facebookmetapixel
FPI की निकासी जारी, दिसंबर के 12 दिनों में ही ₹18 हजार करोड़ उड़ गएसस्ता टिकट या बड़ा धोखा? हर्ष गोयनका की कहानी ने खोल दी एयरलाइंस की पोलMCap: टॉप 8 कंपनियों का मार्केट वैल्यू ₹79,129 करोड़ घटा; Bajaj Finance और ICICI Bank सबसे बड़े नुकसान मेंRobert Kiyosaki ने खोले 6 निवेश के राज, जिन्हें अपनाकर आप बन सकते हैं अमीर!IRCTC टिकट बुकिंग में नया सिस्टम, फर्जी अकाउंट्स अब नहीं बचेंगेDelhi Weather Today: दिल्ली पर घना कोहरा, AQI 500 के करीब; GRAP स्टेज-4 की कड़ी पाबंदियां लागूElon Musk का अगला बड़ा दांव! SpaceX की IPO प्लानिंग, शेयर बिक्री से ₹800 अरब डॉलर वैल्यूएशन का संकेतUP: सांसद से प्रदेश अध्यक्ष तक, पंकज चौधरी को भाजपा की नई जिम्मेदारीइनकम टैक्स डिपार्टमेंट का अलर्ट: फर्जी डोनेशन क्लेम पर टैक्सपेयर्स को मिलेगा SMS और ईमेलदिल्ली की हवा फिर बिगड़ी, AQI 450 के करीब पहुंचते ही GRAP स्टेज-4 के सभी नियम पूरे NCR में लागू

Editorial: मानव विकास सूचकांक में भारत की छलांग, लेकिन पड़ोसी अब भी आगे!

जैसा कि रिपोर्ट बताती है, भारत मानव विकास के मामले में मध्यम श्रेणी में बना हुआ है। परंतु इस पूरी कहानी में कुछ सकारात्मक बातें भी हैं। 

Last Updated- May 08, 2025 | 10:26 PM IST
Human Development Index
प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो क्रेडिट: Freepik

मानव विकास सूचकांक (एचडीआई)  के नवीनतम संस्करण में भारत की तीन पायदानों की प्रगति मामूली संतोष की वजह ही हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि हम अभी भी 193  देशों वाले इस सूचकांक में निचले हिस्से में ही हैं और 2022 के 133वें स्थान की जगह 2023  में हम 130वां स्थान हासिल कर सके। जैसा कि रिपोर्ट बताती है, भारत मानव विकास के मामले में मध्यम श्रेणी में बना हुआ है। परंतु इस पूरी कहानी में कुछ सकारात्मक बातें भी हैं। 

एचडीआई मूल्य के 2022  के 0.676 से सुधर कर 2023 में 0.685  होने के साथ ही रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत उच्च मानव विकास के कगार पर है। उस दर्जे को हासिल करने के लिए 0.700 का एचडीआई मूल्य आवश्यक है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारत का एचडीआई मूल्य सन 1990 से अब तक 53 फीसदी सुधार है। यह सुधार वैश्विक और दक्षिण एशियाई, दोनों से औसतन बेहतर है। यह पर्यवेक्षण बताता है कि कैसे भारत अधिकांश आबादी के लिए बेहतर सामाजिक-आर्थिक नतीजों के साथ अपने एचडीआई मूल्य में सुधार कर सकता है। 

भारत ने जिन क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की वे हैं, जीवन प्रत्याशा, जहां हम 1990 के 58.6 वर्ष से सुधरकर 2023 में 72 वर्ष पर आ गए। इसका श्रेय राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, आयुष्मान भारत और पोषण अभियान जैसे कई कार्यक्रमों को दिया जा सकता है। स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों में भी सुधार हुआ है और 1990  में जहां 8.2 वर्ष तक बच्चों के स्कूल में रहने की संभावना होती थी वहीं अब यह सुधार 13 वर्ष हो चुका है। बहुआयामी गरीबी में कमी को सुधारों के वर्षों के बाद की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि माना जा सकता है। 2015-16  से 2019-21 के बीच करीब 13.5  करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आ गए। इसके बावजूद भारत एचडीआई में पड़ोसी मुल्कों से पीछे है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी चीन इस सूचकांक में 75वें स्थान पर है। श्रीलंका और भूटान जैसे छोटे देश क्रमश: 78वें और 127वें स्थान के साथ हमसे बेहतर हैं। बांग्लादेश 130 वें स्थान के साथ भारत की बराबरी पर है। केवल नेपाल (145), म्यांमार (149) और पाकिस्तान (168) ही हमसे पीछे हैं। ये सभी देश गहरे राजनीतिक संकट के शिकार हैं। रिपोर्ट के अनुसार बढ़ती असमानता और लैंगिक असमानता भारत को एचडीआई में पीछे खींच रही हैं। वास्तव में असमानता ने भारत को एचडीआई में 30.7  फीसदी पीछे किया है। यह इस क्षेत्र के सबसे बड़े नुकसान में से एक है।

एचडीआई रिपोर्ट से निकले संकेत स्पष्ट हैं। भारत को अपने सार्वजनिक अधोसंरचना क्षेत्र की आपूर्ति गुणवत्ता पर किए जाने वाले व्यय में तत्काल सुधार करने की आवश्यकता है ताकि अधिक से अधिक नागरिकों के पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य पाने का अवसर हो। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रम, जो बालिकाओं की शिक्षा पर केंद्रित है,  ने नि:संदेह मदद की है। परंतु भारत का शिक्षा और स्वास्थ्य व्यय अभी भी काफी कम है जिससे एचडीआई और आर्थिक वृद्धि के क्षेत्र में वह बदलाव नहीं आ पा रहा है जो आना चाहिए और जो दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों तथा हॉन्गकॉन्ग, ताइवान,  सिंगापुर और दक्षिण कोरिया में आया है। 

हमारा स्वास्थ्य व्यय जीडीपी के 4  और 3.7  फीसदी के बीच रहा है जो दुनिया में सबसे कम है। सरकारी स्वास्थ्य सेवा से सरकार का ध्यान भटक रहा है और यह बात देश की आबादी को अनियमित और प्राय: भ्रष्ट निजी क्षेत्र के हवाले छोड़ देती है। इसी तरह शिक्षा पर सरकारी व्यय भी जीडीपी के 3  से 4  फीसदी से अधिक नहीं रहा है। यह चीन के 6.13  फीसदी की तुलना में बेहद कम है। ये कमियां जगजाहिर हैं और केंद्र तथा राज्य सरकारों को इस बढ़ते सामाजिक-आर्थिक अंतर को पाटने के लिए समुचित नीतिगत कार्रवाई करनी होगी।

First Published - May 8, 2025 | 10:17 PM IST

संबंधित पोस्ट