26 फीसदी थी। यह 2009 के 22 फीसदी से अधिक है। इसके विपरीत वैश्विक आयात में उत्तरी अमेरिकी देशों की स्थिति में शायद ही कोई बदलाव आया। जबकि समान अवधि में वैश्विक आयात में पश्चिमी यूरोप के देशों की हिस्सेदारी में कमी आई। दूसरे शब्दों में कहें तो आरसेप देश भविष्य के निर्यात केंद्र हैं और भारतीय निर्यातक उन तक प्राथमिकता वाली पहुंच से वंचित हैं।
जानकारी के मुताबिक बुधवार को बोर्ड ऑफ ट्रेड बैठक में फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन ने सरकार से अनुरोध किया कि अधिक से अधिक मुक्त व्यापार समझौतों को अंजाम दे। भारत यदि किसी भी बड़े व्यापारिक समूह की प्राथमिकता पहुंच से बाहर रहता है तो यह उसके निर्यात के लिए नुकसानदेह होगा। परंतु सच यह भी है कि घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए अपनाए गए नए उपाय मसलन क्षेत्र विशेष के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) आदि किसी भी देश के लिए भारत के साथ व्यापक समझौते की राह को मुश्किल बनाएंगे। अर्थव्यवस्था के विविध क्षेत्रों में पीएलआई का विस्तार यही सुझाता है कि सरकार निर्यात प्रतिस्पर्धा को लेकर गंभीर नहीं है। यूरोपीय संघ जैसे अपेक्षाकृत उत्सुक साझेदारों के साथ भी सरकार लगातार यह जोर दे रही है कि वह व्यापक व्यापार समझौते की इच्छुक नहीं है। ऐसे हालात में तब तक महत्त्वाकांक्षी निर्यात लक्ष्य दोहराना निरर्थक है जब तक सरकार वास्तव में भारतीय निर्यातकों की विश्व बाजार में पहुंच सुधारने की दिशा में काम नहीं करती।
