बीते दशक के सबसे महत्त्वपूर्ण सुधारों की बात करें तो वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) सुधार उनमें से एक है। बहरहाल, कई वजहों से इसका प्रदर्शन शुरुआती अनुमानों की तुलना में कमजोर रहा और अर्थव्यवस्था को इससे उतना लाभ नहीं मिला जितनी कि कल्पना की जा रही थी। हाल के वर्षों में कर संग्रह में सुधार हुआ है और इसमें बहुत सुधार की गुंजाइश है।
जीएसटी से जुड़े निर्णय यद्यपि जीएसटी परिषद लेती है लेकिन अगली केंद्र सरकार चाहे जिस दल या गठबंधन की हो, उसे लंबित सुधारों को गति देनी चाहिए। उसे जीएसटी 2.0 के तहत न केवल कर संग्रह बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए बल्कि समग्र अप्रत्यक्ष कर प्रशासन में सुधार करना चाहिए जिससे देश में कारोबारी सुगमता बढ़े। वर्ष 2023-24 में समग्र जीएसटी संग्रह में 11.7 फीसदी का सुधार हुआ और यह 20.18 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया।
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार यह संग्रह जीडीपी का 6.86 फीसदी था। शुद्ध रिफंड की बात करें तो संग्रह जीडीपी के 6.13 फीसदी तक रहा जो पिछले वर्ष से बेहतर है। बहरहाल, राजस्व संग्रह का आकलन जीएसटी समेत सभी करों के आधार पर होना चाहिए। कर से होने वाला सामान्य सरकारी राजस्व संग्रह जीएसटी में शामिल होने के बाद 2016-17 में जीडीपी का 6.3 फीसदी रहा। वर्तमान प्रदर्शन अधिक निराश करने वाला होगा, अगर उपकर को इससे बाहर कर दिया जाए।
ध्यान रहे जीएसटी के मूल डिजाइन में ऐसा ही था। उपकर इसलिए संग्रहीत किया गया ताकि राज्यों को क्रियान्वयन के पहले पांच वर्ष तक राजस्व में होने वाली कमी को पूरा किया जाए। बहरहाल, उपकर संग्रह पांच वर्ष के बाद भी जारी रहा ताकि उस कर्ज को चुकाया जा सके जो महामारी के दौरान राज्यों को की जाने वाली क्षतिपूर्ति के लिए लिया गया था। रिफंड और उपकर को हटा दें तो जीएसटी संग्रह जीडीपी के छह फीसदी के नीचे आ जाएगा।
जीएसटी के कमजोर प्रदर्शन की कई वजह हैं। इनमें राजनीतिक कारणों से दरों में अपरिपक्व ढंग से कमी करना भी शामिल है। दरों की बहुलता ने कई भ्रम पैदा किए। कई मामलों में शुल्क उलट दिया गया जिससे राजस्व वर्षों तक प्रभावित हुआ। सूचना प्रौद्योगिकी और अनुपालन से जुड़े मुद्दों को भी काफी हद तक हल कर दिया गया है परंतु वे व्यवस्था की बुनियादी कमियों को दूर नहीं कर सकते। भारतीय रिजर्व बैंक ने सितंबर 2019 में अनुमान लगाया था कि दरों में विविध समायोजन ने यह दर्शाया है कि जीएसटी की शुरुआत में जो प्रभावी औसत दर 14.4 फीसदी थी वह 11.6 फीसदी रह गई।
अगली सरकार को प्राथमिकता के साथ जीएसटी परिषद को इस बात के लिए प्रेरित करना चाहिए कि वह राजस्व निरपेक्ष दर तैयार करे। इसके साथ ही दरों की स्लैब को भी तार्किक बनाने की जरूरत है। अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं को एक दर के अधीन करना चाहिए। केवल चुनिंदा अनिवार्य वस्तुओं पर कर दर कम होनी चाहिए जबकि ‘नुकसानदेह’ उत्पादों पर कर दर बढ़ाई जा सकती है। परिषद को पेट्रोलियम उत्पादों को भी जीएसटी के अंतर्गत लाने पर विचार करना चाहिए।
अन्य सुधारों से इतर परिषद को उपकर पर भी चर्चा करनी चाहिए। उपकर लगाने की अवधि मार्च 2026 तक बढ़ा दी गई है लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि क्षतिपूर्ति के लिए जो कर्ज लिया गया था वह जल्दी चुका दिया जाएगा। एक नजरिया यह भी है कि उपकर को जीएसटी दरों में शामिल करना चाहिए। बहरहाल, यह उचित नहीं होगा और बुनियादी रूप से जीएसटी के प्रारंभिक वादे के विपरीत होगा। जीएसटी राजस्व बढ़ाने की जरूरत है लेकिन ऐसा करने के लिए व्यवस्था की बुनियादी खामियों को दूर किया जाना चाहिए। चुनिंदा वस्तुओं पर भारी कर लगाना जीएसटी के मूल विचार के विरुद्ध होगा।