सरकार ने कोविड-19 लॉकडाउन के कारण अपने घर लौटे प्रवासी श्रमिकों को 125 दिन का रोजगार प्रदान करने के लिए 50,000 करोड़ रुपये का जो गरीब कल्याण रोजगार अभियान (जीकेआरए) शुरू किया है उसमें विभिन्न मंत्रालयों की मौजूदा रोजगारपरक योजनाओं को चतुराईपूर्वक एकत्रित किया गया है। इसके बावजूद इस पहल का स्वागत करने की कई वजह हैं। पहली बात तो यह कि इससे वापस लौटने वालों को बहुत जरूरी आजीविका समर्थन मिलेगा क्योंकि उनके पास अपने गृह स्थान में जीविकोपार्जन का जरिया नहीं है। इसके अलावा इसमें कई अन्य सुविचारित बातें शामिल हैं जो इसे आम सरकारी कल्याण कार्यक्रमों से अलग करती हैं। सरकारी योजनाएं आमतौर पर लोगों की कठिनाई को तात्कालिक तौर पर दूर करने पर केंद्रित रहती हैं। ऐसी योजनाओं से कोई लाभकारी प्रतिफल मात्र संयोग ही होता है। जीकेआरए के अधीन रोजगार देने के लिए करीब 25 क्षेत्र तय किए गए हैं। इनके तहत टिकाऊ और उत्पादक परिसंपत्तियां तैयार करनी हैं ताकि ग्रामीण इलाकों में सामाजिक आर्थिक प्रगति की दिशा में उत्प्रेरक का काम किया जा सके। इतना ही नहीं बदलाव के लिए इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि उन्हें दिए जाने वाले काम में प्रवासियों के कौशल और कार्यानुभव का ध्यान रखा जाए। इसके लिए उनके कौशल को मापने का काम या तो पूरा कर लिया गया है या चल रहा है। इसके अतिरिक्त क्रियान्वयन के लिए नई परियोजनाओं पर विचार करने के बजाय यह रोजगार कार्यक्रम उन योजनाओं को अपना रहा है जिन्हें पहले मंजूरी मिल चुकी है और बजट आवंटन भी हो चुका है। ऐसा करने से करदाताओं पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा।
आधिकारिक आंकड़ों की बात करें तो जीकेआरए करीब 67 लाख श्रमिकों को कवर करेगा यानी लौटने वालों के दो तिहाई। यह कार्यक्रम बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और ओडिशा के 116 जिलों में लागू किया जा रहा है। सबसे अधिक प्रवासी श्रमिक इन्हीं छह राज्यों में वापस लौटे हैं। कार्यक्रम के तहत तैयार होने वाली परिसंपत्तियां भी ध्यान देने लायक हैं। इसमें गांव की सड़क और राष्ट्रीय राजमार्ग बनाना, रेलवे का काम, जल संरक्षण परियोजनाएं, पंचायत भवन, आंगनवाड़ी केंद्र और अन्य सामुदायिक भवन बनाना शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीकेआरए का उद्घाटन करते हुए कहा कि इस पहल का इस्तेमाल सूचना प्रौद्योगिकी को ग्रामीण इलाकों में पहुंचाने में किया जाएगा जहां इंटरनेट का इस्तेमाल शहरों से अधिक है। फाइबर केबल बिछाने और इंटरनेट सुविधा प्रदान करने को अभियान में शामिल किया गया है। अगर इस अभियान को आंशिक रूप से भी कामयाब किया जा सका तो ग्रामीण भारत में अहम बदलाव आएगा।
बहरहाल, जीकेआरए की कुछ कमियां भी हैं जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। पश्चिम बंगाल जैसे राज्य को इससे बाहर रखना चिंतित करने वाली बात है और बिहार को खास तवज्जो देना इस आशंका को बल देता है कि आसन्न चुनाव एक कारक हो सकता है। दूसरा अतिशय केंद्रीकरण इसे प्रभावित कर सकता है। बेहतर होता अगर मंत्रालयों के बजाय स्थानीय जिला स्तर पर योजना बनाने दी जाती। विश्लेषकों के मन मेंं इसके समग्र प्रभाव को लेकर भी आशंका है खासकर विनिर्माण क्षेत्र के कुशल या अद्र्ध कुशल श्रमिकों की उपलब्धता को लेकर तथा शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों मेंं मेहनताने में अंतर को लेकर। ऐसे में यह सुनिश्चित करने पर ध्यान देना होगा कि कम से कम कुशल और अद्र्ध कुशल मानव संसाधन गांवों में न बंधा रहे और विनिर्माण, निर्माण सेवा तथा अन्य अहम क्षेत्रों में श्रमिकों की कमी न हो। फिलहाल समग्र आर्थिक हालात में सुधार तभी संभव है जब सभी क्षेत्रों में संपूर्ण क्षमता से काम हो सके।
