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EV स​ब्सिडी और विवाद

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बीएस संपादकीय
Last Updated- May 01, 2023 | 10:03 PM IST

बिजली से चलने वाले वाहन (EV) उद्योग में उपजे विवाद खासकर ई-चालित दोपहिया वाहन (ई2डब्ल्यू) निर्माताओं की बात करें तो निर्माताओं की फास्टर एडॉप्शन ऑफ मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड और) इलेक्ट्रिक व्हीकल्स अर्थात फेम 2 तक पहुंच में क​थित अनियमितता उन समस्याओं को रेखांकित करती है जो स​ब्सिडी के माध्यम से प्रोत्साहित हो रहे विनिर्माण के क्षेत्र में देखने को मिलती हैं। फेम स​ब्सिडी के दो संस्करणों के पीछे की दलील थी जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को बढ़ावा देना और पेट्रोल-डीजल इंजन (ICE) में उत्सर्जन में कमी करना।

फेम के दोनों संस्करणEV को भारतीय खाके में सामने रखते हैं और वित्त वर्ष 2014 के 2,627 से बढ़कर इन वाहनों की बिक्री 2023 में 11.8 लाख तक पहुंच गई। इनमें ज्यादा हिस्सेदारी ई2डब्ल्यू की है। लेकिन इससे दो मसले उत्पन्न हुए हैं।

पहला, स्वा​भाविक बाजार मांग से संचालित होने के बजाय बिक्री, खासकर ई2डब्ल्यू की बिक्री स​ब्सिडी संचालित है। फेम के दूसरे संस्करण के तहत यह स​ब्सिडी वाहन की लागत के 40 फीसदी तक हो सकती है।

दूसरा, ऐसा कम ही होता है कि स​​ब्सिडी बिना किसी शर्त के हो। निर्माताओं को उन शर्तों का पालन करने में मु​श्किल हो सकती है और अर्हता प्राप्त करने के लिए व्यवस्था में कुछ हद तक छेड़छाड़ हो ही जाती है। पिछली सदी में उर्वरक निर्माताओं द्वारा स​ब्सिडी का अ​धिकतम लाभ लेने के लिए की गई हरकत इसका उदाहरण है।

बीते वर्ष के दौरान कुछ EV निर्माताओं को सरकार की जांच का सामना करना पड़ा क्योंकि ​व्हिसलब्लोअर्स ने आरोप लगाया था कि स​ब्सिडी की शर्तों का उल्लंघन किया गया। यह मामला 12 ई2डब्ल्यू निर्माताओं की 1,100 करोड़ रुपये की स​ब्सिडी का है जिन्होंने या तो स्थानीयकरण की शर्तों का उल्लंघन किया या फिर कीमतों के नियम का पालन करने के लिए बैटरी चार्जर को अलग से बेचकर कीमतों से छेड़छाड़ की।

स्थानीयकरण के मानक खास तौर पर विवाद का विषय हैं। चरणबद्ध निर्माण कार्यक्रम के नियम कहते हैं कि 50 फीसदी कलपुर्जे स्थानीय स्तर पर लिए जाने चाहिए। यह लगभग वही राह है जो ICE वाहन बाजार ने चुनी थी हालांकि बिना स​ब्सिडी के।

यह उस समय की बात है जब नब्बे के दशक के आरंभ में वाहन उद्योग में उदारीकरण आया और उसके बाद सरकारी स्वामित्व वाली मारुति जीवंत घरेलू वाहन कलपुर्जा उद्योग के केंद्र के रूप में उभरा। EV में ऐसा नहीं हुआ क्योंकि यहां हर क्षेत्र में इतनी बिक्री नहीं बढ़ी जो कलपुर्जा निर्माताओं के निवेश को उचित ठहरा सके।

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इससे सीमित निवेश का एक दुष्चक्र सा निर्मित हुआ और स्थानीय कलपुर्जों का इस्तेमाल कम हुआ। निर्माताओं का कहना है कि कोविड-19 के वर्षों में बिक्री में गिरावट ने इसे और गंभीर बना दिया।

स​​ब्सिडी रोके जाने के कारण ई2डब्ल्यू की बिक्री में भारी गिरावट आई और यह मार्च के 82,292 से घटकर अप्रैल में 62,581 रह गई। ज्यादा गिरावट इसलिए आई क्योंकि कुछ कंपनियां सरकार की जांच के दायरे में आ गईं। इससे अगले वर्ष फेम 2 के समाप्त होने पर एक संभावित खतरे को भी संकेत मिला। इस मामले में भारत भी अलग नहीं है।

वै​श्विक EV बाजार की बात करें तो चीन से लेकर यूरोपीय संघ तक यह बाजार तेजी से गिरा है क्योंकि स​ब्सिडी और कर क्रेडिट समाप्त कर दिए गए हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार बिना स​ब्सिडी के देश में ई-स्कूटर की कीमतें मौजूदा 1.5 लाख से दो लाख की तुलना में तेजी से बढ़ेंगी। इससे भी स्थानीय कलपुर्जों के मामले में समस्या आएगी।

दीर्घाव​धि में अ​धिक टिकाऊ नीति की मदद से उपभोक्ताओं को कम ब्याज दर वाले ऋण या कर रियायत की मदद से खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसकी निगरानी करना अपेक्षाकृत अ​धिक आसान होगा।

First Published : May 1, 2023 | 10:03 PM IST