वर्ष 2022-23 में भारत के आर्थिक प्रदर्शन ने बाजार को चौंका दिया। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा बुधवार को जारी आंकड़े बताते हैं कि 2022-23 में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 7.2 फीसदी बढ़ा। पहले इसमें 7 फीसदी वृद्धि के अनुमान लगाए गए थे। वृद्धि के अनुमान से बेहतर आंकड़े मोटे तौर पर वित्त वर्ष की चौथी तिमाही की बदौलत हासिल हुए।
इस तिमाही में 6.1 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। अलग-अलग स्तर पर देखा जाए तो वित्त वर्ष के दौरान कृषि क्षेत्र ने 4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की जबकि विनिर्माण क्षेत्र ने महज 1.3 फीसदी की। व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण सेवा क्षेत्र ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और 14 फीसदी की वृद्धि हासिल की जबकि वित्तीय, अचल संपत्ति तथा पेशेवर सेवा क्षेत्र में 7.1 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली।
चूंकि पूरे वर्ष के आंकड़ों में एक किस्म का झुकाव है क्योंकि वर्ष की पहली छमाही में तेज वृद्धि देखने को मिली। ऐसा इसलिए हुआ कि आधार अपेक्षाकृत कम था। ऐसे में चालू वर्ष में अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन के आकलन के लिए दूसरी छमाही के प्रदर्शन पर नजर डालना उचित होगा। समग्र वृद्धि मजबूत नजर आती है लेकिन गत वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में निजी क्षेत्र की अंतिम निजी खपत का व्यय 3 फीसदी से कम रहा जो प्रभावित कर सकता है।
हालांकि सकारात्मक पहलुओं की बात करें तो निवेश में इजाफा हुआ। भारतीय रिजर्व बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था में 6.5 फीसदी की वृद्धि देखने को मिलेगी। यह अनुमान 2022-23 की तुलना में कम है लेकिन तमाम वजहों से इस स्तर की वृद्धि हासिल करना भी आसान नहीं होगा। यह बात ध्यान देने योग्य है कि गत वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में केवल 5.3 फीसदी वृद्धि हासिल हुई थी क्योंकि महामारी के कारण मिल रहा आधार प्रभाव का लाभ समाप्त हो गया था।
ऐसे में अर्थव्यवस्था को कहीं अधिक तेज गति से विकसित होना होगा। यह बात आंशिक तौर पर चुनौतीपूर्ण हो सकती है क्योंकि वैश्विक वृद्धि कमजोर है। गत वित्त वर्ष के दौरान भारत में ब्याज दरों में भी काफी इजाफा हुआ है और वे कुछ समय तक ऊंचे स्तर पर बनी रह सकती हैं। रिजर्व बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में औसत मुद्रास्फीति की दर 5.2 फीसदी रहेगी।
चूंकि यह दर अभी भी 4 फीसदी के तय लक्ष्य से काफी ऊंची है इसलिए मौद्रिक सहजता की गुंजाइश भी उपलब्ध नहीं होगी। रिजर्व बैंक की ताजा वार्षिक रिपोर्ट में प्रस्तुत किए गए एक विश्लेषण के मुताबिक नीतिगत दर में एक फीसदी अंक का इजाफा तीसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि में 30 आधार अंकों की गिरावट का सबब बना है और इसका असर आठ तिमाहियों तक नजर आएगा। वृद्धि संबंधी निष्कर्ष और अपेक्षाकृत ऊंची दर का स्थायित्व काफी हद तक निवेश में निरंतर इजाफे पर निर्भर करता है।
वृद्धि को सरकार के पूंजीगत व्यय का समर्थन मिला। चूंकि नॉमिनल वृद्धि के 2022-23 में 16 फीसदी से नीचे आने की आशंका है ऐसे में अगर राजस्व घाटे को जीडीपी के 5.9 फीसदी के दायरे में सीमित रखना है तो अनुमानित पूंजीगत व्यय को भी जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
सरकार ने ताजा आंकड़ों में 2022-23 के लिए राजकोषीय घाटा लक्ष्य हासिल करके अच्छा किया है। निजी निवेश में इजाफा महत्त्वपूर्ण होगा। बैंक ऋण में इजाफा भी एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है। मार्च 2023 तक बैंक ऋण लगभग नॉमिनल जीडीपी की दर से ही बढ़ रहा था।
बैंकों की बैलेंस शीट में भी उल्लेखनीय इजाफा हुआ है और वे इस स्थिति में हैं कि कारोबारी निवेश की मदद कर सकें। जहां तक टिकाऊ वृद्धि की बात है तो वह कंपनियों द्वारा आर्थिक दृष्टिकोण के अध्ययन पर निर्भर करेगी। मौजूदा हालात की बात करें तो आर्थिक अनिश्चितता कम हुई है लेकिन चुनौतियां बरकरार हैं।