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समुद्री शैवाल का उत्पादन बढ़ाने पर हो जोर

केंद्र एवं तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और केरल जैसे तटीय राज्यों की सरकारें समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा दे रही हैं।

Last Updated- February 03, 2025 | 10:21 PM IST
प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत की 7,516 किलोमीटर लंबी तटरेखा पर उथले पानी में मूल्यवान एवं और विभिन्न उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल होने वाले समुद्री शैवाल प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। समुद्री शैवाल (एक प्रकार का समुद्री पौधा) की मांग देश के साथ विदेश में भी लगातार बढ़ रही है। मगर अफसोस की बात है कि आसानी एवं बहुतायत में उपलब्ध होने वाले और कभी समाप्त नहीं होने वाले इन संसाधनों का छोटा सा हिस्सा ही इस समय आर्थिक एवं अन्य लाभों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। किंतु अच्छी बात यह है कि समुद्री शैवाल अब कुछ खास उद्देश्यों से भी उगाए जाने लगे हैं, जिनका इस्तेमाल खाद्य प्रसंस्करण, दवा, कॉस्मेटिक (सौंदर्य प्रसाधन) और अन्य क्षेत्रों में हो रहा है।

केंद्र एवं तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और केरल जैसे तटीय राज्यों की सरकारें समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा दे रही हैं। उनके इस कदम का उद्देश्य शैवाल की आपूर्ति बढ़ाना, मछुआरा समुदायों के लिए आय के अतिरिक्त स्रोत और रोजगार के अवसर तैयार करना है। परिणाम यह हुआ है कि समुद्री शैवाल मछुआरों के लिए कमाई का बढ़िया जरिया बनते जा रहे हैं। चीन, इंडोनेशिया, कोरिया, फिलिपींस, जापान, मलेशिया, जांजीबार और चिली ने समुद्री शैवाल के उत्पादन तथा इसके अंतरराष्ट्रीय व्यापार मे काफी प्रगति कर ली है।

समुद्री शैवाल खेतों में फसलों के साथ जहां-तहां उग जाने वाले अवांछित खर-पतवार से अलग होते हैं। ये कम गहरे पानी वाले क्षेत्रों में अपने आप उगते हैं। ये बेहद फायदेमंद होते हैं और तरह-तरह के रंग के होते हैं। कुछ शैवाल हरे होते हैं और कुछ भूरे तथा लाल रंग के होते हैं। ये तटीय पारिस्थितिकी-तंत्र का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं और अन्य समुद्री जीवों के लिए भोजन एवं संरक्षणदाता की भूमिका निभाते हैं। पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण ज्यादातर समुद्री शैवाल मानव के भोजन और मवेशियों के चारे में इस्तेमाल होते हैं। इसके अलावा ये फसलों के लिए जैव-उर्वरक का काम भी करते हैं। औषधीय गुण होने के कारण समुद्री शैवाल खाद्य पदार्थ, सौंदर्य प्रसाधनों तथा दवाओं में इस्तेमाल होते हैं।

समुद्री शैवाल से उत्पन्न होने वाले जेली जैसे पदार्थ (वास्तव में पॉलिसैकेराइड) आगर, आगरोज और कैरागीनन का इस्तेमाल प्रसंस्कृत खाद्य, चारे, टूथपेस्ट तथा त्वचा की देखभाल करने वाले उत्पादों आदि में काफी पहले से ही जमकर किया जा रहा है। आगर लाल शैवाल से निकलता है और समुद्री पौधों से निकलने वाले सुपरिचित पदार्थों में शुमार है। इसे आम तौर पर जिलैटिन के शाकाहारी विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसका प्रयोग सूप को गाढ़ा बनाने, प्रसंस्कृत खाद्य में प्रिजरवेटिव के रूप में और आइसक्रीम तथा जमे हुए पैकेटबंद डिजर्ट में बर्फ जमने से रोकने के लिए किया जाता है।

मोटा अनुमान है कि भारत के तटीय क्षेत्रों में सालाना लगभग 97 लाख टन समुद्री शैवाल रहते हैं। मगर फिलहाल इसमें से केवल 34,000 से 35,000 टन (लगभग 0.35 प्रतिशत) शैवाल का ही व्यावसायिक इस्तेमाल हो पा रहा है। सरकार ने 2025 तक समुद्री पौधों का उत्पादन 10 लाख टन तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए सरकार प्राकृतिक संसाधनों एवं निजी स्तर पर इनके उत्पादन को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है। मगर यह लक्ष्य प्राप्त करना फिलहाल मुमकिन नहीं लग रहा है क्योंकि फिलहाल समुद्री शैवाल की पैदावार केवल एक प्रजाति कप्पाफायकस अल्वारेजी पर ही टिकी हुई है। समस्या यह है कि इस प्रजाति में बीमारी लग जाती हैं। किंतु समुद्री पौधों की खेती में विविधता लाने एवं इनके उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विदेश से नई प्रजातियां भी मंगाई जा रही हैं।

समुद्री शैवाल का संग्रह एवं उत्पादन काफी कमाई वाला विकल्प है क्योंकि इस कार्य में उत्पादन पर खर्च बहुत कम होता है और उत्पाद महंगे दाम में बिकते हैं। हाल में ही सरकार ने केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई), कोच्चि को देश में समुद्री शैवाल के उत्पाद को बढ़ावा देने वाली अधिकृत एजेंसी घोषित कर दिया है। सीएमएफआरआई का मंडपम क्षेत्रीय केंद्र देश में समुद्री शैवाल के उत्पादन के लिए नए तरीके सुझाएगा और उन्नत बीज सामग्री भी उपलब्ध कराएगा। इसके साथ ही यह उद्यमियों को दूसरी जरूरी मदद भी करेगा। यह संस्थान समुद्री शैवाल के विकास एवं अनुसंधान के कार्यों में पहले से ही जुटा है।

भारत में समुद्री शैवाल की 844 प्रजातियां हैं, जिनमें 434 लाल शैवाल, 194 भूरे शैवाल और 216 हरी शैवाल की प्रजातियां शामिल हैं। इनमें ज्यादातर प्रजातियां तमिलनाडु, गुजरात, ओडिशा, लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में पाई जाती हैं। मुंबई, रत्नागिरि, गोवा, कारवार, वर्कला, विझिंजम और पुलिकट जैसे शहर समुद्री शैवाल से आच्छादित तटों पर बसे हैं। मगर देश में समुद्री शैवाल का उत्पादन उतना नहीं हो पा रहा है, जितना होना चाहिए। देश में इस समय इस कार्य से जुड़ी केवल 50 इकाइयां ही काम कर रही हैं। इनमें ज्यादातर इकाइयां आगर और एल्गिनेट के उत्पादन में व्यस्त हैं। कच्चा माल लगातार नहीं मिलने के कारण इनमें से ज्यादातर इकाइयां पूरी क्षमता के साथ काम भी नहीं कर पा रही हैं। इसे देखते हुए समुद्री शैवाल की आपूर्ति बढ़ाना काफी जरूरी हो गया है।

तमिलनाडु ने समुद्री शैवाल उत्पादन का प्रमुख केंद्र बनने के लिए एक व्यापक योजना तैयार की है। इस कार्य में निवेशकों एवं उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य आवश्यक माहौल तैयार करने में जुट गया है। निवेशकों एवं उद्यमियों की विभिन्न आवश्यकताएं पूरी करने के लिए राज्य अपने तंत्रों को मजबूत कर रहा है और एक ही स्थान पर उनकी सारी जरूरतें पूरी करने की व्यवस्था की गई है। लक्षद्वीप में आबादी वाले नौ द्वीप समुद्री शैवाल उत्पादन केंद्र घोषित कर दिए गए हैं। इस केंद्रशासित प्रदेश में जरूरी शोध एवं विकास कार्य आगे बढ़ाने के लिए सीएमएफआरआई की मदद ली जा रही है।

समुद्री शैवाल के उत्पादन एवं इनके व्यवसायीकरण को बढ़ावा देने के लिए किए गए ये सभी उपाय स्वागत योग्य हैं। मगर देश में समुद्री शैवाल की उत्पादन क्षमता का पूरा लाभ लेने के लिए कई और ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है।  

First Published - February 3, 2025 | 10:17 PM IST

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