पिछले लगभग तीन वर्षों से रक्षा मंत्रालय रक्षा उपकरणों की खरीद में ‘आत्मनिर्भरता’ को बढ़ावा देने का प्रयत्न कर रहा है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मंत्रालय विशेष हथियारों और रक्षा उपकरणों के आयात पर प्रतिबंध लगा रहा है। दिसंबर 2020 में मंत्रालय ने सबसे पहले कुछ खास रक्षा प्रणालियों की लाइन रिप्लेसमेंट यूनिट्स (एलआरयू), सब-सिस्टम्स, असेम्बलीज, उपकरण एवं कल-पुर्जों के आयात पर रोक लगा दी।
उसी वर्ष के अंत से अब 69 किस्म के रक्षा उपकरणों का देश में आयात संभव नहीं रह गया है। मार्च 2022 में कुछ अन्य रक्षा उपकरण भी आयात प्रतिबंध सूची में लाए गए और अगस्त 2020 में यह फेहरिस्त और लंबी हो गई।
इन सूचियों को मंत्रालय की तरफ से एक सकारात्मक कदम के रूप में प्रस्तुत करने के लिए ‘सकारात्मक स्थानीयकरण सूची’ (पीआईएल) का नाम दिया गया। रविवार को मंत्रालय ने सामरिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण 928 उपकरणों की चौथी सूची (पीआईएल) जारी की।
अब इन सूचियों में 2,500 साजो-सामान हैं जिनका विनिर्माण देश में शुरू हो गया है और अन्य 1,238 साजो-सामान का स्वदेश में विनिर्माण एक निश्चित अवधि में जल्द शुरू हो जाएगा। रक्षा मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार इन उपायों का एक प्रभाव देखा जा रहा है। वर्ष 2018-19 में पूंजीगत व्यय में रक्षा उपकरणों पर आने वाले व्यय की हिस्सेदारी 46 प्रतिशत हुआ करती थी जो दिसंबर 2022 में समाप्त वर्ष में कम होकर 36.7 प्रतिशत रह गई।
हालांकि, घरेलू रक्षा उद्योग पीआईएल के जरिये घरेलू रक्षा उपकरण विनिर्माण उद्योग के हितों की रक्षा की पहल पर तीन महत्त्वपूर्ण प्रश्न पूछ रहा है। यह तर्क दिया जा रहा है कि भारत में रक्षा उपकरणों का ढांचा, इनका विकास और विनिर्माण कम से कम लागत पर किया जा सकता है। अगर ऐसी बात है तो फिर घरेलू उद्योग के हितों की रक्षा के लिए आयात पर प्रतिबंध लगाने की क्या आवश्यकता है?
मंत्रालय का कहना है कि रक्षा उपकरणों के आयात पर रोक लगाने का मुख्य मकसद भारतीय रक्षा उपकरण विनिर्माताओं को यह आश्वासन देना है कि उनके लिए प्रतिस्पर्द्धा में बने रहने के लिए रक्षा उपकरणों के विकास या विनिर्माण में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) से तकनीक मुहैया कर समान अवसर मुहैया कराए जाएंगे।
निजी रक्षा उपकरण विनिर्माण उद्योग ने अतीत में रक्षा सामान विकसित करने पर भारी निवेश एवं अन्य जरूरी प्रयास किए हैं मगर जब हथियार खरीदने की बारी आई तो रक्षा मंत्रालय ने विदेशी बाजारों से इनका आयात कर लिया। कुछ विशेष रक्षा उपकरणों के आयात पर प्रतिबंध से भविष्य में ऐसी स्थिति नहीं आएगी।
2020 की रक्षा उपकरण विधि में ऐसी किसी नौबत से बचने के लिए कई उपायों का जिक्र किया गया है। इस विधि में कहा गया है कि रक्षा उपकरणों की खरीद में भारत में तैयार, विकसित एवं निर्मित साजो-सामान को वरीयता दी जाएगी। अब पीआईएल से घरेलू रक्षा उद्योग को और मदद मिल जाएगी।
एक दूसरा प्रश्न यह है कि पीआईएल के माध्यम से जो उपाय किए जा रहे हैं उनसे रक्षा तैयारी की गुणवत्ता पर तो असर नहीं होगा? इससे पूर्व अर्जुन टैंक, तेजस लड़ाकू विमान, ध्रुव हल्के हेलीकॉप्टर और प्रोजेक्ट 15ए और 15बी डेस्ट्रॉयर्स जैसी कई रक्षा प्रणाली एवं हथियारों के मामले में स्वदेश परियोजना को अनावश्यक रूप से वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा की आंच से बचाया गया।
इससे लागत और समय दोनों ही अधिक लगे। अगर इस परियोजना को वैश्विक चुनौतियों से जूझने का अवसर मिलता तो शायद ऐसा नहीं होता। अंतिम प्रश्न यह है कि देश में रक्षा उपकरणों के विनिर्माण को बढ़ावा देने का क्या पीआईएल एक उचित माध्यम है?
भारत विदेश से जितने रक्षा साजो-सामान खरीदता है उनमें स्वदेशी रक्षा उपकरणों की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत बढ़ाने में 15 वर्षों का समय लग गया। उपकरण जितने उच्च तकनीक वाले होते जाएंगे उतना ही कठिन स्वदेश में निर्मित हथियारों की हिस्सेदारी बढ़ाना हो जाएगा। लिहाजा, आयात पर भारत की निर्भरता को देखते हुए स्वदेश में रक्षा साजो-सामान के विनिर्माण को बढ़ावा देना तो अच्छी बात है मगर रक्षा मंत्रालय को यह जरूर सुनिश्चित करना चाहिए कि इससे सेना की तैयारी पर कोई असर नहीं पड़े।