सिलिकन वैली बैंक एवं इसकी नियंत्रक (होल्डिंग) कंपनी सिलिकन वैली बैंक फाइनैंशियल ग्रुप (एसवीबीएफजी) मार्च में धराशायी हो गए। इसके तुरंत बाद सिग्नेचर बैंक और कुछ समय के अंतराल के बाद ही फर्स्ट रिपब्लिक बैंक भी धराशायी हो गए। ऐसी आशंका जताई जा रही है कि मझोले आकार के कुछ और बैंक भी कारोबारी रूप से विफल हो सकते हैं।
अमेरिका के फेडरल रिजर्व बोर्ड (एफआरबी) सिलिकन वैली बैंक के विफल होने के कारणों की समीक्षा करने और इसे प्रकाशित करने में तत्परता दिखाई है। इससे भी अधिक सराहनीय बात यह रही कि इस समीक्षा में सिलिकन वैली बैंक के धराशायी होने के पीछे का सच सार्वजनिक करने में किसी तरह की हिचकिचाहट नहीं दिखाई गई। बैंक का प्रबंधन विफल हो गया। बैंक का निदेशकमंडल विफल हो गया।
पर्यवेक्षक भी विफल रहे। नियमन के मोर्चे पर भी कमी रही। कुल मिलाकर जो भी गलतियां हो सकती थीं वे हुईं। फेडरल रिजर्व की समीक्षा सभी बैंकरों, बैंकों के निदेशकमंडलों, नियामकों और पर्यवेक्षकों के लिए पढ़ना अनिवार्य होना चाहिए। इस रिपोर्ट से एक महत्त्वपूर्ण बिंदु पर सबका ध्यान जाएगा। वह बिंदु यह है कि केवल यह मान लेना निरर्थक होगा कि बाजार में कारोबारी शिष्टाचार अकेले बैंकिंग क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए पर्याप्त है।
सबसे पहले हम इस चर्चा की शुरुआत प्रबंधन और निदेशक मंडल की विफलताओं से करते हैं। एसवीबीएफजी की परिसंपत्तियों का आकार 2019 और 2021 के बीच तीन गुना बढ़ गया। इस बीच, जमा रकम का आना भी जारी रहा। उस दौरान तकनीकी क्षेत्र में तेज वृद्धि दिख रही थी इसलिए ऋण आवंटन भी तेजी से बढ़ा। तकनीकी क्षेत्र में अगर किसी ऋण की वृद्धि दर औसत ऋण आवंटन दर से अधिक हो जाती है तो यह स्थिति संकट को आमंत्रित करने लगती है।
प्रबंधन और निदेशकमंडल प्रायः
इस पहलू पर ध्यान नहीं देते हैं। परिसंपत्ति जोखिम को समझने के लिए प्रबंधन के पास पर्याप्त क्षमता नहीं होती है। आंतरिक नियंत्रण एवं ढांचा तेज वृद्धि दर के साथ तालमेल बैठाने में असफल रहते हैं। तेजी से बढ़ने-घटने वाली जमा रकम पर निर्भरता बढ़ती जाती है। प्रबंधकों को मिलने वाले प्रोत्साहन मुनाफे से जुड़े होते हैं और इस प्रक्रिया में प्रायः जोखिम का समायोजन नहीं किया जाता है।
मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) ऋण खाते का आकार द्रुत गति से बढ़ाना चाहते हैं और ऐसा करने से स्वयं को रोकना उनके लिए मुश्किल होता है। इस तरह, उत्तरदायित्व निदेशकमंडल के कंधों पर आ जाता है। मगर यदा-कदा ही निदेशकमंडल हालात को संभालने के लिए कदम उठा पाते हैं। निदेशकमंडल बैंकों के प्रदर्शन से इतने खुश हो जाते हैं कि सीईओ के तर्क उन्हें प्रभावित करने लगते हैं।
वे अच्छा प्रदर्शन करने वाले सीईओ को रोक पाने की स्थिति में नहीं होते हैं। एसवीबीएफजी के निदेशकमंडल को लगातार आगाह किया जा रहा था मगर इसकी अनदेखी हो रही थी। फेडरल रिजर्व बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इतना ही नहीं, निदेशकमंडल ने लघु अवधि में होने वाले मुनाफे को अधिक महत्त्व दिया और प्रभावी जोखिम प्रबंधन के विषय पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने निगरानी से जुड़े विषयों को गंभीर जोखिम प्रबंधन के बजाय केवल अनुपालन तक ही सीमित समझा।‘
यह बात कई निदेशक मंडलों के मामले में लागू होती है। जुलाई 2022 की शुरुआत से एसवीबीएफजी नकदी के मोर्चे पर निर्धारित मानदंडों पर खरा नहीं उतरी। एसवीबीएफजी प्रबंधन ने वित्त पोषण क्षमता बढ़ाने के लिए कदम जरूर बढ़ाए मगर मार्च 2023 तक आवश्यक उपाय करने में वह विफल रहा। मार्च आते-आते बहुत देर हो चुकी थी। बैंक प्रबंधन ने नकदी से संबंधित जोखिम छुपाने के लिए वित्तीय सेहत की पड़ताल से जुड़े सिद्धांत ही बदल दिए।
ब्याज दरों से जुड़ा जोखिम प्रबंधन भी उचित तरीके से नहीं हो पाया। बैंक 2017 से ही ब्याज दर से जुड़ी जोखिम की सीमाओं को अक्सर लांघ रहा था। लघु अवधि की जमा रकम पर निर्भरता कम करने के बजाय बैंक प्रबंधन इसकी (जमाओं) की अवधि में अधिक दिलचस्पी लेने लगा। लघु अवधि में मुनाफा बढ़ाने के चक्कर में ब्याज दर से जुड़े जोखिमों पर अंकुश लगाने की व्यवस्था हटा दी गई।
प्रबंधन निहित जोखिमों को छुपाकर लगातार आय के आंकड़े मजबूत करने में जुटा रहा। निदेशकमंडल की जोखिम प्रबंधन समिति को इन त्रुटियों पर ध्यान देना चाहिए था मगर यह ऐसा करने में विफल रही। यह किसी बड़े आश्चर्य की बात नहीं थी। पर्यवेक्षक भी अपना दायित्व निभाने में असफल रहे। पर्याप्त निगरानी के अभाव पर लगातार आगाह किए जाने के बावजूद एसवीबीएफजी संतोषजनक रेटिंग पाने में कामयाब रही।
बैंक में बिना बीमा वाली जमा रकम का अंबार था। ऐसी रकम के साथ प्रायः अनिश्चितता जुड़ी रहती है। मगर तब भी सिलिकन वैली बैंक तरलता पर मजबूत रेटिंग पाने में कामयाब रहा। इतना ही नहीं, ब्याज दर जोखिम की सीमाएं लगातार लांघने के बावजूद इस पर भी बैंक संतोषजनक रेटिंग हासिल करने में सफल रहा। यह स्पष्ट था कि फेडरल रिज़र्व बोर्ड में पर्यवेक्षकों के साथ सहज संबंध बनाना मुश्किल काम नहीं था।
पर्यवेक्षण के मोर्चे पर विफलता के क्या कारण रहे हैं?
रिपोर्ट में कहा गया है कि फेडरल रिज़र्व बोर्ड और 12 फेडरल रिजर्व बैंकों द्वारा संयुक्त निगरानी इसका एक कारण है। फेडरल रिज़र्व बोर्ड रिज़र्व बैंक को अधिकार देता है। मगर बैंक पर्यवेक्षक रेटिंग में बदलाव करने से पहले फेडरल रिज़र्व बोर्ड से अनुमति मांगते हैं। इस विषय पर एक राय बनाने में काफी समय लगता है।
मगर यह एकमात्र कारण नहीं था। 2018 में सख्त निगरानी मानक केवल उन्हीं बैंकों के मामले में लागू किए गए जिनकी परिसंपत्तियां 100 अरब डॉलर से अधिक थीं। इतना ही नहीं, पर्यवेक्षक पर बैंकों पर बोझ कम करने और किसी निष्कर्ष पर पहुंचने या कोई कदम उठाने से पहले अधिक सावधानी बरतने का दबाव था। नियमन के मोर्चे पर तो चूक हुई ही थी।
डॉड फ्रैंक अधिनियम के अंतर्गत 50 अरब डॉलर से अधिक परिसंपत्तियों वाले बैंकों के लिए अधिक कड़े मानक तय किए। डॉड फ्रैंक अधिनियम वैश्विक वित्तीय वित्तीय संकट के बाद पारित हुआ था। वर्ष 2018 में निर्धारित सीमा 50 अरब डॉलर से बढ़ाकर 250 अरब डॉलर तक करने के लिए इस अधिनियम में संशोधन किया गया। जिन बैंकों की परिसंपत्तियों 100 अरब डॉलर से 250 अरब डॉलर के बीच थीं उनके मामले में मानक लागू करने का जिम्मा फेडरल रिजर्व पर छोड़ दिया गया।
जब एसवीबीएफजी 100 अरब डॉलर की सीमा पार कर गई तो इस पर 2019 से पहले की तुलना में कम कड़ी शर्तें लागू की गईं। अगर नियम-शर्तों में ढील नहीं दी गई होती एसवीबीएफजी संकट पैदा होने से पहले नकदी एवं पूंजी बढ़ाने के लिए विवश होता। दरअसल समस्या मौलिक है। नियमन एवं निगरानी को लेकर नरम रुख अमेरिका में प्रायः दिख जाता है। एक से अधिक नियामक एवं पर्यवेक्षक के प्रावधान भी समस्या का कारण बनते हैं।
एक और समस्या यह है कि नियामक निजी बैंक में काम करने जाते हैं और पिर ऊंचे पदों पर नियमन संस्थाओं में लौट आते हैं। नियामक और बैंकों के बीच संबंध काफी सहज हो जाता है। यह स्थिति इस ओर इशारा करती है कि क्यों सिलिकन वैली बैंक के मामले में इतना ढीला रवैया अपनाया गया था।
आरबीआई पश्चिमी देशों के नियामक एवं पर्यवेक्षण नियमों के लिहाज से काफी आगे है। इसका सक्रिय हस्तक्षेप पश्चिमी देशों में अपनाए जाने वाले नरम रुख की तुलना में बैंकिंग क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने में अधिक कारगर है। बैंकिंग क्षेत्र को अस्थिरता से बचाने के लिए निगरानी सुरक्षा का केवल तीसरा स्तर है। नियमन सुरक्षा का पहला स्तर होता है और इसके बाद निदेशकमंडल सुरक्षा का दूसरा स्तर होता है। आरबीआई को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बैंकों के निदेशकमंडल अपना काम बेहतर तरीके से करते रहें।
एक बड़ा बदलाव बैंकों में स्वतंत्र निदेशकों के नियुक्ति के तौर-तरीके बदल सकता है। इस समय प्रवर्तक या मुख्य कार्याधिकारी की बात स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति (सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र दोनों बैंकों में) में अधिक सुनी जाती है। आरबीआई इस बात पर जोर दे सकता है कि एक स्वतंत्र निदेशक संस्थागत निवेशकों द्वारा और दूसरा खुदरा शेयरधारकों द्वारा चुना जाए। जब तक वैसे स्वतंत्र निदेशक नहीं होंगे जो प्रवर्तक और प्रबंधन से दूरी बनाए रखेंगे तब तक निदेशकमंडलों द्वारा निगरानी में सुधार की उम्मीद करना व्यर्थ होगा।
आरबीआई इस महीने के अंत में बैंक निदेशकों का एक सम्मेलन आयोजित कर रहा है। इस मौके पर दो सुझाव दिए जा सकते हैं। पहला सुझाव तो यह है कि पारदर्शिता एवं जवाबदेही तय करने के लिए आरबीआई आईएलऐंडएफएस और येस बैंक के धराशायी होने के कारणों की समीक्षा का आदेश दे सकता है। दूसरे सुझाव के तहत सिलिकन वैली बैंक के धराशयी होने से संबंधित फेडरल रिजर्व बोर्ड की समीक्षा सम्मेलन में पढ़ने के उपलब्ध करा सकता है। सम्मेलन में रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड के धराशायी होने पर ब्रिटेन के वित्तीय सेवा प्राधिकरण की रिपोर्ट भी पढ़ने के लिए दी जा सकती है। इसका लाभ यह होगा कि बैंक निदेशक कम से कम यह तो नहीं कह पाएंगे कि उन्हें पहले से आगाह नहीं किया गया था।