मजबूत प्रदर्शन के बाद दक्षिण-पश्चिम मॉनसून धीरे-धीरे पीछे हट रहा है और इसकी शुरुआत पश्चिमी राजस्थान और गुजरात के कच्छ क्षेत्र से हुई है। वर्ष 2023 में वर्षा के सामान्य से 5.6 फीसदी कम रहने के बाद इस वर्ष बारिश औसत से पांच फीसदी अधिक रही है।
अब जबकि मॉनसून का मौसम खत्म हो रहा है और ला नीना प्रभाव के देरी से सामने आने के बाद भी पूरे देश में बारिश का 30 सितंबर तक का आंकड़ा ‘सामान्य से अधिक’ रहने की उम्मीद है। भारतीय मौसम विभाग ने बारिश के सामान्य से अधिक रहने का उचित ही अनुमान जताया था। उसने कहा था कि 870 मिलीमीटर के दीर्घकालीन औसत के 106 फीसदी तक बारिश होगी।
यद्यपि मॉनसून का वितरण दिलचस्प तस्वीर पेश करता है। पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में सामान्य से कम मॉनसूनी बारिश हुई। इसके विपरीत पश्चिमोत्तर, मध्य और दक्षिणी प्रायद्वीपीय हिस्सों में सामान्य से बेहतर बारिश हुई। आश्चर्य की बात है कि राजस्थान, गुजरात और लद्दाख जैसे अर्द्धशुष्क इलाकों में सामान्य या सामान्य से अच्छी बारिश हुई।
राजस्थान में सामान्य वर्षा के स्तर से 56 फीसदी अधिक बारिश हुई। इस बीच मौसम विभाग की पांच उप शाखाओं ने अब तक बारिश में भारी कमी की बात कही है। इन क्षेत्रों में पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, बिहार और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं। विस्तृत आंकड़े बताते हैं कि देश के लगभग 75 फीसदी जिलों में सामान्य से अधिक या सामान्य वर्षा हुई।
पहले से अधिक सिंचाई सुविधाओं और रकबों के बावजूद दक्षिण पश्चिम मॉनसून की बारिश देश में खेती के लिए अहम है। इस संदर्भ में भारी वर्षा खरीफ और रबी दोनों ही मौसमों के कृषि उत्पादन के लिए बेहतर है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी हालिया आंकड़े बताते हैं कि खरीफ के बोआई रकबे में 1.5 फीसदी का इजाफा हुआ है और अब तक किसानों ने 11.05 करोड़ हेक्टेयर रकबे में बोआई की है।
पिछले साल यह आंकड़ा 10.88 करोड़ हेक्टेयर था। धान, दालें, तिलहन, मोटा अनाज और गन्ना, इन सभी का रकबा बढ़ा है। सालाना बारिश और कृषि के सकल मूल्यवर्द्धन में संबंध को देखते हुए अच्छी बारिश होने से रबी की फसल के लिए भी संभावनाएं बेहतर होती हैं। जमीन में नमी और जलाशयों का बेहतर स्तर गेहूं, सरसों और दलहन की फसल के लिए आदर्श बोआई स्थितियां तैयार करता है, बशर्ते कि जाड़े के पूरे मौसम के दौरान तापमान स्थिर बना रहे।
वृहद आर्थिक स्तर पर देखें तो पर्याप्त बारिश से आर्थिक वृद्धि को मदद मिलती है और मुद्रास्फीति नियंत्रण में रहती है। खुदरा मुद्रास्फीति पिछले कई महीनों से आठ फीसदी से ऊपर है ऐसे में खरीफ में अच्छी बोआई, अनुकूल अंतरराष्ट्रीय कीमतें आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने की उम्मीद जगाती हैं। सरकार ने हाल ही में उच्च उत्पादकता की उम्मीद में कुछ खाद्य पदार्थों के निर्यात पर से रोक हटा दी है।
जलाशयों में जल भराव, पेयजल और बिजली उत्पादन के लिए भी अच्छा मॉनसून जरूरी है। केंद्रीय जल आयोग के आंकड़ों को देखें तो देश के 155 अहम जलाशयों का जल स्तर बढ़कर 157.159 अरब घन मीटर तक पहुंच गया है यानी उनकी कुल भंडारण क्षमता के 87 फीसदी तक। गत वर्ष इन जलाशयों का जल स्तर 127.713 अरब घन मीटर तक था।
बहरहाल, भारी बारिश से उत्पन्न आशावाद के चलते नीति निर्माताओं को दीर्घकालिक जल प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से नजर नहीं हटानी चाहिए। अल नीनो और अल नीना चक्र के साथ बारिश के रुझान में बदलाव दिक्कतें पैदा कर सकता है। इस बारे में जलवायु प्रतिरोधी कृषि, नाली व्यवस्था में सुधार और बाढ़ तथा सूखा प्रबंधन को बेहतर बनाकर मॉनसून की अनिश्चितता की समस्या से निपटा जा सकता है।