लेख

Editorial: भारत ने टाली बाहरी संकट की मार, विकास के लिए स्थिरता जरूरी

टिकाऊ आर्थिक विकास हासिल करने के लिए हर समय आर्थिक और वित्तीय स्थिरता बनाए रखना एक आवश्यक शर्त है। बहरहाल इसे हासिल करना आसान नहीं है

Published by
बीएस संपादकीय   
Last Updated- October 30, 2025 | 9:19 PM IST

टिकाऊ आर्थिक विकास हासिल करने के लिए हर समय आर्थिक और वित्तीय स्थिरता बनाए रखना एक आवश्यक शर्त है। बहरहाल इसे हासिल करना आसान नहीं है। खासतौर पर विकासशील देशों के लिए ऐसा करना आसान नहीं है। बीते कुछ दशकों में विकासशील देशों में आर्थिक संकट के कई अवसर आए हैं। भारत को वर्ष 1991 में भुगतान संतुलन के संकट का भी सामना करना पड़ा था। बहरहाल समय के साथ हालात बदले हैं और बड़ी संख्या में विकासशील देशों ने अपने नीतिगत ढांचे में बदलाव किया ताकि वे आर्थिक मजबूती बढ़ा सकें।

भारतीय रिजर्व बैंक की डिप्टी गवर्नर पूनम गुप्ता ने बुधवार को बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई इनसाइट समिट में ऐसी नीतियों के बारे में चर्चा की। ऐसी दुनिया में जहां एक के बाद दूसरा संकट आता ही रहा है, भारतीय नीति निर्माता वृहद आर्थिक स्थिरता हासिल करने में कामयाब रहे हैं। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को तुलनात्मक रूप से तेज गति से वृद्धि हासिल करने में मदद मिली है। वास्तव में यह बात माननी होगी कि भारत को 1991 के बाद से कभी बाहरी संकट से नहीं जूझना पड़ा है।

भारत के वृहद आर्थिक प्रबंधन के संदर्भ में डॉ. गुप्ता तथा अन्य लोगों ने कुछ अन्य अहम पहलुओं पर भी बात की जिनका यहां जिक्र किया जाना जरूरी है। उन्होंने इस बारे में संकेत दिया कि फिलहाल भारत कहां है और आगे चलकर उसे क्या करना है। उदाहरण के लिए भारत ने एक लचीली विनिमय दर अपनाई है जो मोटे तौर पर बाजार संचालित है। परंतु रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करता है ताकि अत्यधिक उतार-चढ़ाव को नियंत्रित किया जा सके जो आमतौर पर अचानक पूंजी की आवक या उसके बाहर जाने से उत्पन्न होती है।

उदाहरण के लिए जब बड़े केंद्रीय बैंकों ने वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में भारी मात्रा में धन डाला और कोविड-19 महामारी के आरंभिक महीनों में नीतिगत ब्याज दरों को करीब शून्य कर दिया था तब भारतीय बाजारों में जबरदस्त पूंजी की आवक देखी गई। रिजर्व बैंक ने हस्तक्षेप किया ताकि अतिरिक्त नकदी की खपत की जा सके और आरक्षित कोष तैयार किया जा सके।

भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार 2020-21 में 100 अरब डॉलर से ज्यादा की बढ़त हुई। उसी समय 2022 में बड़े वैश्विक केंद्रीय बैंकों ने तालमेल के साथ अपनी ब्याज दरों में इजाफा कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि उभरते बाजारों से बहुत बड़ी मात्रा में पूंजी बाहर गई। इनमें भारत भी शामिल था। फिर रिजर्व बैंक के सक्रिय हस्तक्षेप ने विदेशी मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव को थामने में मदद की। मार्च से अक्टूबर 2022 के बीच विदेशी मुद्रा भंडार में 100 अरब डॉलर की कमी आई। जब हालात में ठहराव आया तो रिजर्व बैंक ने अपना भंडार बढ़ाया। फिलहाल उसका विदेशी मुद्रा भंडार 700 अरब डॉलर से अधिक है। विदेशी मुद्रा भंडार ने आर्थिक स्थिरता को जबरदस्त मजबूती प्रदान की।

विदेशी मुद्रा प्रबंधन, देश की मजबूती का इकलौता स्तंभ नहीं रहा है। वर्ष2016 में भारत ने मौद्रिक नीति के लिए मुद्रास्फीति को लक्षित करने का लचीला ढांचा अपनाया। इससे न केवल मुद्रास्फीति संबंधी परिणामों के उतार-चढ़ाव को थामने में मदद मिली बल्कि नीतिगत पारदर्शिता में भी इजाफा हुआ और भारतीय नीति निर्माण में भरोसा मजबूत हुआ। भारत में एक नियम आधारित राजकोषीय नीति भी है। इस संदर्भ में सरकार ने अच्छा काम किया। खासतौर पर महामारी के बाद राजकोषीय घाटा बढ़ने पर। सरकार चालू वित्त वर्ष में जीडीपी के 4.4 फीसदी के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है, जो 2020-21 के 9.2 फीसदी की तुलना में काफी बेहतर है।

वर्षों के दौरान बने नीतिगत चयन के इस मिश्रण ने टिकाऊ वृहद आर्थिक माहौल प्रदान किया है। जैसा कि कार्यक्रम में कुछ वक्ताओं ने कहा, बैंक और कॉरपोरेट दोनों के बहीखाते बहुत अच्छी हालत में हैं। हालांकि ये सभी कारक एक मजबूत बुनियाद मुहैया कराते हैं लेकिन शायद वे देश की वृद्धि दर को टिकाऊ ढंग से वांछित स्तर तक पहुंचाने में सक्षम न हों। बाहरी माहौल अनिश्चित है।

मोटे तौर पर ऐसा अमेरिका की व्यापार अनिश्चितताओं की वजह से है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत और अमेरिका जल्दी ही परस्पर लाभदायक व्यापार समझौते तक पहुंच सकेंगे। लेकिन भारत को अमेरिका के साथ संभावित समझौते से आगे बढ़कर व्यापार को दीर्घकालिक विकास के एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में अपनाना होगा। भारत को स्थिर वृहद आर्थिक आधार बनाने के लिए आंतरिक सुधारों को भी आगे बढ़ाना होगा।

First Published : October 30, 2025 | 9:13 PM IST