फिक्की-ईवाई की मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र पर जारी नवीनतम रिपोर्ट में कई दिलचस्प अवलोकन, डेटा बिंदु और रुझान सामने आए हैं जो इस क्षेत्र के उद्यमों के लिए इस बात में मददगार हो सकते हैं कि वे प्रासंगिक बने रहने के लिए अनुकूलन के कुछ कदम उठाएं या कुछ नया करें।
इस रिपोर्ट के अहम आंकड़ों से यह पता चलता है कि यह क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है और साल 2023 में 8 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि के साथ इसका आकार 2.3 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। वैसे तो इस उद्योग का आकार अब महामारी से पहले के दौर की तुलना में करीब 21 फीसदी ज्यादा हो चुका है, लेकिन इसके सभी घटकों में एक समान गति से बढ़त नहीं हो रही।
उदाहरण के लिए टेलीविजन, प्रिंट और रेडियो सेगमेंट का आकार अभी भी महामारी के पहले वाले दौर से कम है। इस प्रकार यह क्षेत्र मुख्यत: डिजिटल मीडिया, ऑनलाइन गेमिंग और फिल्मी मनोरंजन के दम पर आगे बढ़ रहा है। यही नहीं, भविष्य के अनुमान (2023-26) भी यह संकेत देते हैं कि ऑनलाइन गेमिंग, डिजिटल मीडिया, एनिमेशन और संगीत ही इस उद्योग के लिए राजस्व के मुख्य वाहक होंगे। यह रुझान निश्चित रूप से भारत में उपभोक्ताओं की बदलती प्राथमिकताओं और इंटरनेट की बढ़ती पैठ का प्रतिबिंब है।
जैसा कि रिपोर्ट में बताया गया है, दिसंबर 2023 तक देश में इंटरनेट की पहुंच 8 फीसदी बढ़कर 93.8 करोड़ सबस्क्राइबर तक हो गई है। साल 2023 में भारतीयों ने हर दिन करीब 4.8 घंटे फोन देखते या इस्तेमाल करते हुए गुजारे। इसके अलावा, उन्होंने इस समय का करीब 50 फीसदी हिस्सा सोशल मीडिया पर और 28 फीसदी हिस्सा मनोरंजन और खबरों पर बिताया।
इस रिपोर्ट का सबसे उल्लेखनीय बिंदु है भारत में ऑनलाइन गेमिंग का उभार और अपनाया जाना। आंकड़ों के मुताबिक साल 2023 में ऑनलाइन गेमिंग में करीब 22 फीसदी की बढ़त हुई और यह फिल्मी मनोरंजन को पीछे छोड़ते हुए इस उद्योग का चौथा सबसे बड़ा घटक बन गया। अनुमान के मुताबिक देश में ऑनलाइन गेमर की संख्या 45 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है और इस सेगमेंट के राजस्व का 83 फीसदी हिस्सा पैसे से जुड़े गेमिंग से आता है। ऑनलाइन गेमिंग पर माल एवं सेवा कर बढ़ाने का भी कोई बड़ा असर नहीं हुआ है।
लेकिन भारत में मीडिया और मनोरंजन कारोबार के बढ़ते जाने के बावजूद विकसित देशों की तुलना में विज्ञापन राजस्व काफी कम है। भारत में विज्ञापन राजस्व सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में करीब 0.33 फीसदी ही है, जबकि बड़े विकसित देशों में यह 0.6 से 1 फीसदी तक होता है। इसके अलावा इस उद्योग के राजस्व का मुख्य वाहक अब न्यू एज मीडिया बन गई है जो एक साथ ही अवसर और चुनौतियां दोनों पैदा करती है। ऑनलाइन सामग्री के उपभोग बढ़ते जाने की वजह से इस माध्यम में ज्यादा विज्ञापन जाने लगे हैं। यह छोटे कारोबारियों को भी अपने लक्षित वर्ग तक पहुंच बनाने में मदद करता है।
अनुमान के मुताबिक साल 2023 में देश के करीब 10 लाख छोटे कारोबारियों ने डिजिटल विज्ञापन पर करीब 20,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। यह रुझान बताता है कि इस उद्योग में जो अतिरिक्त राजस्व आएगा वह बड़ी प्रौद्योगिकी फर्मों के खाते में चला जाएगा। साल 2019 में डिजिटल और प्रिंट मीडिया का आकार लगभग बराबर ही था, लेकिन साल 2026 तक डिजिटल मीडिया के बढ़कर प्रिंट से तीन गुना हो जाने का अनुमान है और टीवी को तो यह अभी ही पीछे छोड़ चुका है।
इसलिए परंपरागत मीडिया के लिए चुनौती प्रासंगिक बनी हुई है। आगे के लिए एक कदम यह हो सकता है कि पाठकों-दर्शकों को ज्यादा प्रभावी तरीके से जोड़ने के लिए डिजिटल और सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया जाए। परंपरागत मीडिया की पहुंच अभी बरकरार है और इसका इस्तेमाल ज्यादा राजस्व आकर्षित करने के लिए करने की जरूरत है।
नीति नियंताओं के लिए यह सुनिश्चित करना चुनौती होगी कि बड़े सोशल मीडिया दिग्गजों सहित डिजिटल माध्यम, सामग्री और विज्ञापन को आगे बढ़ाने के लिए उपयोगकर्ताओं की कमजोरियों और पूर्वग्रहों का उपयोग न करें, जैसा कि अमेरिका जैसे कई देशों में हमने होते देखा है। इस तरह के दस्तूर न केवल यूजर को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि इनका इस्तेमाल कई तरह के हित समूह ऐसे ध्रुवीकरण में भी कर सकते हैं, जिसका पूरे समाज और देश पर दीर्घकालिक रूप से नकारात्मक असर हो सकता है।