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सरकार ने सब्सिडी बढ़ाकर डीएपी का घाटा किया कम, फिर भी 900 रुपये प्रति कट्टे का नुकसान होने की आशंका

उद्योग को उम्मीद है कि केंद्र द्वारा एक विशेष पैकेज के माध्यम से सभी घाटे की पूर्ति करने के आश्वासन और दीर्घकालिक आयात समझौतों से स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित होगी

Published by
संजीब मुखर्जी   
शाइन जेकब   
Last Updated- November 03, 2025 | 11:03 PM IST

केंद्र सरकार ने उर्वरकों की आयात कीमतों में वृद्धि की भरपाई के लिए 2025-26 की दूसरी छमाही के लिए फॉस्फेटिक उर्वरकों पर सब्सिडी बढ़ा दी है। सरकार के इस फैसले के बावजूद डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) का आयात करने वाली कंपनियों को अभी भी करीब 900 रुपये प्रति कट्टे का नुकसान हो सकता है क्योंकि आयातित मूल्य घोषित सब्सिडी से अधिक बना हुआ है। हालांकि उद्योग को उम्मीद है कि केंद्र द्वारा एक विशेष पैकेज के माध्यम से सभी घाटे की पूर्ति करने के आश्वासन और दीर्घकालिक आयात समझौतों से पीक मांग सीजन के दौरान स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित होगी।

कोरोमंडल इंटरनैशनल के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी शंकर सुब्रमण्यम एस ने हाल ही में बिज़नेस स्टैंडर्ड को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘यह विशेष पैकेज मुख्य रूप से डीएपी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए अभी भी जारी है।’ उन्होंने यह भी कहा कि जहां तक डीएपी का सवाल है, उद्योग को नुकसान होने की संभावना नहीं है क्योंकि कंपनियों ने अतिरिक्त लागत वहन करते हुए अधिकतम खुदरा मूल्य को वही रखा है।

उन्होंने कहा, ‘वास्तव में वैश्विक कमोडिटी की कीमतों में नरमी के साथ अगर भारत अपनी डीएपी खरीद की योजना कुशलता से बनाता है, तो हम मूल्य वृद्धि को भी नियंत्रित कर पाएंगे।’ उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा डीएपी आयातक है और जब भी भारत डीएपी बाजार में प्रवेश करता है, इसकी कीमतें बढ़ जाती हैं। उन्होंने आगे कहा, ‘हम एक दीर्घकालिक अनुबंध पर विचार कर सकते हैं जैसा कि इस वर्ष किया गया।’

भारत में सालाना 100 से 110 लाख टन डीएपी की खपत होती है, जिससे यह यूरिया के बाद देश में दूसरा सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला उर्वरक बन गया है। कुछ ही हफ्तों में शुरू होने वाले रबी सीजन के दौरान डीएपी एक प्रमुख पोषक तत्व है और गेहूं व आलू की खेती में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। 2024-25 में भारत ने करीब 50 लाख टन डीएपी का आयात किया, जबकि शेष का उत्पादन घरेलू स्तर पर किया गया।

कुछ महीने पहले दुनिया की अग्रणी डीएपी निर्माताओं में से एक सऊदी अरब की मादेन कंपनी ने तीन भारतीय उर्वरक कंपनियों इंडियन पोटाश, कृषक भारती कोऑपरेटिव और चंबल फर्टिलाइजर्स के साथ एक दीर्घकालिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के तहत 2025-26 से शुरू होकर पांच वर्षों तक सालाना 31 लाख टन डीएपी की आपूर्ति की जाएगी। सभी पक्ष राजी हुए तो समझौता 5 साल के लिए और बढ़ाया जा सकता है।

भारत में निर्मित अधिकांश डीएपी में आयातित रॉक फॉस्फेट का उपयोग किया जाता है क्योंकि घरेलू ग्रेड उच्च गुणवत्ता वाले डीएपी उत्पादन के लिए उपयुक्त नहीं हैं। उद्योग सूत्रों ने बताया कि कुछ संयंत्र आयातित फॉस्फोरिक एसिड का उपयोग करके भी डीएपी का उत्पादन करते हैं, जबकि कुछ में रॉक फॉस्फेट से फॉस्फोरिक एसिड बनाने की क्षमता है।

व्यापारिक सूत्रों का अनुमान है कि मौजूदा डीएपी का आयात मूल्य लगभग 780 डॉलर प्रति टन होने के कारण इसकी पहुंच लागत लगभग 69,240 रुपये प्रति टन आती है। इसके अलावा इसमें पैकिंग और हैंडलिंग शुल्क करीब 1,000 रुपये, वित्तपोषण और बीमा पर खर्च 1,000 रुपये के साथ ही इसमें कर और शुल्क का 3,462 रुपये जोड़ने पर कुल लागत करीब 74,703 रुपये प्रति टन हो जाती है।

इसकी तुलना में खुदरा मूल्य और सब्सिडी का संयुक्त मूल्य क्रमशः 27,000 रुपये और 29,805 रुपये को मिलाकर कुल कीमत 56,805 रुपये टन होती है। ऐसे में डीएपी आयातित लागत व बिक्री मूल्य में प्रति टन करीब 17,898 रुपये का अंतर रह जाता है। जाहिर है कंपनियों को भारत में बेचे जाने वाले आयातित डीएपी के 50 किलो के बैग पर लगभग 895 रुपये का नुकसान होता है। घरेलू निर्माताओं के लिए समीकरण अलग है। हालांकि हाल के महीनों में रॉक फॉस्फेट और फॉस्फोरिक एसिड की कीमतों में वृद्धि हुई है, लेकिन यह बढ़ोतरी आयातित डीएपी जितनी ज्यादा नहीं रही।

First Published : November 3, 2025 | 10:19 PM IST