संपादकीय

Editorial: औद्योगिक उत्पादन और रोजगार के क्षेत्र में संतुलित दृष्टिकोण

India industrial production : देश की GDP में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 17 फीसदी है। समीक्षा अवधि में जहां देश के औद्योगिक क्षेत्र का प्रदर्शन बेहतर रहा।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- February 09, 2024 | 9:59 PM IST

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने हाल ही में उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) के वर्ष 2020-21 और 2021-22 के आंकड़े जारी कर दिए। ध्यान देने वाली बात है कि दोनों वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था कोविड-19 महामारी से मची उथल पुथल से जूझ रही थी। 

बहरहाल, परिणाम दिखाते हैं कि देश का विनिर्माण क्षेत्र कच्चे माल के इस्तेमाल, उत्पादन और मुनाफे के मामले में मजबूत है। एएसआई पूरे देश में विस्तारित है और यह औद्योगिक आंकड़ों का सबसे प्रमुख स्रोत है। यह 10 या अधिक कर्मचारियों वाली और बिजली का इस्तेमाल करने वाली तथा बिना बिजली की खपत वाली लेकिन 20 से अधिक कर्मचारियों वाली इकाइयों को गणना में लेती है। 

देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 17 फीसदी है। समीक्षा अवधि में जहां देश के औद्योगिक क्षेत्र का प्रदर्शन बेहतर रहा, वहीं इसका अपेक्षाकृत छोटा पैमाना और सघनता चिंता का विषय है।

विनिर्माण क्षेत्र के सकल मूल्यवर्द्धन में वित्त वर्ष 21 और वित्त वर्ष 22 में मौजूदा दरों पर क्रमश: 8.8 फीसदी और 26.6 फीसदी की वृद्धि हुई। उत्पादन में कमी के बावजूद 2020-21 में सकल मूल्यवर्धन में सकारात्मक वृद्धि देखने को मिली क्योंकि कच्चे माल की कीमतों में तेज गिरावट दर्ज की गई थी। यह बात ध्यान देने लायक है कि उत्पादन में केवल वित्त वर्ष 21 में ही गिरावट नहीं आई बल्कि उसके पिछले वर्ष भी इसमें गिरावट आई थी जबकि वित्त वर्ष 22 में इसने वापसी की। 

रोजगार के संदर्भ में बात की जाए तो अनुमान के मुताबिक ही वित्त वर्ष 21 में इसमें मामूली कमी आई। परंतु अगले वर्ष इसकी अच्छे से भरपाई हो गई और रोजगार में सालाना आधार पर सात फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई। इस क्षेत्र में प्रति कर्मचारी औसत क्षतिपूर्ति में भी सर्वेक्षण में शामिल दो वर्षों के दौरान इजाफा देखने को मिला। इसके अलावा महामारी ने नियोजित पूंजी को भी प्रभावित नहीं किया। स्थायी पूंजी और निवेश की गई पूंजी दोनों में संदर्भ अवधि के दौरान सकारात्मक वृद्धि देखने को मिली।

इन सब बातों के बीच विनिर्माण गतिविधि भौगोलिक रूप से कुछ खास इलाकों  तथा चुनिंदा उत्पादों में सिमटी हुई है।

एएसआई के परिणामों ने दिखाया कि केवल पांच राज्यों- गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश ने वित्त वर्ष 21 और 22 में विनिर्माण के कुल मूल्यवर्द्धन में 50 फीसदी से अधिक योगदान किया। इसके साथ ही बुनियादी धातु, कोयला और रिफाइंड पेट्रोलियम, फार्मास्युटिकल उत्पाद, वाहन, खाद्य और रासायनिक उत्पाद उद्योगों ने मिलाकर इस क्षेत्र के कुल मूल्यवर्द्धन में 56 फीसदी का योगदान किया। रोजगार के क्षेत्र में सुधार के बावजूद वित्त वर्ष 22 में विनिर्माण क्षेत्र में 1.7 करोड़ से कुछ अधिक लोग ही रोजगारशुदा हैं।

यह भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी कमियों में से एक है। हम विनिर्माण क्षेत्र में इतने अधिक रोजगार नहीं तैयार कर सके हैं कि लोगों को कृषि कार्यों से बाहर निकाल सकें क्योंकि वहां उत्पादकता बहुत कम है। सरकार ने अपनी ओर से हस्तक्षेप किया है और निवेश बढ़ाने के लिए कई क्षेत्रों में कम कॉर्पोरेशन कर, सिंगल विंडो मंजूरी और उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना आदि की पेशकश की है। यह उम्मीद भी की जा रही है कि वैश्विक कंपनियों द्वारा चीन से दूरी बनाने का नतीजा भारत में अधिक निवेश के रूप में सामने आएगा। यद्यपि अब तक इस दिशा में सीमित सफलता मिली है। 

भारत को लगातार निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाने की आवश्यकता है। सरकार के सामने न केवल उत्पादन और रोजगार बढ़ाने के लिए उच्च निवेश की आवश्यकता है बल्कि उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि निवेश गिनेचुने राज्यों तक सीमित नहीं रहे। औद्योगिक उत्पादन और रोजगार के क्षेत्र में एकतरफा झुकाव वाली वृद्धि संघीय व्यवस्था में तनाव पैदा कर सकती है। अलग-अलग रूप में यह नजर भी आने लगा है।

First Published : February 9, 2024 | 9:59 PM IST