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Editorial: 93% डेरिवेटिव कारोबारियों को F&O में नुकसान, लेनदेन की लागत बनी बड़ी चुनौती

अध्ययन में दावा किया गया है कि 75 फीसदी से अधिक घाटा सहने वाले एफऐंडओ कारोबारी निरंतर नुकसान के बावजूद इस क्षेत्र में कारोबार करते रहे।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- September 24, 2024 | 9:36 PM IST

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के एक नये अध्ययन ‘इक्विटी डेरिवेटिव क्षेत्र में लाभ-हानि का विश्लेषण (वित्त वर्ष 22-24)’ से संकेत मिलता है कि डेरिवेटिव में कारोबार नुकसानदेह है। इसमें ब्रोकरेज और विनिमय शुल्क के कारण लेनदेन की लागत बढ़ती है और इनके कारण कुल मिलाकर डेरिवेटिव कारोबार ऐसे कारोबार में बदल जाता है जहां हर नुकसान किसी प्रतिपक्ष के लाभ के समान होता है।

अध्ययन से संकेत मिलता है कि एक करोड़ से अधिक लोग जो डेरिवेटिव (वायदा एवं विकल्प यानी एफऐंडओ) में कारोबार करते हैं उनमें से 93 फीसदी को समीक्षा अवधि में औसतन दो लाख रुपये प्रति कारोबारी की दर से नुकसान हुआ। इस नुकसान में लेनदेन की लागत शामिल है। ऐसे सभी लोगों का समग्र नुकसान करीब 1.8 लाख करोड़ रुपये है। सबसे अधिक नुकसान झेलने वाले यानी करीब चार लाख कारोबारी ऐसे थे जिन्हें औसतन 28 लाख रुपये प्रति व्यक्ति का नुकसान हुआ।

लेनदेन की लागत इसमें भी शामिल है। इसके विपरीत लेनदेन की लागत के बाद केवल एक फीसदी व्यक्तिगत कारोबारियों का मुनाफा एक लाख रुपये से अधिक रहा।

वित्त वर्ष 24 में प्रोपराइटरी कारोबारी और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) ऐसे वर्ग रहे जिन्होंने क्रमश: 33,000 करोड़ रुपये और 28,000 करोड़ रुपये का सकल कारोबारी लाभ (लेनदेन की लागत से पहले) हासिल किया। जबकि व्यक्तिगत कारोबारियों को लेनदेन की लागत से पहले 61,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

मुनाफा ट्रेडिंग के अलगोरिद्म से उत्पन्न हुआ। एफपीआई का 97 फीसदी मुनाफा और 96 फीसदी प्रोपराइटरी मुनाफा अलगोरिद्मिक ट्रेडिंग से हुआ। औसतन व्यक्तिगत कारोबारियों ने वित्त वर्ष 24 में एफऐंडओ लेनदेन की लागत के रूप में प्रति व्यक्ति 26,000 रुपये खर्च किए। वित्त वर्ष 22 से 24 के दौरान व्यक्तियों ने लेनदेन की लागत पर सामूहिक रूप से 50,000 करोड़ रुपये खर्च किए और इस लागत में से 51 फीसदी ब्रोकरेज शुल्क और 20 फीसदी विनिमय शुल्क है। करीब 43 फीसदी व्यक्तिगत कारोबारी 30 वर्ष से कम आयु के हैं और करीब 72 फीसदी कारोबारी शीर्ष 30 शहरों से बाहर छोटी जगहों पर रहते हैं।

अध्ययन में दावा किया गया है कि 75 फीसदी से अधिक घाटा सहने वाले एफऐंडओ कारोबारी निरंतर नुकसान के बावजूद इस क्षेत्र में कारोबार करते रहे।

एक्सचेंजों में पारदर्शी और निष्पक्ष कारोबारी प्रक्रियाएं अपनाए जाने के अलावा नियामक निवेशकों को शिक्षित करने की भी बात कहता है। ऐसे अध्ययन इस बारे में मूल्यवान उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। डेरिवेटिव कारोबार परेटो सिद्धांत का शिखर उदाहरण है जहां सात फीसदी व्यक्तिगत कारोबारियों को मुनाफा हुआ जबकि शेष को नुकसान।

किसी व्यक्ति के पास अलगोरिद्म संसाधनों की कमी की संभावना वाकई कम है खासतौर पर तब जबकि लेनदेन की लागत को भी ध्यान में रखा जाए। बहरहाल एफऐंडओ कारोबार को व्यक्तिगत कारोबारियों को नुकसान पहुंचाने वाला बताने के अलावा नियामक के पास ज्यादा कुछ करने को नहीं है।

निश्चित तौर पर उसने यह प्रयास भी किया कि कम पूंजी वाले निवेशकों की रक्षा की जाए। इसके लिए उसने अनुबंध के आकार और मार्जिन की समीक्षा चाही है। इस अध्ययन के मुताबिक तो यह व्यक्तिगत कारोबारियों पर निर्भर है कि वे अपने कारोबारी रुझान की समीक्षा और अंकेक्षण करें। समझदार कारोबारी इसके प्रभाव को समझकर कारोबारी रणनीतियों में बदलाव करेंगे या फिर बाजार से बाहर निकल जाएंगे।

संस्थागत नजरिये से व्यक्तिगत एफऐंडओ कारोबारी एक आर्थिक उद्देश्य की पूर्ति करते हैं। इसकी तुलना सरकारी लॉटरी से की जा सकती है। लॉटरी का टिकट खरीदने वाले हर व्यक्ति के नुकसान सहने की संभावना होती है लेकिन फिर भी टिकट खरीदने वालों से काफी राशि एकत्रित होती है।

एक जीवंत एफऐंडओ बाजार बेहतर मूल्य निर्धारण को सक्षम बनाता है और प्रतिभागी अधिक कुशलता से हेजिंग कर सकते हैं। कुल मिलाकर कारोबारी वह आकार तैयार करते हैं जिससे भारी नकदी और निम्न प्रसार तय होता है। इससे सभी कारोबारी लाभान्वित होते हैं और यह हेजिंग करने वालों के लिए खास उपयोगी है। बहरहाल, खुदरा कारोबारी भी व्यक्तिगत स्तर पर इससे मिलने वाले सबक से लाभान्वित होंगे।

First Published : September 24, 2024 | 9:36 PM IST