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Editorial: अमेरिकी टैरिफ से भारत-अमेरिका व्यापार रिश्तों पर संकट, रुपये पर बढ़ा दबाव

ट्रंप इस सप्ताह पुतिन से मिलने वाले हैं हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यूक्रेन को लेकर कोई सहमति बनने पर वे तेल खरीद पर लगाए जुर्माने पर पुनर्विचार करेंगे या नहीं।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- August 12, 2025 | 11:49 PM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक ऐसी नीतिगत राह पकड़ी है जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता का माहौल बना दिया है। यह सब इतने बड़े पैमाने पर हो रहा है जितना कि हाल फिलहाल के दशकों में नहीं देखा-सुना गया। ट्रंप ने व्यापार को लेकर बुनियादी वैश्विक समझ को पूरी तरह उलट पुलट दिया है। उनकी व्यापार नीति का लक्ष्य न केवल समग्र व्यापार घाटे को समाप्त करने का है बल्कि वे अलग-अलग देशों के साथ भी व्यापार घाटा खत्म करना चाहते हैं। अमेरिकी बाजार की पहुंच गंवाने के डर से कई देश अमेरिका के साथ एकतरफा व्यापार समझौतों के लिए तैयार हो गए हैं।

भारत अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता शुरू करने वाले आरंभिक देशों में था लेकिन दोनों देश साझा लाभकारी हल पर नहीं पहुंच सके। इसके परिणामस्वरूप ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी शुल्क लगा दिया। बहरहाल वे इन शुल्कों का इस्तेमाल अपने आर्थिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नहीं कर रहे हैं बल्कि वे इनके जरिये अन्य लक्ष्य भी हासिल करना चाहते हैं। भारत के ऊपर रूसी तेल आयात करने के लिए 25 फीसदी का अतिरिक्त शुल्क लगाना तो और भी अन्यायपूर्ण है। ट्रंप इस सप्ताह रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन से मिलने वाले हैं हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यूक्रेन को लेकर कोई सहमति बनने पर वे तेल खरीद पर लगाए जुर्माने पर पुनर्विचार करेंगे या नहीं।

उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत सरकार अमेरिकी प्रशासन के साथ बातचीत जारी रखेगी। अमेरिका को होने वाले निर्यात पर 50 फीसदी से अधिक शुल्क लगने का भारतीय अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव होगा। भारत ने गत वित्त वर्ष के दौरान अमेरिका को 86.5 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुएं निर्यात कीं। मौजूदा शुल्क दरों के मुताबिक तो अधिकांश वस्तुएं अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा से ही बाहर हो जाएंगी। इसका असर भारत की बाह्य वित्तीय हालत पर भी पड़ेगा।

ऐसा चालू खाते और पूंजी खाते दोनों के जरिये होगा। हालांकि इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मा को अभी इस प्रतिबंधात्मक शुल्क से रियायत दी गई है लेकिन ये क्षेत्र भी जल्दी ही किसी न किसी तरह शुल्क की जद में आ जाएंगे। चूंकि भारतीय आयात का कुछ हिस्सा मसलन कच्चा तेल आदि कम नहीं किया जा सकता है इसलिए निर्यात पर लगने वाली चोट व्यापार घाटे को बढ़ा सकती है। इससे चालू खाते के घाटे पर भी विपरीत असर होगा। चूंकि भारत का चालू खाते का घाटा कम है इसलिए शायद इसमें मामूली वृद्धि बहुत असर न डाले।

बहरहाल पूंजी खाते में समस्या उत्पन्न हो सकती है। अमेरिका के साथ कारोबारी रिश्ते और व्यापक अर्थव्यवस्था पर उसका प्रभाव प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और पोर्टफोलियो निवेश दोनों को प्रभावित कर सकता है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की बात करें तो धन वापसी और भारतीय कंपनियों द्वारा बाहर किए जाने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर पहले से ही चिंताएं हैं। वर्ष 2024-25 में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश केवल 35 करोड़ डॉलर था। पोर्टफोलियो निवेश की बात करें तो विदेशी निवेशकों ने इस वर्ष अब तक 11.5 अरब डॉलर मूल्य के भारतीय शेयर और बॉन्ड बेचे हैं।

चालू खाते और पूंजी खाते दोनों की संभावनाओं को चुनौती रुपये पर असर डालेगी। इस समय रुपया अमेरिकी डॉलर की तुलना में अपने न्यूनतम स्तर के आसपास है। वर्ष 2025 में यह अब तक डॉलर के मुकाबले 2.3 फीसदी तक गिरा है। यह गिरावट खुद डॉलर के मूल्य में तीव्र गिरावट के कारण सीमित नजर आ रही है। इस वर्ष के आरंभ से अब तक डॉलर सूचकांक 9 फीसदी से अधिक गिरा है। यह कई लोगों के अनुमानों के विपरीत है। कहा जा रहा है कि यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था और डॉलर में निवेशकों के कमजोर पड़ते विश्वास का प्रतीक है।

हालांकि अभी ऐसे निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी लेकिन यह स्पष्ट है कि हालात अनिश्चित और हलचल वाले बने रहेंगे। फिलहाल जो हालात हैं, यह संभव है कि आने वाले महीनों में रुपये पर दबाव रहे। भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है लेकिन इसका इस्तेमाल इस समय रुपये का बचाव करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत बेहतर सौदेबाजी कर सकेगा लेकिन शुल्क दर में इजाफे की उम्मीद तब भी है। व्यापार में ढांचागत बदलाव आ रहा है और कमजोर रुपया इसके असर को थामने में मदद कर सकता है।

First Published : August 12, 2025 | 9:54 PM IST