बीते कुछ दशकों की बात करें तो भारतीय अर्थव्यवस्था का एक चमकदार पहलू रहा है सेवा निर्यात की गति। इसने न केवल कारोबारी अंतर को थामे रखने में मदद की है बल्कि यह देश में रोजगार निर्माण का स्रोत भी रहा है। इनमें उच्च कौशल वाले रोजगार शामिल हैं। सेवा क्षेत्र में देश की सफलता को देखते हुए इस बात का परीक्षण करना सही होगा कि वैश्विक स्तर पर हम कहां हैं और भविष्य की क्या संभावनाएं हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा मासिक बुलेटिन में प्रकाशित एक शोध आलेख कहता है कि पिछले तीन दशकों में यानी 1993 से 2022 के बीच डॉलर के संदर्भ में भारत का सेवा निर्यात 14 फीसदी से अधिक की समेकित सालाना वृद्धि दर से बढ़ा। यह 6.8 फीसदी की वैश्विक सेवा निर्यात वृद्धि की तुलना में काफी अच्छा है। इसके परिणामस्वरूप समान अवधि में सेवा निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 0.5 फीसदी से बढ़कर 4.3 फीसदी जा पहुंची। इसकी बदौलत भारत दुनिया में सातवां सबसे बड़ा सेवा निर्यातक बन गया। 2001 में भारत 24वें स्थान पर था।
फिलहाल दूरसंचार, कंप्यूटर और सूचना सेवा निर्यात के क्षेत्र में भारत दुनिया में दूसरे और सांस्कृतिक तथा मनोरंजक सेवा निर्यात में छठे स्थान पर है। भारत को तकनीकी प्रगति और उसे अपनाने से फायदा हुआ है। भारत के कामकाजियों में अंग्रेजी बोलने वाले लोग अच्छी खासी तादाद में हैं और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी अनेक प्रतिभाएं हैं। इसके अलावा घरेलू डिजिटल बुनियादी ढांचे और नीतिगत ध्यान ने भारत को सूचना प्रौद्योगिकी और उससे संबद्ध सेवाओं के क्षेत्र में अहम वैश्विक हिस्सेदारी हासिल करने में मदद की है।
यह बात बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) की स्थापना के कारण भी महसूस की जा सकती है। 2015-16 से 2022-23 तक भारत में जीसीसी की संख्या 60 फीसदी बढ़कर 1,600 से अधिक हो चुकी है।
दुनिया भर में डिजिटल तकनीक को अपनाने का सिलसिला बढ़ा है और भारत भी साफ तौर पर इससे लाभान्वित हुआ है। डिजिटल आपूर्ति वाली सेवाओं के निर्यात में 2019 से 2022 के बीच 37 फीसदी का इजाफा हुआ और यह भारत के लिए बहुत मददगार साबित हुआ।
तकनीकी क्षेत्र से इतर भारत का यात्रा निर्यात भी मजबूत रहा है, हालांकि वह अभी भी महामारी के असर से जूझ रहा है और इसमें आंशिक हिस्सेदारी पर्यटन की भी है। भारत ने परिवहन सेवा निर्यात में भी अच्छा प्रदर्शन किया है और आय के मामले में इसकी रैंक 2005 के 19वें से सुधरकर 2022 में 10वीं हो गई है।
भारत ने वैश्विक सेवा व्यापार में प्रतिस्पर्धी क्षमता भी प्रदर्शित की है, खासतौर पर दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित क्षेत्रों में। परंतु सवाल यह है कि क्या मध्यम से दीर्घ अवधि के दौरान यह मजबूती बरकरार रहेगी? भारतीय रिजर्व बैंक के अर्थशास्त्रियों के शोध ने दिखाया है कि बाहरी मांग और मूल्य प्रतिस्पर्धा सेवा निर्यात को बहुत अधिक प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में एक फीसदी का इजाफा देश के सेवा निर्यात में 2.5 फीसदी बढ़ोतरी लाता है।
इसके अलावा वास्तविक प्रभावी विनिमय दर में एक फीसदी इजाफा वास्तविक सेवा निर्यात में 0.8 फीसदी की गिरावट ला सकता है। चूंकि वैश्विक आर्थिक वृद्धि के आने वाले वर्षों में अपेक्षाकृत कमजोर रहने की आशंका है ऐसे में सेवा निर्यात को भी प्रतिकूल हालात का सामना करना पड़ सकता है।
हालिया विश्लेषण बताता है कि विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश अपने तट के आसपास के देशों में कारोबार पर जोर दे रहे हैं। ऐसा भूराजनीतिक तनाव बढ़ने के कारण हुआ है। यह भारतीय निर्यातकों के लिए भी चुनौती बन सकता है। इतना ही नहीं भारत के लिए आर्टिफिशल इंटेलीजेंस खतरा भी है और अवसर भी। अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि यह मध्यम अवधि में सेवा व्यापार को कैसे प्रभावित करेगी। भारत को दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी सेवा निर्यात में तुलनात्मक रूप से बढ़त हासिल है लेकिन उसे अपने निर्यात में विविधता लाने और अन्य उभरते क्षेत्रों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।