संपादकीय

Editorial: मेट्रो की उपयोगिता

दिल्ली जैसे शहरों में जहां मेट्रो रेल कारगर है वहां उसने शहरी जीवन के अनुभव में उल्लेखनीय परिवर्तन की क्षमता दिखाई है।

Published by
बीएस संपादकीय   
Last Updated- January 09, 2025 | 12:21 AM IST

केंद्र सरकार ने बताया है कि देश के 11 राज्यों के 23 शहरों में मेट्रो का कुल नेटवर्क 1,000 किलोमीटर से अधिक हो चुका है। लगभग 1,000 किलोमीटर का अतिरिक्त मार्ग अभी निर्माणाधीन है या फिर उसकी योजना उन्नत स्तर पर है। यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है क्योंकि देश विश्वस्तरीय शहरी अधोसंरचना तैयार करने में लगातार संघर्ष करता रहा है। दिल्ली जैसे शहरों में जहां मेट्रो रेल कारगर है वहां उसने शहरी जीवन के अनुभव में उल्लेखनीय परिवर्तन की क्षमता दिखाई है।

दिल्ली ऐसा शहर नहीं है जहां सार्वजनिक शिष्टाचार पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता हो लेकिन मेट्रो में लोग सड़क आदि की तुलना में शिष्टाचार का अधिक पालन करते हैं। आश्चर्य नहीं कि कई राज्य और वहां के नेता मेट्रो का विस्तार करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं ताकि हर शहर को यह अनुभव लेने का मौका मिल सके। जरूरत यह सुनिश्चित करने की है कि यह अनुभव विश्वस्तरीय बना रहे। इसमें प्रबंधन और रखरखाव की अहम भूमिका होगी। उदाहरण के लिए दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने कोलकाता मेट्रो की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया था जबकि कोलकाता मेट्रो देश की पहली मेट्रो सेवा है।

केंद्र सरकार ने रियायती दर पर धन उपलब्ध कराकर इस आकांक्षा को पूरा करने में मदद की है। वर्ष 2021 से 2025 के बीच ही इस पर तीन लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। परंतु इस धनराशि का बहुत छोटा हिस्सा सीधे केंद्रीय बजट में आता है। उदाहरण के लिए चेन्नई मेट्रो के दूसरे चरण के लिए करीब 34,000 करोड़ रुपये की राशि तमिलनाडु सरकार द्वारा मुहैया कराई जाएगी। बाकी हिस्से में से अधिकांश राशि उस कर्ज से आएगी जो केंद्र सरकार ने क्रियान्वयन एजेंसी से लिया है। खास तौर पर जापान से जुड़ी कर्ज देने वाली एजेंसियों मसलन जापान इंटरनैशनल कोऑपरेशन एजेंसी और एशियाई विकास बैंक आदि।

चीन से संबंधित एजेंसियां मसलन न्यू डेवलपमेंट बैंक यानी ब्रिक्स बैंक और एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक भी इसमें शामिल हैं। अहमदाबाद मेट्रो का करीब आधा पैसा जर्मन और फ्रेंच विकास बैंकों से आता है। जर्मनी बेंगलूरु मेट्रो के दूसरे चरण के लिए भी मदद कर रहा है। इनमें से कई विदेशी सरकारों की बात करें तो ऋण देने का निर्णय आंशिक रूप से मेट्रो के डिब्बों आदि की खरीद या विनिर्माण उपकरणों की खरीद में मदद करने के लिए है। इन्हें संबंधित देशों में स्थित कारखानों में बनाया जाता है। मसलन अहमदाबाद मेट्रो के लिए जर्मनी की सीमेंस कंपनी निर्माण करती है।

इसके बावजूद इस दौरान कई गलतियां हुईं। दिल्ली मेट्रो की कामयाबी की सबसे बड़ी वजह यह है कि वहां कोई अन्य उपनगरीय रेल सेवा नहीं है जो इतने विस्तृत दायरे में काम करती हो। इसके अलावा उसने बहुत जल्दी अपने नेटवर्क में उल्लेखनीय विस्तार और उसका प्रबंधन किया। सच यह है कि शहरों में शुरू की जा रही दिखावटी मेट्रो सेवाओं से देश में वास्तविक प्रभाव और मांग वाली मेट्रो दरअसल हल्की उपनगरीय रेल सेवा है। गत सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली-मेरठ लाइट रेल लिंक की शुरुआत की जो उत्तर प्रदेश के इस जिले को दिल्ली से जोड़ती है। दोनों के बीच हर 15 मिनट में एक रेल शुरू की गई है। यह एक बेहतरीन उपनगरीय रेल परियोजना है।

ऐसी अन्य परियोजनाओं की जरूरत है। न्यूयॉर्क, पेरिस या टोक्यो की तरह मेट्रो का वास्तविक इस्तेमाल तब हो सकता है जब शहर में कई स्टॉप और स्टेशन हों। इतना ही नहीं ज्यादातर लोगों को मेट्रो स्टेशन पहुंचने के लिए 15 मिनट से ज्यादा पैदल न चलना पड़े। यहां तक कि दिल्ली में भी जहां स्टेशन बड़े और दूर-दूर हैं वहां ये मानक पूरे नहीं होते। आश्चर्य नहीं कि आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं द्वारा कराए गए अध्ययन ने संकेत दिया है कि एक भी भारतीय मेट्रो सवारियों के लक्ष्य को पूरा नहीं करती। मुंबई में अनुमान से एक तिहाई यात्री मिल रहे हैं। बेंगलूरु में पहले चरण में केवल छह फीसदी। ये लागत के लिहाज से भी किफायती नहीं हैं। इस बात का अध्ययन होना चाहिए कि कुछ मेट्रो कारगर और कुछ नाकाम क्यों हैं?

First Published : January 8, 2025 | 11:01 PM IST