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संपादकीय: जीएसटी परिषद की 54वीं बैठक में महत्त्वपूर्ण निर्णय…

एक अनुमान के मुताबिक 2023-24 में बीमा की पहुंच वैश्विक स्तर पर 6.5 फीसदी थी जबकि भारत में यह केवल 3.8 फीसदी रही।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- September 10, 2024 | 9:52 PM IST

वस्तु एवं सेवा कर (GST) परिषद ने 54वीं बैठक में कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए। बैठक में यह भी दर्ज किया गया कि कुछ अहम मुद्दों की समीक्षा राज्यों के विभिन्न मंत्री समूह करेंगे।

परिषद ने जो अहम निर्णय लिए उनमें एक यह भी था कि विदेशी विमानन सेवाओं को देश के बाहर स्थित संबंधित पक्षों से सेवा आयात में छूट दी जाए, खासकर जब ऐसे बदलाव बिना विचार किए गए हों। इससे कई विदेशी विमान सेवाओं को लाभ होगा जिन्हें कर नोटिस दिए गए थे।

परिषद ने प्रायोगिक तौर पर कारोबार से उपभोक्ता ई-इनवॉइसिंग की भी अनुशंसा की। परिषद का अनुमान है कि इससे व्यवस्था में अधिक किफायत आएगी। इससे समय के साथ कर संग्रह में भी सुधार होना चाहिए। इसके अलावा परिषद ने कैंसर की कुछ दवाओं पर जीएसटी कम किया।

कुछ अहम निर्णय जो परिषद आने वाले महीनों में ले सकती है, विभिन्न मंत्री समूह उनका अध्ययन करेंगे और अंतिम निर्णय अनुशंसाओं की समीक्षा करने के बाद लिया जाएगा। उनमें से एक है बीमा पर जीएसटी। केंद्र सरकार के नेताओं समेत कई जगह से ऐसी मांग आई हैं कि स्वास्थ्य बीमा योजनाओं पर लगने वाले कर की समीक्षा की जाए। सोमवार को यह सूचित किया गया कि मंत्री समूह इस विषय पर समग्रता में निगाह डालेगा और जीवन बीमा और चिकित्सा बीमा दोनों को इसमें शामिल करेगा।

एक अनुमान के मुताबिक 2023-24 में बीमा की पहुंच वैश्विक स्तर पर 6.5 फीसदी थी जबकि भारत में यह केवल 3.8 फीसदी रही। जीएसटी दरों में कमी करने से यह जाहिर तौर पर अधिक किफायती बनेगी और पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी। बहरहाल, मंत्री समूह और परिषद को राजस्व को लेकर भी विचार करना चाहिए। दरों में कमी से अन्य सेवाओं के लिए ऐसी मांगों को प्रोत्साहन मिलेगा।

दूसरा मुद्दा जिस पर विचार किया जा रहा है वह है दरों और स्लैब को युक्तिसंगत बनाना। सोमवार को यह स्पष्ट किया गया कि मंत्री समूह इस विषय पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है। यह मसला अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। जैसा कि हम अतीत में भी संपादकीय में लिख चुके हैं जीएसटी व्यवस्था का प्रदर्शन कमजोर रहा क्योंकि दरों में समय से पहले कमी कर दी गई और उपकर सहित कुल संग्रह को अगर सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में आंका जाए तो वह जीएसटी के पहले के अलग-अलग करों के समेकित स्तर के आसपास ही रहा।

इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि उपकर का संग्रह उस कर्ज को चुकाने के लिए किया जा रहा है जो महामारी के दौरान राज्यों की क्षतिपूर्ति के लिए लिया गया था। यह न तो केंद्र के पास जा रहा है, न ही राज्यों के पास। ऐसे में कर संग्रह में सुधार, जिससे सरकार को दोनों स्तरों पर मदद मिलेगी, के लिए दरों और स्लैब को इस प्रकार युक्तिसंगत बनाना होगा जिससे समग्र दर राजस्व निरपेक्ष स्तर पर पहुंच जाए। ध्यान देने वाली बात यह है कि एक मंत्री समूह क्षतिपूर्ति उपकर के भविष्य पर भी नजर डालेगा।

तकनीकी तौर पर देखा जाए तो उपकर केवल महामारी के दौरान लिए कर्ज को चुकाने के लिए लिया जा रहा है और एक बार पूरी तरह चुकता होने के बाद परिषद को आगे की राह तलाश करनी होगी। अनुमान है कि यह कर्ज मार्च 2026 की तय मियाद के पहले चुकता हो जाएगा।

ऐसे भी सुझाव हैं कि उपकर को बुनियादी कर ढांचे में शामिल कर लिया जाना चाहिए। कराधान की निरंतर उच्च दर से कुछ क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं। उदाहरण के लिए चुनिंदा किस्म की कारों पर करीब 50 फीसदी कर लगाने को उचित ठहरा पाना मुश्किल होगा। ऐसे नए स्लैब भी शामिल किए जा सकते हैं जो व्यवस्था को और जटिल बना सकते हैं।

ऐसे में चुनौती होगी दरों को युक्तिसंगत बनाना और उस हिस्से का समायोजन करना जिसे अभी उपकर के रूप में एकत्रित किया जाता है, ताकि जीएसटी व्यवस्था को अधिक कुशल बनाया जास के और समग्र कर संग्रह में सुधार लाने में मदद मिल सके।

First Published : September 10, 2024 | 9:47 PM IST